Tuesday, August 19, 2025
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भाजपा प्रदेश मंत्री मीरा रतूड़ी ने छेड़ा “मेरा वोट मेरे गाँव” अभियान

देहरादून (हि. डिस्कवर)

उत्तराखंड भाजपा प्रदेश मंत्री मीरा रतूड़ी ने हाल ही में प्रदेश में सम्पन्न हुए त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत के फ़ौरन बाद ‘मेरा वोट मेरे गाँव” अभियान छेड़ दिया है। जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों से लगातार हो रहे पलायन व खाली होते गाँव व चौपट होती अर्थव्यवस्था को पुन: संगठित कर पटरी पऱ लाने की पुरजोर कोशिश समझी जा सकती है। उन्होंने सभी उत्तराखंडी जन मानस से अनुरोध किया है कि वह अपना वोट अपने पैतृक गाँव में रखें ताकि गाँव की जनसंख्या वृद्धि के मानकों के साथ हमारी विधान सभा सीटें भी यथावत रहें। मीरा ने कहा है कि आप आप हम सब पुन: एक साथ “मेरा वोट मेरे गाँव” का आवाहन में अपनी भागीदारी निभाएं।

श्रीमती मीरा रतूड़ी ने कहा है कि देश का हिमालयी राज्य यह पर्वतीय प्रदेश उत्तराखण्ड और इस राज्य की उत्पत्ति का प्रमुख कारण इसकी भौगोलिक संरचना ही है। इस पर्वतीय प्रदेश की मूल आकांक्षा इस राज्य का समग्र विकास है। देश का यह पर्वतीय प्रदेश अपने गाँवों और गाँवों के रैवासियों की वजह से जग प्रसिद्ध है।

उन्होंने कहा कि आज जब गाँव संकट में हैं, तब अपने गाँवों को बचाने के लिए इन गाँवों के निवासियों की भूमिका खास हो गई है। अपने गाँवों को बचाने के लिए जरूरत है, गाँवों के उन निवासियों की जो अपने गाँव की सरहद से देश और दुनिया के कोने-कोनों में पहुंच गए हैं। गाँव में उनकी भूमिका का मूलमंत्र है मेरा वोट मेरे गाँव।

मीरा रतूड़ी ने कहा है कि गाँव का वासिन्दा अपना वोट करने अपने गाँव आएगा तो गाँव आबाद होगा और विधानसभा तथा संसद में पर्वतीय अंचल का प्रतिनिधित्व होगा। उनकी पीड़ा में इस बार के त्रिस्तरीय चुनाव में गाँव से घटते वोटर्स व बंजर होते खेत खलिहान शामिल हैं। मीरा मानती हैं कि एक मात्र जनसंख्या घनत्व व वोटर लिस्ट की वृद्धि ही है कि आगामी समय में हम उन विधान सभा क्षेत्रों के घटते मतदाताओं के कारण अपनी विधान सभाओं से चुनकर जाने वाले पर्वतीय विधायकों के घटने को रोक सकते हैं।

कैसा हो पर्वतीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व 

भाजपा प्रदेश मंत्री मीरा रतूड़ी का मानना है कि राज्य की विधानसभा में राज्य गठन के समय 40 सीटें पर्वतीय क्षेत्र से और 30 सीटें मैदानी क्षेत्र से थी। विधानसभा में पर्वतीय अंचल का यह प्रतिनिधित्व पर्वतीय क्षेत्र के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2012 के परिसीमन में विधानसभा की ये 40 से घटकर 36 हो गई। पर्वतीय अंचल की ये विधानसभा सीटें अगले परिसीमन में और कम हो जाएंगी, क्योंकि गाँव से गया आदमी अपना वोट डालने अपने गाँव नहीं जाता और परिसीमन इसी आंधार पर होता है।

मीरा कहती हैं कि ‘मेरा वोट मेरे गाँव’ का यह अभियान लोगों को अपनी जमीन से जोड़कर रखेगा। नई पीढ़ी को अपने गाँव, अपनी जड़ों और जमीन की जानकारी और समझ होगी। तभी तो अपनी जमीन के बेहतरीन सदुपयोग की संभावनाएं बनेंगी। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी अपने गाँव का नाम भर जानती है, इसके अलावा उसे कोई जानकारी नहीं है, जो यहाँ के मूल निवासी के लिए खतरनाक स्थिति है। ‘मेरा वोट मेरे गाँव’ अगर अपने गाँव में रहेगा तो त्रि-स्तरीय पंचायतें और मजबूत रहेंगी और तभी मेरे गाँव का समग्र और सुनियोजित विकास भी होगा।

उन्होंने कहा कि ‘मेरा वोट मेरे गाँव’ की आवश्यकता और उपयोगिता कितनी अहम है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा के सदस्य श्रीमान अनिल बलूनी जी गाँव के मतदाता को वापस गाँव लाने का अभियान चला रहे हैं। सांसद की यह पहल अपनी मातृभूमि के वैभव को बढ़ाने की अनुकरणीय पहल है। उन्होंने कहा कि क्यों न हम भी श्रीमान अनिल बलूनी जी की इस जन-उपयोगी धारणा को अंगीकार कर इसे अभियान का रूप दें और पुन: अपने-अपने गाँव में हरियाली व खुशहाली लाएं क्योंकि भरत भूमि भारत बर्ष की  मुख्य रीढ़ भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था ही मानी जाती है।

श्रीमती मीरा रतूड़ी ने आवाहन करते हुए कहा कि दिल पर हाथ रखकर सोचिए कि क्या वाकई आप अपने पैतृक गाँव को भूल गए? नहीं ना! तो आइए इस अभियान का हिस्सा बनते हैं और मेरा वोट मेरे गाँव में हो इसके लिए अपने गाँव पहुंचते हैं। उन्होंने सभी से अनुरोध किया है कि हम अपना व अपने परिवार का वोट अपने गाँव में रखें ताकि हमारी आने  वाली पीढियां अपने पर नाज कर सकें।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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