बड़ा प्रश्न….? पर्वतीय क्षेत्रों में नदियों को क्यों बोला जाता है गाड़….!
(मनोज इष्टवाल)
राधा कुमुद मुकर्जी अपनी पुस्तक हिन्दू सभ्यता के पृष्ठ 70-71 में लिखते हैं कि “वेदों का एक बहुत बड़ा अंश उस प्रदेश में लिखा गया है जहाँ घनघोर बर्षा, बिजली और गर्जन होता था। यह बर्णन पंजाब की अपेक्षा ब्रह्मावर्त प्रदेश का है!” एथिनिकल सेटलमेंटस इन एंसियेंट इंडिया के पृष्ठ संख्या 143 पर पाद टिप्पणी करते हुए लिखते हैं कि- “यह प्रदेश ब्रह्मपुर के नाम से भी प्रसिद्ध था जो पश्चिम में अलकनंदा और पूर्व में करौली नदी के बीच था।
ऐसी ही दर्जनों टिप्पणियाँ व लेख यह साबित करने को काफी हैं कि वेदों की संरचना/रचना सबसे अधिक उत्तराखंड के गढवाल मंडल क्षेत्र में हुई है। फिर भी हमारे कई विद्वान् बिना वेदों की ऋचाओं की गहराई जाने ही इसे पंजाब में भी मान लेते हैं। और तो और कई विद्वान् आर्यों का मार्ग मध्य भारत क्षेत्र से पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवेश मार्ग बताकर अपनी विद्वता का परिचय देते हैं लेकिन मूलतः विद्वानों के सन्दर्भों व दलीलों को बिना पढ़े जाने ही अपना मत प्रकट कर देते हैं। यह सब जानने के लिए हमें ऋग्वेद की ऋचाओं का अध्ययन करना चाहिए।
ऋग्वेद के अनुसार उत्तरी यमुना तट पर यह भयंकर युद्ध हुआ था जो दास और आर्य संघर्ष में बर्णित है। उसमें दासराज युद्ध का उल्लेख आया है जो सुदास और उत्तर पश्चिम के जनों के बीच हुआ था। इनमें तीन जन यमुना तटवासी बताये जाते गये हैं! सुदास की विजय का श्रेय ऋषि वशिष्ठ को दिया जाता है जिन्होंने सुदास की विजय के लिए नदियों में गाध बनाया था। वहीँ इंद्र के बज्र के प्रभाव से बड़ी नदियों साथ-साथ सैकड़ों पर्वत शिखरों को काटकार या तोड़कर उनसे जो नदियाँ निकली उन्हीं में ऋषि वशिष्ठ ने गाध भरकर शम्बर के लाखों सैनिकों को सुदास पर चौतरफा युद्ध करने से रोका। ऋग्वेद के अनुसार इंद्र ने पर्वतों के पंख काट डाले और सुदास के पिता दिवोदास का पक्ष लेकर शम्बर के दुर्ग नष्ट कर डाले थे। राहुल सांस्कृत्यान अपनी पुस्तक “गढवाल परिचय (१) पृष्ठ संख्या 60 पर लिखते हैं कि राजा शम्बर पर्वतवासी था इसलिए उसके दुर्ग गढवाल-कुमाऊं में ही रहे होंगे!
इस युद्ध के समाप्त होने के बाद अब उन बहने वाली छोटी नदियों को क्या नाम दिया गया यह कहना कठिन होगा लेकिन विद्वानों का मत है कि प्रागैतिहासिक काल तक इसे गाध नाम से ही पुकारा जाता था जो वर्तमान तक अपभ्रंश होता हुआ गाड़ शब्द में तब्दील हो गया है। यदि हम इस सन्दर्भ को सत्य माने तब यह तो साबित होता ही है कि वर्तमान में भी आपदा की जनक बड़ी नदियाँ नहीं बल्कि यही छोटे गाड-गदेरे होते हैं। कुछ विद्वान् गाड शब्द से ही गढ़ व गढ़वाल की उत्पत्ति भी मानते हैं। अब यह कितना सच है गढ़ व गढ़वाल पर व्यापक शोध करने पर ही पता चल पायेगा।
(सन्दर्भ:- गढवाली लोकगीत (गोविन्द चातक पृष्ठ 14-15), “एथिनिकल सेटलमेंटस इन एंसियेंट इंडिया के पृष्ठ संख्या 143, राधा कुमुद मुकर्जी (हिन्दू सभ्यता के पृष्ठ 70-71), संपूर्णानंद (आर्यों का आदिदेश पृष्ठ ४३), पार्जिटर अन्सियेंट हिस्टोरिकल ट्रेडिशन पृष्ठ 299)!