यह सचमुच में बड़ा प्रश्न है कि टिहरी राजदरबार के दीवान चक्रधर जुयाल के वे कार्य कभी सामने नहीं लाये गये जो उन्होंने समाज हित में अभूतपूर्व किए। हाँ…अगर दीवान चक्रधर जुयाल का कहीं नाम आता है तो रवाई घाटी के खलनायक के रूप में उन्हें जाना जाता है। उत्तरकाशी के बड़कोट के नज़दीक तिलाडी कांड में निहत्थों पर गोली चलाने के बाद उन्हें गढ़वाल के खलनायक के रूप में गिना जाता रहा है और कहा तो यह भी जाता है कि इसी कारण ग़ुस्से में राजा ने उनकी आँख फ़ोड डाली थी। लोगों का तो यह भी मानना है कि तिलाडी का असली सच बाहर नहीं आ पाया।
कुल 09 लाख 06 हज़ार 133 रुपये में सन् 1936 में मुनि की रेती ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक बनी 85 किमी. सड़क उस दौर में उत्तर प्रदेश की सबसे कम राशि में बनाई गई सड़क थी। तोताघाटी में सड़क बनाना कोई सरल काम नहीं था इसके लिए ठेकेदार प्रतापनगर टिहरी के ठेकेदार तोतासिंह उर्फ़ लाट साहब तोता सिंह रांगड़ को अपनी पत्नी के जेवर तक गिरवी रखने पड़े थे। कहते हैं कि टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने तोता सिंह रांगड़ को चांदी के 50 सिक्के देकर सड़क काटने को कहा तो वह तैयार हो गए। उन्होंने प्रतापनगर के रौणिया गांव से करीब 50 ग्रामीण साथ लिए और चट्टान काटने के लिए निकल पड़े। इस कार्य में लगभग 70 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए। जिसकी भरपाई दादा को घर की सारी जमा-पूंजी और दादी रूपदेई के जेवर बेचकर की। कहते हैं जहाँ इस रोड के काटे जाने के उपरान्त ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लाट साहब उपाधि से सम्मानित किया वहीं राजा टिहरी ने इस घाटी का नाम ही तोता घाटी रख दिया।
कहा तो यह भी जाता है कि तोता सिंह को भी प्रति किमी. वही रेट राजा द्वारा दिया गया जो प्रति किमी. सरल भू-भाग में बनाई गई सड़क का रेट था अर्थात् लगभग 14 हज़ार 600 रुपये! जबकि इस चट्टानी भू-भाग काटने के लिए कई ठेकेदार फेल हो गए थे व जब सबने हाथ खड़े कर दिए थे तब राजा टिहरी के दीवान चक्रधर जुयाल स्वयं चलकर तोतासिंह के गाँव गए थे व उन्हें इस सड़क को पूरा करने के लिए मनाया था। आज तोताघाटी ठेकेदार तोता सिंह के नाम से जानी जाती है लेकिन पौड़ी गढ़वाल के विकास खंड कोट अन्तर्गत झाँझन गाँव में जन्मे दीवान चक्रधर जुयाल को कभी इसका श्रेय नहीं दिया गया जिसने मुनिकीरेती से कीर्तिनगर तक सड़क निर्माण करवाया। आइए जानते हैं सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ योगेश धस्माना इस संबंध में क्या लिखते हैं:-
तोताघाटी के शिल्पी , दीवान चक्रधर जुयाल।
(डॉ योगेश धस्माना)
ब्रिटिश उत्तराखंड में प्रथम आईपीएस चक्रधर जुयाल ने पहले 1928 में नरेंद्रनगर से ऋषिकेश और मुनि के रेटिंग कीर्तिनगर, टिहरी रिसायसत में 1935 में सड़क बनाकर एक रिकार्ड स्थापित किया। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा राजा नरेंद्र शाह के अनुरोध पर इस सड़क को निर्माण की जिम्मेदारी चक्र धर जुयाल को सौंपी थी। आज की तोता घाटी निर्माण में जब पहाड़ को काटने में कठिनाई महसूस हुई, तब दीवान चक्रधर जुयाल ने स्थानीय मजदूरों की सहायता से प्रताप नगर के प्रसिद्ध ठेकेदार तोता सिंह को सड़क निर्माण के सहयोग के लिए बुलाया। चक्रधर जुयाल को इस बात का एहसास था कि प्रताप नगर के ठेकेदार पूरे उत्तराखंड में पहाड़ काटने में दक्षता रखते हैं, इसलिए उन्होंने इस काम में सर्वाधिक मजदूर और तकनीकी सहायक के रूप में प्रतापनगर के मजदूरों की सेवाएं ली।
तीन साल के कठोर प्ररिश्रम के बाद मार्च 1936 में चक्रधर ने टिहरी रियासत के भीतर कीर्तिनगर तक सड़क पहुंचा कर जनता का दिल भी जीता । स्वयं राजा नरेंद्र शाह ने चक्रधर के परिश्रम की तारीफ की । पाठकों को यह भी जानकारी दे दूँ कि ब्रिटिश गढ़वाल में इस समय तक उपलब्ध नही हो सकी थी। तब मुनि की रेती से कीर्तिनगर तक लगभग 85 किलोमीटर के मोटर मार्ग के निर्माण में 906133 का खर्चा आया था। औसतम एक किलोमीटर पर 14615 का खर्चा आया था। तब उत्तर प्रदेश के इतिहास में भी यह खर्च सबसे न्यूनतम था। इस मोटर मार्ग पर पहली बार गाड़ी चलाने का श्रेय सते सिंह ड्राइवर को मिला था । सड़क से देवप्रयाग पहुंचने पर राज परिवार की ओर से चक्र धर के परिजनों ने भी पूजा – अर्चना की थी । इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर मूंगा नामक बादी ने गीत की रचना कर चक्रधर जुयाल के पराक्रम और साहस की तारीफ करते हुए , टिहरी की जनता की ओर से उनका आभार व्यक्त किया। चक्रधर जुयाल का जन्म 1 जुलाई 1877 को पौड़ी में और उनकी मृत्यु 24 दिसंबर 1948 को ढकरानी, देहरादून में हुई थी। चक्रधर जुयाल ने उत्तर प्रदेश के जालौन में पुलिस सुपरिटेंडेंट के पद पर रहते हुए चंबल घाटी के डाकुओं का भी सफाया किया था। 1935 में ब्रिटिश व्यापारी आर्थर के सहयोग से उन्होंने देहरादून में दून स्कूल की स्थापना में विशेष सहयोग दिया था।