(मनोज इष्टवाल)
कहावत है कि राजनीति, पुलिस, पत्रकार व वकील कभी सगे नहीं होते। यकीनन इस विधान सभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा द्वारा बांटी गई टिकट बंटवारे ने यह साफ तो कर ही दिया है। पिछले चुनाव से पूर्व 2012 के चुनाव तक जो पार्टी उत्तराखंड में “खंडूरी है जरूरी” का नारा देती थी, आज उसी भाजपा के लिए “खंडूरी से दूरी” जैसे स्लोगन बन गया हो।
युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब मुख्यमंत्री बनने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जनरल खंडूरी से मिलने उनके आवास पहुंचे थे तब लगा था कि खामख्वाह राजनीतिक हलकों में खंडूरी व कोश्यारी की दूरियों के अनर्गल किस्से तैरते रहते हैं क्योंकि जहां पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत खंडूरी जी के राजनीतिक शिष्य माने जाते रहे हैं वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भगत सिंह कोश्यारी के शिष्यों में शुमार हैं।
राजनीतिक परिपेक्ष्य में डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की पसन्द में भी जनरल खंडूरी को शामिल नहीं समझा जाता रहा है, इसीलिए जब भाजपा की पहली लिस्ट आई और उसमें ऋतु खंडूरी के टिकट काटा गया तो आम राय यह मानी गयी कि निशंक लॉबी व कोश्यारी लॉबी ने जानबूझकर ऋतु खण्डूरी का टिकट काटा है। वहीं सच्चाई यह है कि अपनी विधान सभा यमकेश्वर में कई विकास योजनाएं संचालित करवाने वाली ऋतु खण्डूरी जनता का विश्वास इसलिए नहीं जीत पाई क्योंकि विरासत में मिली साफगोई व आम लोक समाज के बीच उठना बैठना कम होने से वह कभी क्षेत्रीय जनता की पसन्द नहीं बन सकी और यही सर्वे में संघ संगठन की रिपोर्ट भी कहती आई है।
वर्तमान में कोटद्वार से टिकट मिल जाने पर जहां कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेसी उम्मीदवार पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी आराम से चुनाव जीत जाएंगे वही राजनीति के जानकारों का मानना है कि मुकाबला अब कांटे की टक्कर का है क्योंकि इस बार हो न हो क्षेत्रीय जनता जनरल खण्डूरी को कोटद्वार से हराने का ऋण चुकता करे।
वहीं भाजपा के थिंक टैंक ने बेहतर प्लानिंग कर ऋतु खण्डूरी को कोटद्वार से टिकट दिया है, वरना टिकट की दौड़ में कोटद्वार विधायक व पूर्व मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के ओएसडी विनोद रावत का नाम भी तेजी से चला व साथ ही धीरेंद्र सिंह चौहान, सुमन कोटनाला, दीप्ति रावत भारद्वाज सहित कुछ अन्य नाम भी चल रहे थे। जनरल खण्डूरी के करीबी माने जाने वाले धीरेंद्र चौहान समर्थकों द्वारा पार्टी विरोधी नारे लगाने के साथ ही जहां पार्टी से धीरेंद्र चौहान का टिकट काटा जाना तय समझा जा रहा था वहीं धीरेंद्र चौहान के साथ बगावती तेवरों में सम्मिलित पूर्व सैनिको की नाराजी भी पार्टी के लिए सरदर्द बनी हुई थी। ऐसे में ऋतु खण्डूरी ही एक मात्र ऐसी बची थी जिनके नाम पर विरोध की इसलिए गुंजाइश नहीं दिख रही थी क्योंकि टिकट के जितने भी दावेदार थे, कहीं न कहीं वे सभी जनरल खण्डूरी की राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोग हैं। ऐसे में यह बात तो तय है कि ऋतु खण्डूरी का कोटद्वार से टिकट फाइनल होने के बाद भाजपा के प्रति आम मतदाता का गुस्सा शांत हुआ होगा व अब विधान सभा चुनाव की लड़ाई मजेदार होने की संभावना है, क्योंकि अब पलडा सन्तुलित दिखाई दे रहा है।