Friday, July 26, 2024
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क्योंकि सवाल राजनीतिक है

जो समस्या पैदा हुई है, उसका कारण संविधान की अस्पष्टता नहीं है। अगर केंद्र में सत्ताधारी पार्टी सर्वसत्तावादी महत्त्वाकांक्षाएं पाल ले, तो वे तमाम संवैधानिक प्रावधान महज कागज पर लिखी लकीर बन जाते हैं, जिनका मकसद व्यवस्था को नियंत्रित और संतुलित रखना है।
विधेयकों को मंजूरी देने के मामले में राज्यपालों की अपेक्षित भूमिका के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, उससे व्यवहार में कितना फर्क पड़ेगा, यह कहना मुश्किल है। कोर्ट इस बारे में संविधान के प्रावधान की उचित व्याख्या की है। लेकिन यह प्रावधान तो पहले से मौजूद है और उसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। पंजाब और केरल की सरकारों और वहां के राज्यपालों के बीच चल रहे विवाद में अदालत ने कहा है कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी नहीं देना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए बिल को “यथाशीघ्र” पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटा देना चाहिए।

अब यहां असल मुद्दा इसी “यथाशीघ्र” की व्याख्या का है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं की। संभवत: ऐसा करना संविधान के मुताबिक उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इसीलिए उसने जो व्यवस्था दी है, उसे एक तरह से कोर्ट की सदिच्छा कहा जा सकता है। “यथाशीघ्र” का मतलब कितना समय है, इस बारे में राज्य सरकार और राज्यपाल की समझ अलग-अलग होने की गुंजाइश बची हुई है।

कोर्ट ने कहा है कि किसी विधेयक को लौटाए जाने के बाद अगर विधानसभा उनकी आपत्तियों पर गौर करते हुए या उसे नामंजूर करते हुए विधेयक को फिर से पारित कर देती है, तो फिर राज्यपाल के पास उस पर दस्तखत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यह भी संवैधानिक प्रावधान को दोहराया जाना ही है। बहरहाल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए कि जो समस्या पैदा हुई है, उसका कारण संवैधानिक प्रावधान की अस्पष्टता नहीं है। बल्कि उसकी जड़ें मौजूदा राजनीतिक माहौल में छिपी हैं।

अगर केंद्र की सत्ता में मौजूद पार्टी सर्वसत्तावादी महत्त्वाकांक्षाएं पाल ले, तो वे तमाम संवैधानिक प्रावधान महज कागज पर लिखी लकीर बन जाते हैं, जिनका मकसद व्यवस्था को नियंत्रित और संतुलित रखना है। चूंकि ऐसा एक राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से होता है, इसलिए इसका समाधान भी ऐसी ही प्रक्रिया से ढूंढा जा सकता है। राज्यपालों के व्यवहार से जो राजनीतिक दल अपने को पीडि़त महसूस कर रहे हैं, उन्हें यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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