विस्थापन हो या विकास..! दोनों का ही बाट जोह रहे हैं पर्वत क्षेत्र के चार गॉव..
मनोज इष्टवाल
देहरादून, 20 जुलाई 2013।
पर्यटन प्रदेश के रूप में अग्रणीय सहभागिता निभाने वाले उत्तराखंड प्रदेश के पर्यटक स्थलों तक पहुँचने के जितने भी मार्ग रहे हैं, उन्हें राज्य निर्माण के बाद प्रदेश सरकार ने तेजी से विकसित करना शुरू कर दिया है, जोकि एक सराहनीय कदम है। लेकिन…. दीपक तले अँधेरा बना पर्वत क्षेत्र के बडासू पट्टी के चार गॉव वर्तमान में भी वन्यजीवों सा जीवन यापन कर रहे हैं।
पृथ्वी का स्वर्ग कहे जाने वाले ट्रैकिंग का पर्यटन स्थल हर-की-दून क्षेत्र के ओसला, पवाणी, गंगाड और डाट्मीर ऐसे चार गॉव हैं, जहाँ न अभी तक बिजली पहुंची है न सड़क…। स्कूल माध्यमिक कक्षाओं तक हैं लेकिन अध्यापक नहीं हैं। हॉस्पिटल दूर-दूर तक नहीं हैं। 30-25 किलोमीटर के दायरे में फैले इन गॉवों की दशा 18वीं सदी में जीवन यापन करने वाले मानवों जैसी दिखाई देती है।
(ओसला के ग्रामीणो ने पहनाये अंग वस्त्र)
तालुका से ओसला गॉव तक यह सम्पूर्ण क्षेत्र मूलभूत सभी सुविधाओं से वंचित है। यहाँ के ग्रामीणों की पीड़ा है कि गोविन्द राष्ट्रीय वन्य राष्ट्रीय पशु विहार क्षेत्र में रहने की ही वे कीमत चुका रहे हैं। घास लकड़ी से लेकर खेत खलियान तक राष्ट्रीय पार्क की दखल है। हर वर्ष वन्य जंतु हमारे जानवरों को मार देते हैं। विभाग से शिकायत दर्ज करो तो वहां से भी कोई कार्यवाही नहीं होती। पट्टी पटवारी को ढूँढने जाओ तो वह भी कई दिनों तक हाथ नहीं आते, ऐसे में अगर एक खच्चर को भी बाघ या तेंदुवे ने मार दिया और उसकी समय पर सूचना राष्ट्रीय पार्क के कर्मियों को नहीं दी गई तो नुकसान ग्रामीणों को ही उठाना पड़ता है। एक खच्चर की कीमत वर्तमान में 60 से 80 हज़ार रुपये तक होती है। यह कीमत जोड़ने के लिए एक ग्रामीण को कई साल लग जाते हैं। ऐसे जानवर के मरने से उसके पूरे परिवार की रोजी-रोटी अलग छिन जाती है। आय के अन्य साधन कोई हैं भी नहीं, क्योंकि यहाँ का लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण वर्ग आज भी अनपढ़ है। उन्हें कहीं अन्यत्र भी कोई काम नहीं मिल पाता।
ज्ञात हो कि पूर्व में अकेले ओसला गॉव के जोत सिंह, झावर सिंह, हम्मा नन्द, रणजोर सिंह, सुखिया लाल, देबुडिया लाल, नेगी सिंह, खजान सिंह, राम लाल सिंह, जयराम सिंह, बहात्तर सिंह इत्यादि ग्रामीणों के घोड़े, खच्चर, गाय-बैल, दर्जनों भेड-बकरियों को साल की शुरुआत से लेकर अब तक तेंदुआ और बाघ अपना शिकार बना चुके हैं।
(पवाणी गाँव की महिलाओं के बीच)
ओसला गॉव उत्तराखंड प्रदेश का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश का सबसे सीमान्त गॉव है। लगभग 175 परिवारों के इस गॉव नें एक प्राथमिक विद्यालय और एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भवन बेहद जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं। जहाँ लगभग 130 छात्र-छात्राएं मात्र एक शिक्षामित्र के भरोंसे अध्ययनरत हैं। यही स्थिति पवाणी, गंगाड, धारकोट और डाटमीर की भी है। मात्र डाट्मीर ही एक ऐसा विद्यालय है जहाँ सरकारी अध्यापक पूर्ण वेतन पर कार्यरत हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या सड़क मार्ग न होने से भी जुडी है। इन्हें 10 किलो राशन के लिए भी मीलों पैदल चलना पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति बीमार पड जाय तो उसे हॉस्पिटल तक ले जाने के लिए भगवान् भरोंसे रहना पड़ता है। कई बार प्रसव पीड़ा झेल रही महिलाओं ने बिना स्वस्थ्य सुविधा रास्ते में ही डांडी में दम तोड़ दिया। जिससे कई बच्चे अनाथ हो गए और कई गरीब परिवार और गरीबी की गर्त में ही दम तोड़ देते हैं।
(ग्रामीण महिलाओं को दैनिक दिनचर्या की सिरदर्द, जुखाम-बुखार की दवाईयां व हल्की चोट की पट्टियां बाँटते हुए)
इन गॉवों की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह लगता है कि यह क्षेत्र कभी भी आपदाग्रस्त हो सकता है, क्योंकि सुपिन नदी के दाहिने छोर पर बसा गंगाड गॉव इसकी जद में है। सुपिन नदी से मात्र 20-25 मीटर की दूरी पर इस गॉव के कई भवन हैं जिनमें काफी संख्या में लोग रहते हैं। वहीँ डाटमीर गॉव में विगत कई वर्ष पूर्व लगी आग से 70 मकान जलकर स्वाहा हो गए थे। सड़क मार्ग न होने के कारण ये लोग मूक होकर अपने मकानों को जलते देखने के सिवाय कुछ भी न कर पाए। लकड़ी के बने इन भवनों का धुआं कई दिन तक राजनीतिक गलियारों में भी उठा लेकिन वक्त से साथ ही सब समाप्त हो गया। सबसे विकट स्थिति में ओसला और पवाणी गॉव हैं यहाँ के लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। बिना बिजली पानी सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहाँ के लोग अब सुविधा न मिलने पर विस्थापन की बात कर रहे हैं।
ज्ञात हो कि पूर्व में गोबिंद वन्य राष्ट्रीय पशु विहार ने इन गॉवों के विस्थापन को लेकर ग्रामीण से बैठक भी की थी जो बेनतीजा निकली, लेकिन सरकार के रवैये से ऊबे ये ग्रामीण अब स्वयं ही चाहते हैं कि यदि उचित मुआवजा देकर उन्हें देहरादून बसा दिया जाता है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। स्कूल, बिजली, स्वास्थ्य, पेयजल और सड़क मार्ग से वंचित इस क्षेत्र की दशा भले ही आदिमानवों जैसी हो लेकिन इन चारों गॉव की पंचायतों ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेकर पूरे इलाके को पूर्ण रूप से शराबमुक्त क्षेत्र बना दिया है जिसके लिए इस क्षेत्र के युवाओं और महिलाओं ने विशेष भागीदारी निभायी है। इस सम्बन्ध में ग्राम प्रधान ओसला श्रीमती राम चंदरी देवी,ग्राम प्रधान पवाणी श्रीमती अमरो देवी, ग्राम प्रधान गंगाड श्रीमती गुड्डी चौहान एवं कार्यवाहक प्रधान डाटमीर श्यामू द्वारा समस्त समस्याओं के साथ एक लिखित प्रस्ताव अपनी क्षेत्रीय उपलब्धियों के साथ मुख्यमत्री व ग्राम्य विकास मंत्री को भेज चुके हैं। इन ग्राम सभाओं का कहना है कि सरकार हमें या तो शीघ्रातिशीघ्र मुख्यधारा से जोड़े या फिर उचित मुआवजा देकर विस्थापन करे। इन चारों गॉव के ग्रामीणों का कहना हो कि या तो सरकार इस क्षेत्र का विकास करे अन्यथा हमें यहाँ से देहरादून जैसी जगह में विस्थापित करे ताकि हम अपने बच्चों का भविष्य बना सकें।