ग्राउंड जीरो से संजय चौहान !
(सावन के महीने के अंतिम सोमबार विशेष)
लीजिये सावन के अंतिम सोमबार को आपको एक अनूठे शिव मंदिर के बारे से आपका परिचय कराते हैं जहां भगवान शिव के साथ साथ रावण की भी पूजा की जाती है। चमोली जनपद के विकासखंड घाट के बैरासकुंड में स्थित है भगवान शिव का पौराणिक मंदिर है। कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहां पर लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दस हजार वर्ष तक तपस्या की थी। इस स्थान पर रावण शिला और यज्ञ कुंड आज भी मौजूद हैं। साथ ही भगवान शिव के प्राचीन मंदिर में शिव स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं। श्रद्धालु यहां शिव के साथ रावण की भी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं।
— ये है मान्यता!
‘स्कंद पुराण’ के केदारखंड में उल्लेख है कि यहां तपस्या के दौरान जब रावण अपने नौ शीश यज्ञ कुंड में समर्पित कर दसवें शीश को समर्पित करने लगा तो साक्षात भगवान शिव उसके सम्मुख प्रकट हो गए। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे मनवांछित वरदान दिए। लोक मान्यता है कि इस दौरान रावण ने भगवान शिव से सदा इस स्थान पर विराजने का वरदान भी मांगा था। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को शिव की पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है।
— दशानन के कारण ही दशोली नाम पडा!
जानकार बताते हैं कि रावण ने इसी स्थान पर ‘नाड़ी विज्ञान’ व ‘शिव स्त्रोत’ की रचना भी की थी। हर साल सावन के महीने और महाशिवरात्रि को यहाँ पर हजारों श्रद्धालु भोले के दर्शनार्थ पहुंचते हैं। यहाँ आने वाले भक्त रावण को भी श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। मंदिर परिसर में मौजूद कुंड के पास रावण शिला में रावण की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस पूरे क्षेत्र का नाम रावण (दशानन) के नाम से ही दशोली पड़ा। दशोली (दशमोली) शब्द रावण के दस सिर का अपभ्रंश है।
— कैसे पहुंचे इस मंदिर में !
ऋषिकेश से नंद्रप्रयाग तक लगभग 200 किमी बस, छोटे वाहन या निजी वाहन से। नंद्रप्रयाग से लगभग 25 किमी की दूरी पर नंद्रप्रयाग घाट सड़क मार्ग पर गिरी पुल होते हुए बैरासकुंड पहुंचा जाता है। बैरासकुंड में रहने और खाने के लिए मंदिर समिति के आवास और अन्य पर्याप्त व्यवस्था है।
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