Sunday, September 8, 2024
Homeलोक कला-संस्कृतिआश्चर्यजनक..! लेकिन सच! आज भी 300 किमी. नंगे पैर खेड़मी गाँव से...

आश्चर्यजनक..! लेकिन सच! आज भी 300 किमी. नंगे पैर खेड़मी गाँव से भराडसर ताल की यात्रा करते हैं ग्रामीण!

(मनोज इष्टवाल)

एक श्रावण का अंतिम पड़ाव! दूसरा घनघोर घटाओं में घुप्प कोहरा! तीसरा बरसात की रिमझिम और चौथा जोंक का डर…! लेकिन देव दर्शन की ऐसी लालसा की लोग ख़ुशी-ख़ुशी नंगे पैर ही निकल पड़ते हैं अपने देवता की मूर्ती को स्नान करवाने के लिए बेहद दुर्गम भराडसर ताल की यात्रा पर! भराडसर ताल…!

यह आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि यह उत्तराखंड के पर्यटन विभाग के मैप में शामिल तो हो सकता है लेकिन यहाँ पर्यटन विभाग पहुँच भी पाया होगा यह जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है लेकिन हिमाचल प्रदेश की किन्नौर वैली उत्तराखंड की हिमाचल व उत्तराखंड सीमा पर स्थित इस ताल तक ट्रेकिंग करवाकर पर्यटन विभाग के राजस्व में खूब वृद्धि करवा रहा है, ठीक वैसे ही जैसे आराकोट-बंगाण के मोंडा-बलावट की शीर्ष चोटी चाईशिल तक उसने हिमाचल के रोहडू क्षेत्र से सडक पहुंचाकर यहाँ के सरू ताल की ख़ूबसूरती से हिमाचल क्षेत्र से ट्रेकिंग करने वाले ट्रेकर्स व पर्यटकों का मन मन्त्र-मुग्ध किया है! जाने कब उत्तराखंड सरकार ऐसे स्थलों को चिन्हित कर पाएगी!

ब्रहमकमल, फैन कमल, नील कमल से लकदक यह ताल उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से लगभग 16500 फीट की उंचाई पर स्थित है! यहाँ पहुँचने के दो मार्ग हैं! एक नैटवाड-दूणी-भित्तरी होकर भराडसर पहुंचता है जबकि दूसरा मार्ग मोरी-नैटवाड़, सांकरी होता हुआ सुपिन घाटी के जखोल से रेक्चा, कासला, राला होते हुए देववासा से भराडसर ताल पहुंचता है!

सुपिन नदी आर-पार रास्ते में फैले तमाम खूबसूरत बुग्याल (मखमली घास के मैदान), भेड़-बकरियों के झुंड, जंगलों में कुलांचे भरते भरड़, खूबसूरत बागान, नकदी फसलों से लकदक खेत, भोजवृक्ष व देवदार के जंगल पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उत्तरकाशी जिले में मोरी क्षेत्र के गोविंद पशु विहार में स्थित भराड़सर ताल उत्तराखंड का मानसरोवर कहलाता है। कहीं आयताकार तो कहीं वर्गाकार रूप में लगभग डेढ़ किमी व्यास में पसरी इस झील के चारों किनारों पर करीने के तराशी गई और खूबसूरत ढंग से बिछी स्लेट देखकर प्रकृति की अद्भुत संरचना का अहसास होता है।

जनश्रुतियों व पुराणों में बर्णित इस ताल की जो जानकारी प्राप्त होती है उसके अनुसार ज्ञात होता है कि एक दानव से प्राण रक्षा करते-करते बामन अवतारी भगवान बिष्णु ने इसी ताल में छुपकर अपनी जान बचाई थी! बिष्णु की इस दशा को देख बनदेवियों (मातृकाओं,एड़ी-आंछरियों) ने मिलकर उस दानव का संहार किया था! बिष्णु ने ख़ुशी होकर उन्हें यह क्षेत्र स्वछन्द रूप से विचरण करने हेतु दे दिया! यही कारण भी हैं की इस क्षेत्र में सबसे अधिक मात्रा में बनदेवियों (मातृकाओं,एड़ी-आंछरियों) रहनिवास है! वहीँ ग्रामीण इसे सिदुवा-बिदुवा की तपोस्थली व विचरण स्थल भी मानते हैं तो कोई इसे गंगू रमोला का भेड़-बकरी व खरक क्षेत्र! लेकिन जखोलवासी यहाँ हर साल अपने देवता बिदुवा की पूजा के लिए आते हैं!

खेडमी गाँव विकास खंड मोरी पट्टी-गड्डूगाड़ का एकमात्र ऐसा गाँव है जहाँ के रैबासी 12 या 7 साल में एक बार जरुर अपने देवता बैरिंग ऋषि महाराज को भराडसर ताल की यात्रा करवाते हैं! इस यात्रा की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि ये लोग लौट-फेर की एक सप्ताह की यात्रा एक समय के भोजन व नंगे पैर करते हैं!

खेडमी गाँव के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पंवार व सुरेन्द्र देवजानी का कहना है कि बैरिंग महाराज सात भाई हैं जिनमें सबसे बड़े भाई बैरिंग भराडसर से ही यहाँ आकर बसे थे! बताया जाता है कि एक राक्षस ने उनका यहाँ तक पीछा किया लेकिन यहाँ उसकी आँखों ने देखना बंद कर दिया इसलिए बैरिंग महाराज ने यहीं अपना निवास स्थल बना लिया! खेडमी गाँव इकलौता ऐसा गाँव है जहाँ बैरिंग महाराज के साथ गाँव पर ही बनदेवियों (मातृकाओं,एड़ी-आंछरियों) का एक बड़ी शिला के रूप में निवास स्थल है! सुरेन्द्र देवजानी बताते हैं कि बैरिंग महाराज के सात भाई इसी पर्वत क्षेत्र के विभिन्न गाँवों में पूजे जाते हैं जिनमें दौणी (दूणी), भीत्तरी, गोकुल-बंगाण, डोडरह-क्वार, सँगलवा (किन्नौर) इत्यादि सम्मिलित हैं!

भराडसर यात्रा से लौटे गाँव के ही बाबूराम पंवार बताते हैं कि हम यानि भराड्सर महाराज का माली जसराम सिंह पंवार, बैरिंग महाराज का माली मनोज सिंह पंवार, विनक सिंह, लायबर सिंह, सुमन सिंह, रिशू सिंह, प्रमेश सिंह, प्रवीण सिंह, दाणा राम, ज्ञान सिंह,  पंकज सिंह,चैन सिंह, सुदेश सिंह इत्यादि ने देवता के पुराने पैदल रास्ते से जब शुरू की तब ऐसा लग रहा था कि नंगे पैर सात दिन 6 रात की इस यात्रा को हम सफलता पूर्वक कर भी पायेंगे या नहीं लेकिन यह बैरिंग महाराज की ही कृपा रही कि हमें रास्ते भर कोई तकलीप नहीं उठानी पड़ी जबकि हमारे सभी पड़ाव जंगल, पर्वत व पठारी भू-भाग के थे! सिर्फ एक बार हमें रुपिन-सुपिन संगम में पोखु देवता के मंदिर के पास नैटवाड क्षेत्र में उतरना होता है! उन्होंने बताया कि उनका पहला पड़ाव खेड़मी-नानई-नैटवाड़ (पोखु)- धौला रोड होता हुआ भाटी तोक में पहुंचता है जहाँ पाबा नामक थाच में हम पहली रात्री गुजारते हैं! यह सफर सबसे लंबा होता है जो लगभग 50 किमी. दूरी तय करवाता है! पाबा थाच से दूसरे दिन हम जंगल-जंगल बुग्याल होते हुए कैराह ओडारी (कयरह ओडारी) बिश्राम के लिए रुकते हैं! यहाँ से तीसरा पड़ाव द्योखा ओडारी (देवखह: ओडारा) का होता है!

तीसरे पड़ाव के चौथे दिन प्रात: चार बजे हमें भराडसर के लिए निकलना होता है जहाँ पहुंचकर हम देवता की मूर्ती को स्नान करवाते हैं! पूजा धूप दीप कर रोट-प्रसाद बनाते हैं व श्रीफल काटते हैं व जितनी जल्दी हो वापसी के लिए निकल पड़ते हैं! वापसी में हम फिर इन्हीं पडावों से गुजरकर छटवें दिन गाँव के पास स्थित छाडा डंकार (छाडा ओडारी) में रुकते हैं और यहीं रात्री बिश्राम के लिए रुकते हैं! हमें वहां पहुंचा देख ग्रामीण गाजे-बाजे के साथ हमारा स्वागत करने आ पहुँचते हैं व हमें आदर सत्कार के साथ गाँव में ले जाते हैं जहाँ देव पूजा जुटती है व हमें भी दीप धूप सुंघाई जाती है! भराडसर यात्री अपने साथ भराडसर के प्रसाद के रूप में लाये ब्रह्मकमल व नील कमल को ग्रामीणों को बांटते हैं जिन्हें वह अपने सिर पर धारण कर अपने गाँव परिवार की रिधि-सिधि की कामना करते हैं! उन्होंने बताया कि इस यात्रा में सबसे बड़ा साथ हमारा मौसम ने दिया क्योंकि जहाँ भी हम जाते उधर मौसम साफ़ रहता जबकि नीचे घाटी में देखते तो वहां जमकर बारिश होती दिखाई दी! हां..दो एक दिन उन्हें जरुर हल्की-फुल्की बारिश का सामना करना पड़ा तब ऐसा लग रहा था मानों वह हमारा पसीना साफ़ करने के लिए आई हो! नंगे पैरों पर हमें जोंक तक नहीं लगी यह महाराज की कृपा रही! रोज हम दिन के बारह एक बजे खाना खाते थे और इसी में सारे दिन जीवन यापन करते थे! खाने में चावल, चूरमा, रोटी, बिस्कुट ही होते थे! यह जरुरी भी होता है क्योंकि पेट में जितना कम खाना होगा उतना चलने में दिक्कत महसूस नहीं होगी!

यह जरुर हुआ कि गाँव पहुँचने के बाद गाँव के देव आँगन में आस-पास गाँव से आये मेहमानों व ग्रामीणों ने सामूहिक गीत नृत्य किया व समापन पर जमकर बारिश ने मानों यह संकेत दिया हो कि हमारी यात्रा सफल रही! मेरा व्यक्तिगत मत है कि कहीं भृंग ऋषि को ही तो यहाँ के ग्रामीण बैरिंग महाराज या बैरिंग देवता के रूप में मानते हों क्योंकि ऋषि भृंग हिमालयी भू-भाग के ऋषि व मातृकाओं के गुरु माने जाते हैं! खेडमी के आँगन में मातृकाओं की शिला होनी भी इस बात की ओर संकेत करती है!  

बहरहाल भराडसर ताल की यात्रा से लौटे दल का आयोजक ग्राम पंचायत खेड़मी के चन्द्र सिंह, सलदार सिंह, पंवार सिंह, जसराम सिंह, विजेन्द्र सिंह, गंदर्भ सिंह, केशर सिंह पंवार, जगमोहन पंवार, अनिल पंवार, सुरेन्द्र खेड़मी देवजानी, दपत्तर सिंह, सुरपाल सिंह, नरेश सिंह, सोबेन्द्र सिंह, पुष्पेन्द्र सिंह, रचपाल सिंह, बाबूराम सिंह, लोकेन्द्र सिंह, राजेन्द्र सिंह, वृजमोहन सिंह, दीपक सिंह, उपेन्द्र सिंह वर्मा, मनोज डोभाल माली, राजेश डोभाल, कैलाश डोभाल, सुमन डोभाल, अनूप डोभाल, दाता राम चौहान, टीकाराम चौहान, सोबत सिंह चौहान, सुमन प्रसाद तिवाड़ी, विनीत तिवाड़ी इत्यादि अनेकों श्रदालुओं ने स्वागत किया व मेहमानों को प्रसाद स्वरूप भंडारा दिया।

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES

ADVERTISEMENT