बड़ी साजिश के तहत गढ़वाल नरेश ने इस तरह करवाया था रामा-धरणी खंडूरी बंधुओं को क़त्ल! फिर पड़ा भयंकर अकाल…।
(मनोज इष्टवाल)
भाग – 2/-
राजा प्रधुमन शाह के श्रीनगर पहुंचने से पहले ही पराक्रमशाह ने बमशाह को मिलने के लिए सलाण के मार्ग से प्रस्थान कर दियाया । लंगूर गढ़ के निकट, सम्भवतः द्वारीखाल के आसपास, उसे पता लगा कि राजा के साथ गए हुए सैनिक वहां आ पहुंचे हैं। पराक्रमशाह ने लंगूर पहुँचकर सैनिकों को ढांढस बंधाया। तथा उन्हें व्यय के लिए कुछ धनराशि देकर अपने पक्ष में कर लिया है। विदित होता है कि राजा के सैनिकों में रोहिला – पठान प्रादि प्रायुधजीवी थे, जो रुपया मिलने पर अपने स्वामी को बदलने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे ।
श्रीनगर पहुंचने पर राजा को पता चला कि पराक्रम शाह लंगूर की ओर चला गया है। राजा प्रधुम्न शाह उसे गोरखालियों द्वारा गढ़राज्य को आत्मसात करने के निश्चय से अवगत कराना चाहता था, तथा उससे अपनी भावी योजना के सम्बन्ध में परामर्ष करने को उत्सुक था। उसने पराक्रम को तुरन्त राजधानी में बुलाने के लिए उसके पास रामापति खंडूरी को लंगूरगढ़ की ओर भेजा और कहा कि थोड़ी – सी सेना के द्वारा राज्य की रक्षा सम्भव न होने के कारण लंगूर में पहुंची हुई सेना को भगादो और तुम तुरन्त राजधानी में पहुंचो। नेपाली सेना के साथ पत्र व्यवहार करने वाला व राजा प्रधुम्न शाह का सेनापति रामा खंडूरी लंगूर के पास (अजमीर के) रामड़ी-फलौंडा (रामणी-पुलिंडा) नामक ग्राम में पहुंचा, जहां उस दिन पराक्रम शाह टिका हुआ था। रामा और र उसका भ्राता धरणी राजा के हितैषी थे। जहाँ रामा नेपाली सेना के काठमांडू का वकील (वर्तमान में राजदूत) पद पर नियुक्त होने के साथ गढ़वाल राजा का सेनापति भी था वहीं धरणी अर्थात धरणीधर खंडूरी गोरखा सेना का लेखवार व गढ़वाल राजा की सेना का उप सेनापति भी था, साथ ही धरणी खंडूरी ने नेपाल राजा के मुख्य पुरोहित गजराज मिश्र की पुत्री बैजू बामणी (जिसे गोरख्याणी नाम से जाना गया) के साथ विवाह कर अपनी पत्नी बना लिया था। इसी कारण इन दोनों प्रभुत्व न सिर्फ़ गढ़राज्य में था बल्कि इन्हीं के कारण गोरखा या नेपाली सेना गढ़वाल को अपने नियंत्रण में न रखने की जगह प्रतिबर्ष सिर्फ 300 रूपये कर लेकर ही संतुष्ट थी। लेकिन रामा व धरणी के इस बडे कद से जहाँ एक ओर पराक्रम शाह को बड़ी जलन थी वहीं राजा के सिपहसलार शीशराम, शिवराम सकलानी व धौंकलानंद इन दोनों भाईयों से बहुत ईर्ष्या करते थे व वक्त बेवक्त राजा प्रधुम्न शाह के भाई पराक्रमशाह के कान भरा करते थे।
इधर पूर्व में दोनों भाइयों के बीच गद्दी के विवाद में रामा खंडूरी द्वारा सक्रिय सहयोग से सुदर्शनशाह ने पराक्रम को राज्य पर अधिकार जमाने से रोक दिया था। इसलिए रामा और पराक्रम शाह की आपस में ‘टेढ़’ (वैमनस्य) चला आता था। जब रामा खंडूरी राजा का संदेश लेकर रामणी-पुलिंडा पहुंचा तो पूर्व नियोजित साजिश के तहत पराक्रम शाह के करीबियों ने रात्रि के एक गणिका को तैयार कर दिया। रामा उक्त ग्राम में रात्रि को एक गणिका (बादणी ?) के साथ सोया हुआ था। दरअसल उसे एक विशिष्ट योजना के तहत ही गणिका को बड़ा लोभ देकर गणिका के साथ सुलाया गया था। सूचना पाकर राजा पराक्रम शाह को बदला लेने का अवसर मिल गया। उसने रामा को खाट पर सोते हुए ही मरवा दिया। उसके पास लेटी हुई गणिका प्राण बचाने हेतु भागकर पराक्रम के पास पहुँची । पराक्रम उसे देखकर कहा प्रसन्न हुआ और उसके साथ प्रेमपूर्वक मनोविनोद करने लगा । पराक्रम तब सैनिकों को अपने साथ लेकर श्रीनगर की ओर बढ़ा। वह धरणी का भी वध करने को उत्सुक था। 1792 में जब धरणी नेपाल नरेश हो मन्धि की शर्तों’ को अनुमोदित करवाने में तथा बन्दी बनाये गये सलाण निवासियों को मुक्त करवाने में सफल हो गया तो राजा पर उसका प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया था। इससे पराक्रम और उसके सभासदजन, शीशराम, शिवराम और धौंकलानन्द उससे ईर्ष्या करते थे , तथा उसका वध कराने का षडयन्त्र रच रहे थे। पराक्रम ने श्रीनगर पहुंचने से पूर्व ही अपने विश्वासपात्र धौंकलानन्द द्वारा छल से धरणी को हत्या करवा दी । कहा जाता है कि धौंकलानन्द ने धरणी के घर जाकर उससे कहा कि राजा ने तुम्हें तुरन्त बुलाया है। धरणी तुरन्त निशस्त्र ही उसके साथ चल पडा। अलकनन्दा तट पर ‘शीतला की रेती’ के पास पहुंचने पर धौंकलानन्द ने ऐसा खड्ग मारा कि धरणी का सिर तुरन्त कटकर घरती पर गिर पडा। यह आश्चर्यजनक है कि यहाँ इतिहासकारों ने नेपाली सेना के श्रीनगर में नियुक्त किये गये सिपहसलार धौंकल सिंह को धौंकलानंद के रूप में पेश कर दिया ताकि इसे भी ब्राह्मण ही समझा जाय।
रामा और धरणी की हत्या करके पराक्रम द्वारा सेना लेकर श्रीनगर के निकट पहुंचने का समाचार पाकर राजा प्रधुम्न शाह को बहुत दुःख हुआ। ब्राह्मण और राजभक्त खण्डूड़ी बन्धुओं की बिना कारण हत्या किए जाने से उसे बड़ी चिन्ता हुई, राजा जानता था इसका व्यापक असर अब नेपाल तक पड़ेगा। उन्हें अंदेशा हो गया कि सेना को साथ लाकर पराक्रम अपने अन्य विरोधियों तथा राजा को भी हत्या करवा सकता था। राजा ने तुरन्त कुमाऊ में बमशाह के पास सूचना भेजी कि पराक्रम, रामा धीर धरणी की हत्या करके तथा सेना लेकर श्रीनगर में आ गया है। यदि तुम हमारी रक्षा नहीं करोगे तो हम भी मारे जाएंगे। नेपाली अनुश्रुति के अनुसार इसी समय श्रीनगर में नेपाल दरबार की ओर से रखे गए हाकिम दलवीर राना ने पराक्रम शाह से मिलकर नेपाल सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। मौलाराम ने यद्यपि दलवीर राना के विद्रोह का उल्लेख नहीं किया है, किन्तु उसने लिखा कि ‘ चाचा-भतीजे की लड़ाई’ में, जो कि उन्हीं दिनों हुई थी, गोरखाली सैनिकों मे सुदर्शनशाह का पक्ष लिया था। सम्भवतः ये गोरखाली सैनिक नेपाली हाकिम के अंगरक्षक थे । गढ़नरेश कुछ वर्षों से कर की राशि चुकाने में ढोल-ढाल कर रहा था। बमशाह ने तुरन्त नेपाल दरबार को सूचना भेजी। बनारस से लौटकर राजराजेश्वरी देवी जोकि राजा रणबहादुर की सबसे बड़ी पत्नी थी, ने आर्थिक संकट को दूर करने एवं सैनिकों को कार्य पर लगाए रखने के लिए गढ़राज्य पर सीधा शासन स्थापित करने की जो योजना बनाई थी, उसके लिए उपयुक्त अवसर आ गया ।
भूचाल – रामा धौर धरणी की हत्या के कुछ ही समय पश्चात 1860 की भादों की अनंत चतुर्दशी (8 सितम्बर 1803) बृहस्पतिवार की रात्रि में डेढ़ बजे के लगभग राज्य और कुमाऊँ में एक भीषण भूचाल आया, जिसके झटके कलकता तक पहुँचे।
गढ़राज्य धौर कुमाऊँ में उसके झटके सात दिन छोर सात रात्रि तक आते रहे ।। कुमाऊँ को अपेक्षा उसका प्रहार गढ़राज्य पर अधिक तीव्र हुआ। श्रीनगर में प्रत्येक मकान को भूचाल से भारी क्षति पहुची। मुख्य राजपथ के दोनों ओर के मकानों में से 80 प्रतिशत इतने ध्वस्त हो गए और मानव – निवास के रहने योग्य नहीं रहे। राजप्रासाद के कुछ भाग सर्वथा नष्ट हो गए । अनेक भाग इतने जर्जर हो गए कि उनके पास पहुँचना संकटप्रद हो गया। राज्य में अन्यत्र भी ऊँचे मकानों और मन्दिरों को भारी क्षति पहुंची। जन-धन तथा पशुओं को अपार हानि हुई। जनसाधारण का विश्वास था कि यह भूचाल निरपराध ब्राह्मणों (रामा और धरणी ) की हत्या के कारण आया है ।
गढ़वाली अनुश्रुति के अनुसार कहते हैं पति की हत्या से रोती बिलखती बैजू बामणी नेपाल दरबार जा पहुंची और वहां अपनी फ़रियाद सुनाई। इससे नेपाल नरेश ही नहीं नेपाल की पूरी प्रजा कुपित हो उठी और तत्कालीन नेपाल नरेश रणबहादुर ने गढ़वाल में नरसंहार करने के लिए अपने दुर्दाँत सैन्य अधिकारियों को फ़ौरन आदेश दे दिया। और तब बरपा गोरख्याणी का कहर…।
(समाप्त)