वेद विलास उनियाल
उत्तराखंड में चल रहे राष्ट्रीय खेलों में उत्तराखंड की धाविका अंकिता ध्यानी ने दो गोल्ड और एक कांस्य पदक जीतकर अपने शानदार खेल का प्रदर्शन किया। पौड़ी के जहरीखाल के मेरुड़ा गांव की रहने वाली अंकिता को बचपन से ही एथलेटिक्स की तरफ रुझान था। गांव क्स्बों में ही वह दौड़ लगाती रही। धीरे धीरे उसे सफलता मिलती गई। 38वें नेशनल गैम्स में अंकिता स्टार बन चुकी हैं। आगे उससे और बड़े स्तर की स्पर्धाओं में बड़ी उम्मीदें हैं।
खेलों में सफलता अब केवल बड़े शहरों से ही हासिल नहीं होती। छोटे गांव कस्बों से निकली प्रतिभाएं अपने प्रदर्शन से सबको चौंका रही हैं। मानसी नेगी को भी खेल स्पर्धा में ख्याति मिली है। मानसी को उत्तराखंड की गोल्डन गर्ल कहा जाता है। उसने चीन के वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में कांस्य पदक जीता । गुवाहाटी में 37वीं जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अंदर 20 महिला वर्ग में उसने 10 हजार मीटर रेस का गोल्ड मैडल जीता था। इसी तरह परमजीत मिश्र मनीष रावत सूरज पंवार जैसे कई अच्छे खिलाडियों ने अपनी प्रतिभा दिखाई है। चमोली के सेकौट गांव की रहने वाली शालिनी नेगी ने वाक रेस में रजत पदक जीता । शालिनी ओलंपियन मनीष रावत से प्रभावित होकर एथलेटिक्स में आई। अपनी प्रतिभा मेहनत से वह आगे बढ रही है।
पौड़ी गढ़वाल के जहरीखाल की मेरुड़ा गांव की अंकिता ध्यानी ने एथलेटिक्स में इस तरह छा गई हैं कि सब अंकिता केसाथ साथ उसके गांव के बारे में भी जानकारी ले रही है। आखिर 38वें नेशनल गैम्स में अंकिता ने दो दो स्वर्ण पदक और एक रजत पदक हासिल किया है। नेशनल गेंम्स में उसे स्टार एथलेटिक्स के तौर पर माना जा रहा है। उत्तराखंड ने इस स्पर्धा में 22 स्वर्ण 23 रजत और 41 कास्य पदक हासिल किए हैं।
अंकिता को बचपन से ही एथलेटिक्स का शौक था। जयरीखाल अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र ने सैन्य क्षेत्र को कई बांकुरे दिए हैं। इसी जहरीखाल में समुद्र तल से 1400 मीटर ऊंचाई पर मेरुड़ा गांव की एक बच्ची सैन्य क्षेत्र में प्रशिक्षण पा रहे युवाओं को दौड़ते हुए देखती थी तो उसके मन में भी दौड लगाने की इच्छा जागी। बाद में वह उन लड़कों के साथ दौड़ने लगी। युवाओं के साथ एक छोटी लड़की ने दौड़ लगाने का निर्णय लिया। यह वह इलाका था जहां किसी नए एथलेटिक्स के लिए ट्रेक की कल्पना नहीं जा सकती थी। उसके लिए अवसर था कि जहां सैन्य प्रशिक्षण के लिए आए युवा दौड लगा रहे हो वह भी उनके साथ साथ दौड़े। स्कूल के अध्यापकों ने उसे प्रोत्साहित किया। और साथ ही दौड़ लगा रहे युवाओं ने। गांव कस्बे के मैदान में वह दौडती रही। दौड़ लगाते लगाते वह फर्राटा भरने लगी। उसकी प्रतिभा को कुछ देर में समझा गया। लेकिन फिर सबको अहसास हुआ कि अंकिता ध्यानी एथलेटिक्स दुनिया में सोना चांदी लाने वाली लड़की है।
आठवीं की पढाई करते हुए ही वह राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगी। 2013 से 2016 तक वह नेशनल गेम्स में भाग लेती रही। इसमें उसे सफलता नहीं मिली। लेकिन वह मायूस नहीं हुई। वह दौडती रही। एक दिन वह भी आय़ा जब तमिलनाडु में नेशनल जुनियार एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उसने गोल्ड मेडल हासिल किया।
विजयवाड़ की युवा राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 200 मीटर की दौड़ का स्वर्ण हासिल किया। इसके बाद अंकिता ने मध्यम और लंबी दूरी की रेस पर अपने को केंद्रित किया। 2019 में अंकिता ने रांची में जुनियर नेशनल में 1500 मीटर की दौड़ जीती। 2019 में पूणे मे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में 1500 मीटर और 5 000 मीटर में स्वर्ण पदक जीता। गुवाहाटी जुनियर नेशनल चैंपियनशिप में उसमें 1500 और पांच हजार मीटर में अपना वर्चस्व साबित किया। पंजाब के जुनियर अंडर 20 की चैंपियनशिप में वह 1500 और पांच हजार मीटर की दौड़ में गोल्ड हासिल करने वाली एथलेटिक बनी। क्रांस कंट्री एशियन चैंपियनशिप में भी उसने गोल्ड जीता । नेरोबी विश्व अंडर 20 चैपियन शिप के लिए भी उसने क्वालिफाई किया।
उत्तराखंड में नेशनल गेम्स के लिए वह पूरे विश्वास के साथ ट्रेक पर उतरी। महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कांप्लेक्स के ट्रेक पर पांच हजार मीटर की रेस में वह जब फिनिशिंग प्वाइंट को टच करके आगे निकली तो दूसरी नंबर पर महाराष्ट्र की संजीवनी उससे काफी पीछे थी। संजीवनी ने 10 हजार मीटर की दौड़ में पहला स्थान लिया रजत पदक अंकिता ने हासिल किया। तीन हजार की स्ट्रीपल चेंज में भी अंकिता ने गोल्ड हासिल किया।
अंकिता ध्यानी की कोच प्रतिभा टोपो कहती है कि अंकिता विलक्षण रेसर है। वह आगे और बड़ी स्पर्धाओं को जीतने में सक्षम है। उसने यह तक पहुंचने में बहुत कड़ी मेहनत की है।
अंकिता ने अपनी इस सफलता पर अंकिता कहती है कि यह बहुत कठिन स्पर्धा थी। वहां आई रेसर एक ही स्तर की थी। बस जीत का लक्ष्य कौन छूता है यही अहम था। अंकिता का कहना है कि अब उत्तराखंड में युवा खेलों की ओर रुझान दिखा रहे हैं। एथिलेटिक्स के लिए यहां बड़े अवसर हैं। अंकिता कहती है कि जब बचपन में बड़े युवाओं के साथ दौड़ती थी तो कई लोग कहते थे कि वह अपना समय बर्बाद कर रही है। लेकिन उसने ठान लिया था कि एथलेटिक्स में उसे बहुत आगे जाना है। इस सफलता ने उसका मनोबल बढाया है। वह आगे के लिए और तैयारी करेगी।