(मनोज इष्टवाल)
उत्तराखंड के वित्त मंत्री व संसदीय कार्य मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल का इस्तीफ़ा क्या हुआ कि लगा प्रदेश में जैसे नए युग की शुरुआत होने वाली हो। सोशल साईट व मीडिया प्लेटफोर्म सजने लगे। कय्यासबाजी का दौर शुरू हो गया। और तो और कभी सरकार में मंत्रीमंडल का विस्तार २२ तारीख को होता तो कभी ३० मार्च को। चाय की टफरी, घर के अंदर, घर के बाहर, दोस्तों के मध्य सब जगह बस एक ही चर्चा …! सरकार के मंत्रिमंडल में फलां मंत्री हटेगा , फलां मंत्री बनेगा। मुख्यमंत्री की छुट्टी और जाने क्या …क्या ! आग में घी आये दिन मौसम में आये परिवर्तन की तरह राजनीतिक गलियारों में भी देशी पहाड़ी, गढ़वाली-कुमाउनी का खुला खेल …! लेकिन इस खेल को खिलवाने वाले राजनेता और सोशल मिडिएटर कहाँ से पाशा फैंक रहे हैं और क्यों फैंक रहे हैं, इसकी किसी ने खोज पड़ताल नहीं की। मुख्यमंत्री धामी दिल्ली क्या गए, प्रदेश में मंत्री मंडल विस्तार हो जाता। मुख्यमंत्री का पीएमओ जाना नहीं हुआ तो खबरें परोसी जाती , देखा मुख्यमंत्री को न पार्टी अध्यक्ष ने समय दिया, न गृहमंत्री और न ही प्रधानमंत्री ने ..! क्या बड़ा बदलाब होने जा रहा है ? क्या मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट साफ़ होने जा रही है ? इत्यादि…इत्यादि।
यहाँ यह कहना भी गलत तो नहीं है कि बिना आग के धुंवा उठ जाता है। आग को तो जनता ने तब महसूस करना प्रारम्भ कर दिया था जब दिल्ली से लौटे मुख्यमंत्री ने “तीन साल बेमिशाल” पर प्रदेश के 13 जिलों में जबर्दस्त रैलियाँ निकालनी शुरू की, मानों जनसमर्थन जुटा रहे हों। मुख्यमंत्री धामी के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत तो उसके अपने ही राजनेता पैदा कर रहे थे, जिनकी जुबान के वार आम जनता तक पहुँचते व जनता आक्रोशित होती। इसे कहते हैं आग में घी डालना।
इसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ग्रहदशा कहिये या फिर राजनीतिक उथल-पुथल का वह अवशेष, जो किसी भी राजनेता को जमीन सुंघाने का माध्यम बनता है। लेकिन यह बात तो गूढ़, धूर्त, कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ राजनेताओं को भी माननी ही पड़ेगी कि इस सब से पार पाने के लिए कम उम्र के मुख्यमंत्री धामी के बेइन्तहां सब्र व व्यवहारिक गुण ने गढवाल-कुमाऊं, यात्रा-डायवर्जन, दिल्ली में केदारधाम, पहाड़-मैदानवाद जैसे राजनीतिक भारी-भरकम मुद्दों को बहुत सरलता के साथ सुलझा दिया। और तो और विपक्ष को साधने के लिए उनका जाल इतना मजबूत रहा कि सदन और सदन के बाहर विपक्ष नाम की कोई अला-बला दिखाई नहीं देती। मुख्यमंत्री धामी की सम्पूर्ण मैनेजमेंट टीम ने वह कर दिखाया जो अब तक प्रदेश का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं कर पाया है। धामी की यह वाकपटुता सबसे शानदार कही जा सकती है।
प्रशासनिक स्तर पर कमियाँ
मुख्यमंत्री धामी की सबसे बड़ी वर्तमान में कोई कमी अगर नजर आती है, तो वह है प्रदेश में गढ़वाल-कुमाऊंवाद की चर्चा होना क्योंकि इससे पूर्व के किसी भी मुख्यमंत्री पर ऐसे अनर्गल आरोप नहीं मढ़े गए थे। यह आरोप कहीं न कहीं वह कमी दर्शाता है, जहाँ मीडिया, सोशल मीडिया, आमजन तक यह सन्देश जाना प्रारम्भ हुआ होगा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कुमाऊं क्षेत्र के आम जन को ज्यादा तबज्जो दे रहे हैं। अगर ऐसा है तो यह बात तो हर मुख्यमंत्री के कार्यकाल में होता रहा है फिर अन्य पर गढवाल-कुमाऊंवाद फैलाने का आरोप क्यों नहीं लगा? लगता है विपक्ष को साधने के चक्कर में कहीं न कहीं यह बड़ी चूक हो सकती है और विपक्ष का दूसरा धड़ा इसे कूटनीतिज्ञ स्तर पर प्रचारित प्रसारित करने में कामयाब हो गया है, वरना यह अक्सर देखा गया है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पसंद करने वाले ज्यादात्तर लोग कुमाऊं के बनस्पत गढ़वाल में अधिक हैं।
इसी के दूसरे प्रारूप को अगर देखा व समझा जाय तो पहाड़-मैदानवाद भी बहुत सुनियोजित ढंग से फैलाया गया ऐसा जाल है, जिसका दूर – दूर तक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से कोई नाता नहीं दिखता। ऋषिकेश नगर पालिका चुनाव में शम्भु पासवान के समर्थकों की गढवालियों को गाली, ऋषिकेश शराब कांड, राज्यआन्दोलनकारी से मारपीट, एक काबीना मंत्री का खुद को बिहार का बताना, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का अनर्गल बयान सहित सदन में प्रेम चंद अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेता का कुमाऊं के विधायक मदन बिष्ट के साथ उलझना व “साले” शब्द का उच्चाहरण करना इत्यादि पहाड़-मैदानवाद का नारा दे गए, जो अब क्षेत्रीय नेताओं की जुबान से पुष्कर सिंह धामी सरकार की टार्गेट करने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है। ये दो मसले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए उस जले गर्म दूध के समान हो गया है जिसको पियो तो मुंह जले, थूको तो दूध है वाली कहावत कहा जा सकता है।
घटनाक्रम ने ढक दिए धामी सरकार के ये ऐतिहासिक पल
मीडियाकर्मी इस बात से आश्वस्त थे कि विगत बजट सत्र धामी सरकार की कार्ययोजनाओं को धरातल में उतारने का ऐसा स्वर्णिम मौका है जो व्यक्तिगत रूप से पुष्कर सिंह धामी को राजनीतिक बुलंदियों तक पहुंचाने में कामयाब होगा, लेकिन हर आस कहाँ पूरी होती हैं। पुष्कर सिंह धामी के ग्रह नक्षत्रों ने शायद उन्हें इस उपलब्धि का बखान करने से वंचित रख दिया और प्रेम चंद अग्रवाल प्रकरण ने पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा UCC (समान नागरिक संहिता), भू-क़ानून , लैंड जिहाद जैसे बड़े कार्यों को आम जन की नजरों से दूर रख पहाड़-मैदानवाद, गढवाल गालीवाद को लीडिंग न्यूज़ बनाकर रख दिया। वर्तमान परिवेश में उत्तराखंड की राजनीति में बज रहे बजर की गूँज आप हम सभी के कानों तक पहुँच ही रही है। ऐसा महसूस हो रहा है मानों धामी अलग-थलग पड़ गए हों और जिन राजनेताओं को बचाने के चक्कर में वे रहे, वही उनके वजूद पर भारी पड़ गए हों।
धामी का बजर पर बज्रवाण यानि मास्टर स्ट्रोक है आज की खबर
मुख्यमंत्री धामी ने हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और उधमसिंह नगर जनपद स्थित विभिन्न स्थानों के नाम में परिवर्तन की घोषणा की
धामी ने कहा:- जनभावना और भारतीय संस्कृति व विरासत के अनुरूप किया जा रहा है नामकरण
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा आज एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए जनपद हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और उधम सिंह नगर में स्थित विभिन्न स्थानों के नाम में परिवर्तन की घोषणा की गई। मुख्यमंत्री ने कहा कि विभिन्न स्थानों के नाम में परिवर्तन जन भावना और भारतीय संस्कृति व विरासत के अनुरूप किया जा रहा है। जिससे लोग भारतीय संस्कृति और इसके संरक्षण में योगदान देने वाले महापुरुषों से प्रेरणा ले सके।
मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार हरिद्वार जनपद में अब औरंगजेबपुर का नाम शिवाजी नगर, गाजीवाली का आर्य नगर, चांदपुर का ज्योतिबा फुले नगर, मोहम्मदपुर जट का मोहनपुर जट, खानपुर कुर्सली का अंबेडकर नगर, इंदरीशपुर का नंदपुर, खानपुर का श्री कृष्णपुर, अकबरपुर फाजलपुर का नाम विजयनगर किया जाना है।
देहरादून जनपद में मियांवाला का नाम रामजी वाला, पीरवाला का केसरी नगर, चांदपुर खुर्द का पृथ्वीराज नगर, अब्दुल्ला नगर का नाम दक्ष नगर जबकि जनपद नैनीताल में नवाबी रोड़ का नाम अटल मार्ग, पनचक्की से आईटीआई मार्ग का नाम गुरु गोवलकर मार्ग किया जाएगा। वहीँ उधमसिंह नगर में नगर पंचायत सुल्तानपुर पट्टी का नाम बदलकर कौशल्या पुरी किये जाने की घोषणा की गई है।
यह घोषणा पुष्कर सिंह धामी का मास्टर स्ट्रोक इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि कांग्रेस सरकार के दौरान उत्तराखंड में बढ़ी मुस्लिम समुदाय की अनियंत्रित आबादी से पहाड़ी जनपदों के लोग यह बहम पाले हुए हैं कि कहीं आने वाले 10-15 बर्षों में यह आबादी और विस्फोटक रूप लेकर शांत देवभूमि को कश्मीर न बना दे। क्योंकि विगत 10 बर्षों के आंकड़ो को अगर देखा जाय तो उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के 3946 गाँव आबादी शून्य घोस्ट विलेज कहलाने लगे हैं । मात्र 10 बर्षों में पहाड़ से पलायन करने वाले लोगों की संख्या 05 लाख के लगभग आंकी गयी है और मैदानी जिले जिनमें हरिद्वार, उधमसिंह नगर व देहरादून सम्मिलित हैं में अनायास ही 30 प्रतिशत वोटर बढ़ गए हैं जबकि इन्हीं वोटर्स की संख्या का अनुमान अगर जिलों के हिसाब से लगाया जाय तब उधम सिंह नगर में 43 प्रतिशत, देहरादून में 41 प्रतिशत, नैनीताल में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो पूरे देश भर के राज्यों में सबसे अधिक वृद्धि है व इसमें सबसे अधिक संख्या में मुस्लिम वोटर्स बढे हैं, जिस पर सुरक्षा एजेंसियों ने भी नजरें गढ़ा दी हैं। ऐसे में उपरोक्त गाँवों के नाम बदलाव के साथ मतदाता सूची की भी सघनता से जांच हो रही है व यह आंकड़े जुटाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है कि यह सब कब से प्रारम्भ हुआ।
ऐसी खबर का संज्ञान लेने के बाद कहीं न कहीं फिर से धामी सरकार के निर्णय व विजन की आम जन में आज चर्चा रही है। जिसे लोग राजनीतिक उथल-पुथल के मध्य धामी का मास्टर स्ट्रोक कह रहे हैं।