उचित ही यह सवाल उठाया गया है कि डॉनल्ड ब्लोम का पीओके जाना और उस क्षेत्र को पाकिस्तान की भाषा के अनुकूल संबोधित करना क्या कोई सामान्य घटना है, या इसके जरिए अमेरिका ने भारत को कोई संदेश देने की कोशिश की है? भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने कश्मीर मसले पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इस विवाद को भारत और पाकिस्तान को आपस में हल करना है। गार्सेटी से यह सवाल पाकिस्तान स्थित अमेरिकी राजदूत डॉनल्ड ब्लोम की पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की यात्रा के सिलसिले में पूछा गया था। ब्लोम ने अपने इस दौरे के समय उस इलाके को ‘आजाद जम्मू एवं कश्मीर’ कह कर संबोधित किया।
कूटनीतिक हलकों में उचित ही यह सवाल उठाया गया है कि ब्लोम का पीओके जाना और उस क्षेत्र को पाकिस्तान की भाषा के अनुकूल संबोधित करना क्या कोई सामान्य घटना है, या इसके जरिए अमेरिका ने भारत को कोई संदेश देने की कोशिश की है? उधर गार्सेटी का इसे द्विपक्षीय विवाद बताना भी क्या उसी संदेश का हिस्सा है। कम-से-कम भारत की वर्तमान सरकार यह नहीं मानती कि इस विवाद को हल करने में पाकिस्तान की कोई भूमिका है। जहां तक विवाद का प्रश्न है, तो वह सिर्फ पीओके पर है। जबकि अमेरिकी राजदूतों ने जिस रूप में कश्मीर विवाद का जिक्र किया, उससे नहीं लगता कि उन्होंने भारत के रुख का समर्थन किया हो।
घटनाओं का महत्त्व उसके संदर्भ से जुड़ा होता है।
कनाडा के साथ भारत के बढ़े विवाद के क्रम में भारत और पश्चिमी देश आमने-सामने खड़े होते नजर आ रहे हैँ। अचानक भारत को लेकर अमेरिकी और ब्रिटिश अखबारों की भाषा तल्ख हो गई है। उनमें भारत को याद दिलाया जाने लगा है कि उसकी उतनी ताकत नहीं है, जितना वह समझ रहा है। यह भी कहा गया है कि भारत के साथ रिश्ता गहरा करने पर जो द्विपक्षीय सहमति अमेरिका में रही है, उसमें अब दरार पड़ सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति और उनकी सरकार की अनेक घरेलू नीतियों को लेकर वहां आलोचनात्मक स्वर तीखे हो गए हैँ। इस तरह संदेश देने को कोशिश की जा रही है कि पश्चिम की चीन को घेरने की मजबूरी के मद्देनजर भारत यह ना माने कि वह पश्चिमी हितों का खुला उल्लंघन कर सकता है। स्पष्टत: यह पश्चिमी रुख भारतीय विदेश नीति के सामने एक नई चुनौती बन कर आया है।