देहरादून (हि. डिस्कवर)
देहरादून के दून विश्वविद्यालय में चल रहे डिफेंस लिटरेचर फेस्टिवल का दूसरा दिन सामरिक स्वायत्तता के महत्व, रक्षा तकनीक की अहमियत, कम चर्चित नायकों की कहानियों और वीर नारियों के नाम रहा। इस अवसर पर पूर्व भारतीय राजनयिक और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) के महानिदेशक सुजन आर. चिनॉय ने कहा कि आज भारत के पास सामरिक स्वायत्तता है। पहले ऐसा नहीं था। आज बहुपक्षीय मंचों पर हमारी मौजूदगी है, जो भारत के सामर्थ्य को प्रदर्शित करती है। भारत में निजी क्षेत्र भी तेजी से काम कर रहा है।
दून डिफेंस ड्रीमर्स के सहयोग से आयोजित इस फेस्टिवल के दूसरे दिन के पहले सत्र में रुपहले पर्दे पर दिखाई जाने वाली सेना से जुड़ी कहानियों पर बात हुई। अभिनेता, निर्देशक कुलप्रीत यादव ने अपनी किताब ‘द गर्ल हू लव्ड ए स्पाई’ का हवाला देते हुए कहा कि सैन्य पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्मों पर पहले रिसर्च कम होती थी, लेकिन अब फिल्म और फोर्सेस का कंबीनेशन बढ़ रहा है। कुलप्रीत यादव ने कहा कि जो लोग लेखन के क्षेत्र में आना चाहते हैं, उन्हें लिखने से ज्यादा पढ़ने की जरूरत है। जिस विषय पर किताब लिखने की तैयारी कर रहे हों, उस पर कम से कम 50 किताबें पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा, लेखन का मूलमंत्र है कि लिखते समय मूल पात्र से ज्यादा दूर न जाएं। इसी सत्र के दौरान ‘पेंडामिक परस्यूट’ के लेखक मेजर जनरल (रिटा.) देव अरविंद चतुर्वेदी ने चीन से फैले कोरोना को कई देशों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की संज्ञा दी।
दूसरे सत्र में 1971 की जंग पर बात हुई। प्रख्यात लेखिका रचना बिष्ट रावत ने अपनी किताब ‘1971-चार्ज ऑफ द गोरखा एंड अदर्स स्टोरीज’ पर बात करते हुए एक फौजी की पत्नी के तौर पर अपने लेखन की शुरुआत की कहानी साझा की। उन्होंने अपनी किताबों में सैन्य अभियान पर जा रहे फौजियों के परिवारजनों की भावनाओं को पेश किया है।
युवा लेखक दीपक सुराणा ने बताया कि उन्होंने फिल्में देखकर लेखन में करियर बनाने का विचार किया। दीपक ने कहा, जब मैंने अपनी किताब के लिए लोगों के इंटरव्यू किए तो सभी मेरी उम्र को लेकर हैरान होते लेकिन सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया, कई बार मैंने रात दो-दो बजे तक इंटरव्यू किए। इस सत्र में तनुश्री पोद्दार की किताब ‘मैन ऑफ स्टील’ पर भी चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन आईएमए की प्रोफेसर और प्रख्यात लेखिका डा. रूबी गुप्ता ने किया।
इस कार्यक्रम की आयोजक थ्राइव संस्था के अजीत पठानिया ने बताया कि दिन के तीसरे सत्र ‘वार फ्रंट टू फ्यूचर’ के दौरान हथियारों के स्वदेशीकरण की अहमियत समझाते हुए एंबेसडर सुजन आर. चिनॉय ने कहा कि युद्ध के दौरान सबसे अहम होता है आपूर्ति लाइन को सुरक्षित रखना। अगर हथियार विदेशी है तो कई तरह की दिक्कतें आती हैं। यूक्रेन-रूस संघर्ष में हम सभी ने यह देखा है। अंतिम क्षणों में होने वाली डील से देरी होती है और दुश्मन को फायदा होता है। इसे देखते हुए आत्मनिर्भर भारत की अहमियत बढ़ जाती है। इसके लिए अब भारत में प्राइवेट सेक्टर तेजी से काम कर रहा है।
इस दौरान डीआरडीओ के वैज्ञानिक डा. संजीव जोशी ने कहा कि टॉमहॉक मिसाइलों के आने के बाद भारत के पास क्रूज मिसाइल की जरूरत महसूस की गई। इसके बाद ब्रह्मोस मिसाइल पर काम हुआ। आज ब्रह्मोस की बात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होती है। उन्होंने कहा कि रक्षा तकनीक के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर होने के लिए कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
डा. संजीव जोशी ने कहा कि सेना की जरूरत को समझते हुए डीआरडीओ सप्लाई सॉल्यूशन पर काम कर करता है। सोल्जर सपोर्ट सिस्टम के लिए प्रोटोटाइप तैयार करना डीआरडीओ का मुख्य काम होता है। इस सत्र का संचालन कर रहे अजय साद ने कहा कि जरूरी नहीं कि आप सेना में हों, आप जो भी काम करें ईमानदारी से मन लगाकर करें, यही मातृभूमि की सेवा होगी। दिन के आखिरी सत्र को प्रख्यात मॉडरेटर पूजा मारवाह ने संचालित किया। इस दौरान शौर्य चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल अजित वी भंडारकर की पत्नी शकुंतला भंडारकर की किताब ‘द सगा ऑफ ब्रेवहार्ट‘ के कई अंशों पर बात की गई। इस दौरान सेना के कई वरिष्ठ सेवानिवृत्त और मौजूदा अधिकारी, एनसीसी कैडेट्स और स्कूली बच्चे मौजूद रहे।
जनरल रावत ने सेना में भर्ती होकर निभाया 13 साल की उम्र में किया वादा
जनरल बिपिन रावत को समर्पित एक विशेष सत्र के दौरान उनके मामा कर्नल (रिटा.) सत्यपाल परमार ने उनके जन्म से सेना में भर्ती होने के कई किस्से बताए। इस दौरान कई मौकों पर लोग भावुक हुए। कर्नल परमार ने कहा, वह बचपन से बहुत मेधावी थे, हालांकि जब उन्होंने एनडीए में सलेक्ट होने की बात बताई तो मुझे हैरानी हुई थी, क्योंकि बिपिन रावत का मेडिकल में भी चयन हुआ था, लेकिन उन्होंने एनडीए को प्राथमकिता दी। जब जनरल रावत को स्वार्ड ऑफ ऑनर मिला तो पूरे परिवार को गर्व की अनुभूति हुई। जनरल रावत के मौसेरे भाई ब्रिगेडियर शिवेंद्र सिंह ने बताया जब 1971 की लड़ाई में जब मेरे पिताजी के शहीद होने की खबर आई, तो बिपिन रावत मेरे पास आए और गले लगाकर बोले, हम मौसा जी को श्रद्धांजलि देंगे और फौज में जाएंगे। उन्होंने 13 साल की उम्र किया वादा सेना में अफसर बनकर निभाया। ब्रिगेडियर शिवेंद्र सिंह ने डोकलाम फेसऑफ का किस्सा सुनाते हुए कहा कि जब चीनी सेना सामने थी, तो उन्होंने साफ-साफ कहा, हम दुश्मन को ठोकेंगे, पीछे नहीं हटेंगे। दून विश्वविद्यालय की कुलपति डा. सुरेखा डंगवाल ने देश के पहले सीडीएस जनरल रावत को याद करते हुए कहा कि भारतीय सेना का जिक्र जनरल रावत के बिना अधूरा है। इस दौरान जनरल रावत की बेटी तारिणी रावत भी मौजूद थीं।
मैं आज भी ‘लिद्दर वे’ में रहती हूंः गीतिका
डिफेंस लिटरेचर फेस्टीवल का समापन जनरल बिपिन रावत के साथ विमान हादसे में जान गंवाने वाले ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर की पत्नी गीतिका लिद्दर की किताब ‘आई एम सोल्जर वाइफ’ पर चर्चा के साथ खत्म हुआ। यह किताब इन दिनों काफी चर्चा में है। गीतिका लिद्दर ने कहा कि ब्रिगेडियर लिद्दर के चले जाने के बाद भी मैं उन्हीं के जिंदगी जीने के तरीके को फॉलो कर रही हूं। मैं आज भी ‘लिद्दर वे’ में रहती हूं, जैसा वह हमेशा कहते थे। हम उनकी अच्छी यादों के साथ जीते हैं, क्योंकि इंसान भले ही चला जाए, प्यार हमेशा रहता है। उन्होंने दर्शक दीर्घा में मौजूद जनरल रावत की बेटी तारिणी का नाम लेते हुए कहा कि भय से ज्यादा मजबूत होता है विश्वास। जो हो गया, उसे स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए।
शहीद की बेटियां सुना रहीं फौजियों की कहानियां
कारगिल युद्ध के नायक शहीद मेजर चंद्र भूषण द्विवेदी की बेटियों नेहा और दीक्षा द्विवेदी की किताब ‘नींबू साब: द बेयरफुट नागा कारगिल हीरो’ एक प्रेरणादायक जीवनी है, जो कारगिल युद्ध के नायक कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरसे के जीवन और अंतिम बलिदान को बताती है। दीक्षा द्विवेदी ने बताया कि जब मेरे पिता शहीद हुए तब मैं 8 साल की थी। मैं चाहती हूं उन्हें याद किया जाए, इसीलिए मैंने लिखना शुरू किया। नेहा द्विवेदी ने कहा, पुरानी यादों को शब्दों में पिरोना परिवार के लिए काफी मुश्किल होता है। नींबू साब के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि शहीद का परिवार भी चाहता है कि किताबों में तथ्य सही हों, इसलिए ऐसी विषयों पर रिसर्च बहुत अहम हो जाती है। नींबू साहब की कहानी सुनाते हुए उन्होंने बताया कि माइनस 10 डिग्री में जूते उतारकर केंगुरसे ने लोनहिल पर चढ़ते हुए शहादत दी। नेहा और दीक्षा द्विवेदी ने इससे पहले चर्चित किताब ‘लेटर्स फ्राम कारगिल‘ भी लिखी है।