Wednesday, November 20, 2024
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गोल्ल देवता पर यह टिप्पणी आश्चर्यजनक। ढूंढ लाया नौबाड़ा के गोलज्यू देवता को।

गोल्ल देवता पर यह टिप्पणी आश्चर्यजनक। ढूंढ लाया नौबाड़ा के गोलज्यू देवता को।

(मनोज इष्टवाल)

इस क्षेत्र में गोलज्यू भूमिया देव के रूप में पूजे व माने जाते हैं। बारामखाम से लेकर द्वाराहाट क्षेत्र में गोलज्यू के दर्जनों मंदिर इस बात की गवाही देते हैं कि कत्युरी काल में यह क्षेत्र सबसे सम्भ्रान्त काल में रह होगा।

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(नैथाणा देवी में प्रतिष्ठित भैरव अवतारी गोल्ज्यू)
यह आश्चर्यजनक सत्य है कि अकेले द्वाराहाट क्षेत्र में हर 100 मीटर दूरी पर एक मंदिर एक नाव की लंबी श्रृंखला है जिसमें 365 उच्च कोटि के मंदिर व 365 ही पानी के नौला/नाव निर्मित हैं। जिनमें पाषाण कला का अद्भुत मिश्रण नजर आता है।

यह और भी आश्चर्यजनक है कि नौबाड़ा के नैथनी देवी मंदिर में एक ओर पंचमुखी हनुमान मंदिर निर्मित है तो वहीं दूसरी ओर भैरव की प्रतिमा के रूप में गोलज्यू देवता की बेहद पौराणिक मूर्ति दिखाई देती है। इस क्षेत्र में गोलज्यू को विभिन्न नामों से जाना जाता है जिनमें गौर भैरव, भूमिया देवता, गोल्ल देवता, ग्वेल देवता, गोरिल देवता या गोरिया देव प्रमुख हैं।

(सुप्रसिद्ध बाराखाम)

कलमकार पंकज महर द्वारा कत्युरी काल में संवत 335 से 385 के काल में गुप्त सम्राट के अश्वमेघ यज्ञ का वर्णन सम्बन्धी उन्होंने जो दस्तावेज भेजा वह अतुलनीय है। जिसमें ताल चट्टीघिंगरैल कोट की एक लायन लेडी का वर्णन करते हुए बताया गया है कि उसे यहां के लोग आज भी पिरुली शेरनी के रूप में जानते हैं जो घिंगरैल कोट की एक गुफा में रहती है और कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती। वह अपना रूप बदलती रहती है।

यह आश्चर्यजनक है कि कल एक शेरनी कहें या बाघिन हमें भी द्वाराहाट जाते समय रास्ते में दिखी जिसे देखकर एक पल भी डर नहीं लगा। उसकी आँखों में जादुई समोहन था।

आपको बता दें कि घिंगरैली कोट कत्यूरियों का सबसे प्रसिद्ध किला हुआ। यह भी आश्चर्यजनक है कि कत्युरी काल में सबसे ज्यादा मंदिरों का निर्माण हुआ प्याऊ बने। जिया माँ की दया के कई उदाहरण रहे फिर भी उस काल को कलुषित करने की हर सम्भव चेष्टा की गई।

यहां जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह प्रसिद्ध इतिहासकार व साहित्यकार भंडारकर ने रामगंगा घाटी के इस इलाके का वर्णन करते हुए लिखा है कि गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त का अश्वमेघि घोड़ा 335-385 ई. के मध्य कार्तिकेयपुर पहुंचा। उस काल में कत्युरी शासक गोल्ल यहां शासन किया करते थे। व उनके दरबार में राजगुरु सैमज्यूँ, दीवान हरज्यू, व सेनापति कलविष्ट हुआ करते थे। उन्होंने अपनी रूपसी पुत्री ध्रुवदेवी उपहार स्वरूप सम्राट चंद्रगुप्त को भेंट की जो बाद में उनकी महारानी ध्रुवस्वामिनी कहलाई गई।
प्रश्न यह उठता है कि अगर यह सत्य है तब गोल्ज्यू को चन्द वंशज राजाओं के शुरुआती काल से जोड़कर क्यों देखा जाता रहा है?

(नैथाणा देवी में प्रतिष्ठित भैरव अवतारी गोल्ज्यू)
यह आश्चर्यजनक सत्य है कि अकेले द्वाराहाट क्षेत्र में हर 100 मीटर दूरी पर एक मंदिर एक नाव की लंबी श्रृंखला है जिसमें 365 उच्च कोटि के मंदिर व 365 ही पानी के नौला/नाव निर्मित हैं। जिनमें पाषाण कला का अद्भुत मिश्रण नजर आता है।

यह और भी आश्चर्यजनक है कि नौबाड़ा के नैथनी देवी मंदिर में एक ओर पंचमुखी हनुमान मंदिर निर्मित है तो वहीं दूसरी ओर भैरव की प्रतिमा के रूप में गोलज्यू देवता की बेहद पौराणिक मूर्ति दिखाई देती है। इस क्षेत्र में गोलज्यू को विभिन्न नामों से जाना जाता है जिनमें गौर भैरव, भूमिया देवता, गोल्ल देवता, ग्वेल देवता, गोरिल देवता या गोरिया देव प्रमुख हैं।

(सुप्रसिद्ध बाराखाम)
कलमकार पंकज महर द्वारा कत्युरी काल में संवत 335 से 385 के काल में गुप्त सम्राट के अश्वमेघ यज्ञ का वर्णन सम्बन्धी उन्होंने जो दस्तावेज भेजा वह अतुलनीय है। जिसमें ताल चट्टी व घिंगरैल कोट की एक लायन लेडी का वर्णन करते हुए बताया गया है कि उसे यहां के लोग आज भी पिरुली शेरनी के रूप में जानते हैं जो घिंगरैल कोट की एक गुफा में रहती है और कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती। वह अपना रूप बदलती रहती है।

यह आश्चर्यजनक है कि कल एक शेरनी कहें या बाघिन हमें भी द्वाराहाट जाते समय रास्ते में दिखी जिसे देखकर एक पल भी डर नहीं लगा। उसकी आँखों में जादुई समोहन था।

आपको बता दें कि घिंगरैली कोट कत्यूरियों का सबसे प्रसिद्ध किला हुआ। यह भी आश्चर्यजनक है कि कत्युरी काल में सबसे ज्यादा मंदिरों का निर्माण हुआ प्याऊ बने। जिया माँ की दया के कई उदाहरण रहे फिर भी उस काल को कलुषित करने की हर सम्भव चेष्टा की गई।

यहां जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह प्रसिद्ध इतिहासकार व साहित्यकार भंडारकर ने रामगंगा घाटी के इस इलाके का वर्णन करते हुए लिखा है कि गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त का अश्वमेघि घोड़ा 335-385 ई. के मध्य कार्तिकेयपुर पहुंचा। उस काल में कत्युरी शासक गोल्ल यहां शासन किया करते थे। व उनके दरबार में राजगुरु सैमज्यूँ, दीवान हरज्यू, व सेनापति कलविष्ट हुआ करते थे। उन्होंने अपनी रूपसी पुत्री ध्रुवदेवी उपहार स्वरूप सम्राट चंद्रगुप्त को भेंट की जो बाद में उनकी महारानी ध्रुवस्वामिनी कहलाई गई।
प्रश्न यह उठता है कि अगर यह सत्य है तब गोल्ज्यू को चन्द वंशज राजाओं के शुरुआती काल से जोड़कर क्यों देखा जाता रहा है?

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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