Saturday, July 12, 2025
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एक तार ने बाढ़ से बचाई थी, हजारों जानें …।

(डॉ. राजेश्वर उनियाल की कलम से)

(पंजाब केसरी में प्रकाशित–9-2-21)


उत्तराखंड के जिला चमोली गढ़वाल में गत सवा सौ साल में पाँच ऐसी बाढें आई हैं, जिन्होंने उत्तराखंड का काफी जन-धन का नुकसान किया है । जोशीमठ में 7-2-21 को बाढ़ आई तो उसकी जानकारी तुरंत ही समस्त विश्व को हो गई और सरकार बचाव कार्य में जुट भी गई। लेकिन सवा सौ साल पहले 1894 में जब विरह की बाढ़ आई थी, उसकी जानकारी अंग्रेज़ अधिकारियों को केवल एक तार से मिल पाई थी ।
हुआ यह था कि 1893 में चमोली के निकट विरही नदी में एक चट्टान आने के कारण वहाँ पानी ठहर गया, जिससे वहाँ एक ताल बनता गया, जिसे गौणा ताल कहते थे । अंग्रेजों को यह ताल बहुत पसंद आया और उन्होंने इसे पर्यटक स्थल बनाना प्रारंभ किया तथा यहाँ एक तारघर भी खोल दिया । लेकिन एक साल बाद 1894 में ताल में भयंकर बाढ़ आ गई । लेकिन तारघर होने के कारण यह सूचना तुरंत उच्चाधिकारियों को पहुंचा दी गई, जिससे हरिद्वार के बाद मैदानी क्षेत्र बचा लिए गए ।
सन 1894 में गौणा ताल केवल एक भाग ही फूटा था, जबकि शेष ताल 1970 में बहा । इसके सात साल बाद एक बार फिर, लेकिन अंतिम बार 1977 में यहाँ भयंकर बाढ़ आई थी, जिसमें बाकी बचा सारा ताल फूट गया था। इस क्षेत्र में उसके बाद 2013 में केदार घाटी में मन्दाकिनी गंगा और अब जोशीमठ के पास रैणि गाँव के पास धौली गंगा में हिमशिखर फटने से बाढ़ आई है । ज्ञात हो कि रैणी गाँव विश्वविख्यात चिपको आंदोलन की प्रणेता श्रीमती गौरा देवी का गाँव है ।
इस प्रकार की प्राकृतिक विपदाएँ ना आएँ, इस संबंध में पर्यावरणविद एवं विशेषज्ञ केवल वन दोहन, बांध और भौतिक विकास आदि को दोषी ठहराकर, अपना पारंपरिक कर्तव्य का निर्वाह कर लेते हैं, जबकि विरही, मंदाकिनी और अब ऋषिगंगा प्रलय बताते हैं कि यह प्राकृतिक दोहन की अपेक्षा नियति का ही खेल था ।
बाढ़ एवं भूकंप आदि सदियों से प्राकृतिक एवं दैविक प्रकोप माने जाते रहे हैं । हाँ, वन दोहन, बांध और भौतिक विकास आदि के कारण जन-धन का नुकसान अधिक होता है । आप प्राकृतिक एवं दैविक विपदाओं को रोक नहीं सकते हैं, इसलिए अच्छा हो कि हम केवल लोगों व सरकार को कोसने की परंपरा को निभाने के बजाय, पहाड़ों के नदीय तट की साफ-सफाई हेतु कोई दीर्घकालीन ठोस नीति बनाएं । 1893 में गौणा ताल का प्राकृतिक निर्माण होने से अंग्रेज़ अधिकारियों ने किसी पर दोषारोपण करने की अपेक्षा, वहाँ एक तारघर बना दिया, जिससे 1894 में जब विरह की बाढ़ आई, तो केवल एक तार से हजारों जानें बचा दी गई थीं।
इस दिशा में हमें भी आन्दोलनजीविओं की चिंता किए बिना, स्वच्छ गंगा और गंगा स्पर्श जैसी कोई सार्थक एवं रचनात्मक गंगा तटीय परियोजना बनानी होगी, ताकि भविष्य में जब कभी कोई ऐसी दैविक या प्राकृतिक विपदाएं आए तो उससे जन-धन का कम से कम नुकसान हो ।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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