(मनोज इष्टवाल)
यह भी अजब गजब है। हृदय प्रसन्नचित्त हो तो प्रसन्नता सातवें आसमान में होती है। सोशल साइट पर टिहरी गढ़वाल के मित्र सोबन सिंह ने अपनी माँ की तस्वीर साझा करते हुए लिखा-माँ भी फ़ोटो भिजवा रही है ग़ांव से, व्हाट्सअप ।
शब्द छोटे हैं लेकिन भाव बड़े क्योंकि माँ की फोटो के साथ आड़ू की तरबतर डाली झुककर माँ के कांधों पर आई हुई है जैसे माँ के मन प्राण की तरह कह रही हो। देख मैं भी पककर लाल सुर्ख हो गयी हूँ बस तेरे आने का इंतज़ार है।
माँ की जहां उपस्थिति हो भला बेटा कहाँ अपनी हृदय वेदना छुपा सकता है। सोबन सिंह की यह फोटो एक साथ हमें कई सवालों के जवाब देती नजर आती है। माँ का वह अगाध ममतत्व भरा प्यार। बेटे का माँ की हर दिशा दशा का हृदय में ख्याल। माँ की आंखों में उमड़ा स्नेह। जैसे फोटो खींचने वाले को आतुर हो कह रही हो – झट खींच फोटो। ताकि मेरा बेटा देख सके कि इस बार उसके बागवान में कैसे फलों से पेड़ लकदक हैं।
ठेठ उसी तरह से माँ का हृदय भी मचल कर कह रहा होगा कि त्वेखुण मेरा मालू भैंसी पलीं छ, दू धै की ठेकी लुकै की धरीं च। जैसे लोकगायक नेगी जी ने मां के आतुर शरीर का वर्णन अपनी पंक्तियों में किया है।
सचमुच माँ के विशाल हृदय को समझने वाले ऐसे बेटे बड़े भाग्यवान होते हैं जैसे सोबन सिंह हुए। माँ की फोटो ने ही उन्हें फलों के स्वाद चखा दिए तभी तो वे प्रसन्न हो लिख बैठे-माँ भी फ़ोटो भिजवा रही है ग़ांव से, व्हाट्सअप ।