(मनोज इष्टवाल)
मुख्यमंत्री के जनता मिलन कार्यक्रम में विगत दिन उत्तरकाशी की शिक्षिका उत्तरा पन्त बहुगुणा का प्रकरण शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। जहां एक ओर शिक्षक संगठन के नेता चुप हैं वहीं शिक्षक सोशल साइट पर मुख्यमंत्री के इस आदेश की खुली आलोचना करते नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर समाजसेवी संगठन भी इस मामले में मुखर होते नजर आ रहे हैं।
(ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर)
ग्लेशियर लेडी के नाम से सुप्रसिद्ध उत्तरकाशी की शांति ठाकुर ने इस प्रकरण में सरकारी निर्णय पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए खुली चुनौती दी है कि अगर यह शान्ति भंग का मामला बनाकर सरकार उत्तरा को गिरफ्तार करती है तो वह न सिर्फ उत्तरा पन्त बहुगुणा की जमान करवाएंगी बल्कि इस सम्बन्ध में प्रदेश व्यापी आंदोलन छेड़ने से भी गुरेज नहीं करेंगी। उन्होंने मुख्यमंत्री को केंद्रित करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगाए हैं कि अब समय आ गया है जब मंत्री विधायकों की सुगम में तैनात पत्नियों की जानकारी आरटीआई के माध्यम से इकट्ठी कर तस्वीर साफ की जाय कि ये कभी पहाड़ भी चढ़ी कि नहीं।
शांति ठाकुर ने इसे मातृशक्ति का खुला अपमान बताया है। साथ ही उन्होंने राजधानी की चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्थाओं व ग्लेशियरों पर मानव चहलकदमी पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए।
वहीं सूत्रों का कहना है कि शिक्षिका उत्तरा पन्त बहुगुणा कई महीनों से स्कूल नहीं जा रही थी क्योंकि उसे लगता था कि अगर उसने जॉइन कर लिया तब उसका ट्रांसफर नहीं हो पाएगा इसलिए उसके द्वारा हर स्तर पर स्थानांतरण के लिए आवेदन दिए गए।
विश्वस्त व आधिकारिक सूत्रों की माने तो शिक्षिका उत्तरा पन्त बहुगुणा ने नौगांव ब्लाक के जेस्टाड़ी प्राथमिक विद्यालय में 2 जुलाई 2015 को ज्वाइन किया था उसके बाद वे 3 अगस्त 15 तक ही विद्यालय में रही है । पति के स्वास्थ्य खराब होने के कारण 10 मई 2017 तक अनुपस्थित रही पुनः 11 मई 2017 को ज्वाइन किया और 19 जुलाई 2017 के पश्चात से पुनः अनुपस्थित चल रही है । और यह भी जानकारी मिल रही है कि उनके द्वारा विभाग में आज की तारीख तक कोई मेडिकल आदि प्रस्तुत नही किया ।
सूत्रों का कहना है कि लगातार विद्यालय से अनुपस्थित रहने पर भी कभी शिक्षा विभाग ने उन्हें एक नोटिस तक नहीं भेजा और न ही कोई सस्पेंशन का आदेश ही। अब जबकि दो माह पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उन्हें आश्वाशन दे चुके थे तब जनता दरवार में ऐसा क्या हो गया जो वे अचानक उखड़ गए।
वहीं दूसरी ओर जीवन गढ़, विकास नगर निवासी परवीन शर्मा “पिन्नी” की आरटीई से खुलासा हुआ है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की धर्मपत्नी शिक्षिका सुनीता रावत की प्रथम नियुक्ति बर्ष 1992 में पौड़ी गढ़वाल के प्रा. वि. कफल्डी स्वीत मेंं हुई, उसके बाद मात्र 4 माह बाद पौड़ी गढ़वाल के प्रा. वि. मैन्दोली में उनका स्थानांतरण हुआ और मात्र 4 साल की सर्विस के दौरान उनका स्थानान्तरण अंतर्जनपदीय हुआ व सन 1996 में प्रा.वि. अजबपुर कलां में उनकी जॉइनिंग दी। तब से लेकर वर्तमान तक श्रीमती सुनीता रावत इसी विद्यालय में कार्यरत हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें सन 2008 में प्रमोशन के बाद यही पूर्व माध्यमिक विद्यालय अजबपुर देहरादून में वर्तमान तक कार्यरत हैं। यानि अपनी कुल 26 साल की नौकरी में सुनीता रावत 22 साल देहरादून में ही रही।
यों तो सेवा नियमावली के अनुसार 55 साल के पश्चात किसी भी अध्यापक का सुगम में स्थानांतरण हो जाता है लेकिन आने क्यों उत्तरा पन्त बहुगुणा सहित ऐसे दर्जनों अध्यापक आज भी सेवा नियमावली का लाभ नहीं ले सके हैं। ऐसे में पूरा शिक्षा विभाग ही कटघरे में खड़ा होता है।
बहरहाल जहां उत्तरा पंत बहुगुणा जहां वर्तमान में सस्पेंड हो चुकी है व शांति भंग में उनका चालन भी हुआ है लेकिन जिस दिन यह मामला कोर्ट जाएगा यह तय है कि शिक्षा विभाग इस प्रकरण में कटघरे में खड़ा होगा व उन्हें बाइज्जत न सिर्फ इनकी बहाली करनी पड़ेगी बल्कि सेवा नियमावली के तहत इच्छित स्थान ट्रांसफर भी करना पड़ेगा। और लगता भी यही है कि अब तक विभाग इसीलिए उसे उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी नहीं कर पाया है।
इस प्रकरण पर क्या कहती हैं ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर आप भी सुनिए:-