Wednesday, November 12, 2025
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पगडंडियों को लांघता उत्तराखंड

संदर्भ : उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस

(✍️ पार्थसारथि थपलियाल)

उत्तराखंड राज्य के निर्माण 9 नवंबर 2000 को किया गया था। तब से अब तक 25 साल हो गए हैं। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए जो आंदोलन चला था उसमें अनेक लोगों ने अपनी जानें गंवा दी थी। यह अवसर उन्हें स्मरण करने का भी है। 9 नवंबर 2000 को औपचारिक रूप में उत्तरांचल राज्य का विधिवत गठन किया गया और नित्यानंद स्वामी को देहरादून में प्रथम मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। राज्य निर्माण के समय इस राज्य का नाम उत्तरांचल किया गया था लेकिन उत्तराखंड शब्द से आंचलिक लगाव के कारण 1 जनवरी 2007 को राज्य का नाम उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। पिछले 25 वर्षों की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि यह रही कि नित्यानंद स्वामी से पुष्कर सिंह धामी तक 10 राजनेताओं ने 12 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त प्रदेश-उत्तराखंड को भारतीय संविधान के 371 अनुच्छेद के अंतर्गत विशेष राज्य का दर्जा सन 2001 में दिया गया। केंद्र सरकार संपोषित योजनाओं का उत्तराखंड को भरपूर लाभ मिला। केदारनाथ विभीषिका में आर्थिक सहायता बहुत मिली (लेकिन तत्कालीन सरकार ने बहुत भ्रष्टाचार किया।) ऑल वेदर रोड परियोजना जो चारधाम की यात्रा को बारह माह संचालित रखने के उद्देश्य से बनाई गयी थी, उससे चारधाम यात्रा सुगम और वरदान साबित हुई है। अगले वर्ष ‌ऋषिकेश से कर्ण प्रयाग तक रेल गाड़ी शुरू हो जाने की संभावना है तब यात्रा और भी मजेदार होगी। दिल्ली से देहरादून, हरिद्वार हल्द्वानी आदि महत्वपूर्ण स्थानों पर राष्ट्रीय राजमार्ग के माध्यम से बहुत सुगम हो गया है।
उपलब्धियों की रजत जयंती-
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अधिकतर मुख्यमंत्रियों ने जनता के हित के काम किए। एक ओर मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में औद्योगिक क्षेत्र में बहुत कार्य किया गया तो दूसरी ओर मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी के कार्यकाल में ढांचागत विकास का बीजारोपण हुआ। धामी सरकार ने क्रिकेटर धोनी वाले चौके छक्के स्टाइल में विकास के चौके छक्के लगा दिए। वैसे तो सभी जनप्रतिनिधियों ने कुछ कुछ तो किया ही है। किसी न खाऊंगा न खाने दूंगा का सिद्धांत अपनाया तो किसी का लोक हित गंगा स्नान जैसे था। मैं भी डुबकी लगाएं तू भी लगा। सांसदों में अनिल बलूनी के प्रयासों से उत्तराखंड में अनेक सुविधाओं का विस्तार हुआ है। वे अक्सर लोगों के बीच पाए जाते हैं। उनका अभियान मेरा गांव मेरा वोट। बग्वाल, भैलो, होली, हरेला आदि को उन्होंने लोकमत के रूप में व्यापकता दी।

उपलब्धियों में शामिल कुछ तथ्य-
1.मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता (UCC) संबंधी जो अधिनियम बनाया है वह भारतीय राज्यों में बनने वाला पहला अधिनियम है। उसकी सर्वत्र सराहना हुई है।
2. उत्तराखंड भू अधिनियम को प्रदेश की जनाकांक्षाओं के अनुरूप बनाया गया है।
3. जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाया।
4.गौहत्या, मानव तस्करी, बालश्रम और परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकने के लिए गैंगस्टर एक्ट में संशोधन किया गया है।
5.परीक्षाओं में अनियमितता रोकने के लिए अलग से एक कानून बनाया।
महिला सशक्तिकरण –
उत्तराखंड पहला राज्य है जहां महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अलग से नीति निर्धारित की गई है।
1.लड़कियों के जन्म से लेकर शिक्षा प्राप्ति तक आर्थिक सहयोग के लिए नंदा गौरी योजना है।
2.पशुपालक महिलाओं के लिए घसियारी कल्याण योजना है।
3.एकल ( Singal women) महिलाओं को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री एकल महिला रोज़गार योजना।
4.लखपति दीदी योजना के अंतर्गत 1.63 महिलाएं लखपति बन चुकी हैं।
,5. जलसखी योजना के अंतर्गत बिजली, पानी आदि के बिलिंग का काम भी स्वयं सहायता समूह के मार्फत कम दिया गया है।
6. सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30% आरक्षण दिया गया है।
7. सहकारी समितियों तथा पंचायत निकाय चुनावों में महिलाओं को 33% आरक्षण है।
8.पैतृक संपति में महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित कर दिए गए हैं।

आंकड़े चीख रहे हैं-
उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के डैश बोर्ड पर लिखे आंकड़े एक सिहरन पैदा कर देते हैं। 16 व 17 जून 2013 को ग्लेशियर के खिसकने से उपजी प्रतिक्रियाओं के कारण केदारनाथ में अब तक की सर्वाधिक भयंकर बाढ़ आई थी। उस दुखांतिका में 4400 लोग या तो काल के गाल में समा गए या लापता माने गए। एक चिरस्मरणीय दुर्घटना 12 नवंबर 2023 को सिल्क्यारा (उत्तरकाशी) में निर्माणाधीन सुरंग ढहने की घटी। यह दुर्घटना विश्व की विरल दुर्घटनाओं में से एक थी जिसमें 41 श्रमिक 17 दिनों तक सुरंग में फंसे रहे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आपदा प्रबंधन अधिकारियों के साथ मिलकर जिस धैर्य और कुशल प्रबंधन का परिचय दिया वह अकल्पनीय था। अंततः सभी श्रमिकों को सुरक्षित निकला गया। सन 2024 में अतिवृष्टि, बाढ़ या बादल फटने की 3244 घटनाएं घटी। इन घटनाओं में 384 लोगों की मृत्यु हुई, 809 लोग घायल हुए और 17 लोग लापता हुए। साल 2025 में सितंबर माह तक प्राकृतिक आपदाओं की 2199 घटनाएं हो चुकी हैं, 700 घटनाएं बारिश/ बाढ़ की हो चुकी हैं। भूस्खलन की 1034 घटनाएं रिकॉर्ड में दर्ज हैं। 260 लोगों की मौत हो चुकी है, 566 लोग घायल हुए है और 96 लोग लापता है।
5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी जिले के धराली की बाढ विभीषिका दिल दहलाने वाली थी। कितने लोग मलबे में समा गए, कितने बह गए सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

पलायन उत्तराखंड की चुनौती –
यह एक पुरानी कहावत है कि पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ के काम नहीं आते। 2008 से 2018 के बीच 5,02,717 लोग उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर चुके हैं। उत्तराखंड में 3,946 गांव लगभग जन विहीन हो चुके है 1700 से अधिक गांव भूतहा घोषित हो चुके हैं। उत्तराखंड की लगभग 50 लाख आबादी उत्तराखंड को छोड़कर शहरों में रहती है। जो परिवार पर्वतीय गांवों को छोड़कर उत्तराखंड के मैदानी भाग में बस रहे हैं, इसका प्रभाव आने वाले समय में जनसांख्यिकी पर पड़ेगा। जिस दिन 70 सदस्यीय विधानसभा में 25 से 30 सदस्य मैदानी क्षेत्रों से चुने जाएंगे पहाड़ का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।

पंच प्रधान बाह्य लोग चुने जा रहे हैं-
उत्तरकाशी में, रुद्रप्रयाग में, हल्द्वानी में अतिक्रमण कर रह रहे रोहिंग्या और अन्य समाज कंटकों के विरुद्ध अच्छा जन आंदोलन खड़ा हुआ था। देव भूमि को बचाने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। आये दिन उत्तराखंड से महिलाओं के अपहरण या लव जेहाद की घटनाएं जानकारी में आती हैं.. .

पहलू जो बांट जोह रहे हैं –
1.भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात अपनी जगह पर है। कुछ मामलों में सरकार गंभीर नजर आती है लेकिन सरकारी कम निबटाने में बिना भेंट चढ़ाएं देवता भी प्रसन्न नहीं होते। यह तथ्य पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी बयां की थी।
2. उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। गिनती में प्राइमरी हेल्थ सेंटर हैं, उनमें डॉक्टर्स नहीं होते। विशेषज्ञ डॉक्टर का नितांत अभाव है।
3. वन्य जानवरों के भय से लोग गांवों को छोड़ रहे हैं। बच्चों को घर में भी अकेले नहीं छोड़ सकते न जाने कहां से बाघ, तेंदुआ या गुलदार उठाकर निवाला बना देगा।
4. उत्तराखंड का भान देहरादून में नहीं होता। ऐसा केवल गैरसैण में संभव है। हर स्थान का एक प्रभाव होता है।
5. गढ़वाली और कुमाऊनी बोलियां शीघ्र लुप्त होने वाली बोलियों में शामिल हैं। इनके संरक्षण के लिए स्वायत संस्था “गढ़वाली -कुमाउनी भाषा- साहित्य संवर्धन एवं संरक्षण अकादमी “ बनाये जाने की आवश्यकता है।
6. संस्कृत राज्य की दूसरी घोषित भाषा है।इसको जनभाषा बनाए जाने की आवश्यकता है। बिना आश्रय न तिष्ठंति पंडित: वनिता लता। हमारी संस्कृति अपसंस्कृति की ओर बढ़ रही है। इसके संवर्धन संरक्षण के लिए स्वायत “उत्तराखंड संगीत नाटक अकादमी” स्थापित करने की आवश्यकता है। इन अकादमियों को दलगत राजनीति से दूर रखने की व्यवस्था होनी चाहिए।
संस्कृति विहीन राज्य आत्मा विहीन शरीर है।
स्थापना के 25 वर्ष यानी रजत जयंती वर्ष। इस वर्ष व्यापक स्तर पर लोक संस्कृति, लोक परंपराओं और राजकीय उपलब्धियों का प्रदर्शन हो। उत्तराखंड की जय जयकार घाटियों से शिखरों तक पहुंचे। लोग गिर्दा का लिखा गायें-
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि,
मातृभूमि मेरी पितृ भूमि
ओ भूमि तेरी जै जैकारा
म्योर हिमाला…..

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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