उम्मीद है, नैनीताल के विकास की नई कहानी लिखेंगे ललित मोहन रयाल
(गुणानंद जखमोला)
कभी-कभी सिस्टम के बीच से कुछ ऐसे चेहरे निकलते हैं जो यह भरोसा दिलाते हैं कि ईमानदारी, सादगी और संवेदना अभी भी जिंदा है। ललित मोहन रयाल, आईएएस, उन्हीं में से एक हैं— एक ऐसा अफसर जो सिर्फ़ पद से नहीं, अपनी माटी से जुड़ाव के लिए पहचाने जाते हैं।
रयाल जी ने कभी मलाईदार पदों की दौड़ में खुद को शामिल नहीं किया। न किसी लॉबी का हिस्सा बने, न किसी गुटबाज़ी का मोहरा। मुख्यमंत्री के अपर सचिव रहते हुए उन्हें सचिवालय में इंदिरा भोजनालय के पास एक छोटा-सा 8×8 का कमरा मिला था — और उन्होंने बिना किसी शिकायत के वहीं से वर्षों तक काम किया। यह विनम्रता और कर्मनिष्ठा आज के दौर में दुर्लभ है।
मैं अक्सर मज़ाक में कहता था— “मुख्यमंत्री ने रयाल जी को अपने सचिवालय का ‘गौमुख’ बना रखा है — ऊपर स्वच्छ और शांत, नीचे भ्रष्टाचार की गंगा बहती हुई।” मगर उस शांत गौमुख में काम करने वाला यह अफसर भीतर से ऊर्जा और ईमानदारी का झरना है।
रविवार उनके लिए अवकाश का नहीं, अपनी मिट्टी से मिलने का दिन होता है। हर हफ्ते वे देहरादून से अपने गाँव खदरी निकल जाते हैं — खेतों में कुदाल-फावड़ा चलाते हैं, पौधे लगाते हैं, मिट्टी में पसीना बहाते हैं। यह दृश्य बताता है कि रयाल जी सिर्फ़ अफसर नहीं, अपनी जड़ों से जुड़ा इंसान हैं।
लेखन में भी वे उतने ही सशक्त हैं। उनकी छह पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं — शब्दों के चयन से लेकर व्यंग्य की धार तक, सबमें एक परिपक्वता झलकती है। ‘खड़कमाफी’ हो या ‘चातुरी चतुरंग’, उनका शब्दशिल्प बेजोड़ है। ‘चातुरी चतुरंग’ में उन्होंने सरकारी अफसरशाही की विडंबनाओं को जिस तीखे और हास्यपूर्ण अंदाज़ में लिखा है, वह मुझे बार-बार श्रीलाल शुक्ल की ‘रागदरबारी’ की याद दिलाता है।
आज दोपहर मैंने सोशल मीडिया पर “नैनीताल को बचाने” को लेकर एक पोस्ट लिखी थी। कुछ ही घंटों बाद ख़बर आई कि ललित मोहन रयाल को नैनीताल का जिलाधिकारी नियुक्त किया गया है। यह संयोग नहीं, शायद संकल्प का परिणाम है।
नैनीताल के एडीएम शैलेंद्र सिंह नेगी पहले से ही ईमानदारी और कार्यकुशलता के प्रतीक माने जाते हैं। अब इन दोनों अफसरों की जोड़ी से उम्मीद है कि नैनीताल के विकास की एक नई और स्वच्छ इबारत लिखी जाएगी — ऐसी इबारत, जिसमें न केवल नीतियाँ होंगी, बल्कि नैतिकता की खुशबू भी होगी।