Monday, October 20, 2025
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यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स 2025। एक ही फ़िल्म ने लपके चार अवार्ड

दिल्ली के सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में हुआ यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स 2025 का भव्य आयोजन

नई दिल्ली (हि. डिस्कवर)

क्षेत्रीय सिनेमा के हिसाब से देखा जाय तो नई दिल्ली के श्री फोर्ट ऑडियोटोरियम में आयोजित यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड बेहद भव्य और दिव्य रहा। विगत 23 अगस्त को आयोजित हुए इस सिने अवार्ड्स में दर्शकों से खचाखच भरे इस कार्यक्रम ने जहाँ शुरूआती दौर को बेहद शालीनता के साथ देखा लेकिन अंतिम क्षण इतने उफान पर थे कि दर्शक जहाँ जगह मिलती वहीं खड़े होकर गढ़वाली गीतों ली प्रस्तुति के साथ खूब नाचते रहे।

सतरंगी रंगों में सजी व निखरी यह शाम यकीनन जहाँ ऑडियोटोरियम के बाहर झमाझम बारिश से नहाती रही, वहीं दूसरी ओर बिशाल मंच का संगीत निर्देशन कर रहे संगीत निर्देशक राकेश ‘राही’ ने मंच पर अपना सर्वस्व दिया, जिसमें दर्जन भर से अधिक गायकों की प्रस्तुति ने दर्शकों को झुमा कर रख दिया।

यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड-2025 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने वाले थे लेकिन अचानक उत्तरकाशी जिले के धराली के बाद चमोली जिले में आई भयंकर प्राकृतिक आपदा के चलते उनका कार्यक्रम स्थगित हो गया।

जहाँ निर्णायक मंडल द्वारा घोषित नपे तुले अवार्ड्स की दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शकों ने तालियां बजाकर स्वागत किया, वहीं सबके बीच इस बात की भी चर्चा रही कि एक साथ विभिन्न वर्गों में घोषित किये गए पुरस्कारों में चार पुरस्कार ले जाने वाली फ़िल्म ‘जोना‘ किस-किस ने देखी। जिनमें से ज्यादात्तर कंधे उचकाकर फ़िल्म न देखने की बात करते दिखाई दे रहे थे, तो कई जोना फ़िल्म अब देखने को उत्सुक रहे।

ज्यूरी सदस्य डॉ सतीश कालेश्वरी ने जानकारी देते हुए बताया कि विगत दो बर्ष पूर्व यानि पिछले बर्ष 2024 में ‘माटी की पछयाण‘ और उससे पहले बर्ष-2023 में ‘बथौं‘ जैसी फिल्मों को देखने वाले दर्शक ना के बराबर थे, लेकिन ये फ़िल्में पांच-पांच अवार्ड अपने नाम कर गई थी। उन्होंने कहा कि यह यंग उत्तराखंड संस्था की बेहतरीन पहल कही जा सकती है कि उनकी चयन प्रक्रिया बेहद पारदर्शिता भरी हुई होती है। इनके ज्यूरी मेंबर्स हर गीत, गीतकार, संगीतकार, अभिनेता, अभिनेत्री, सह-अभिनेता, सह-अभिनेत्री, सिनेफ़ोटोग्राफर्स इत्यादि के अवार्ड नामांकन के हर पहलु की बारिकी से जांच कर उसमें अपनी राय बनाते हैं।

डॉ सतीश कालेश्वरी मानते हैं कि वर्तमान में हमारे उत्तराखंड मूल के दर्शक जाने क्यों अपनी क्षेत्रीय भाषाई फिल्मों से मुंह मोड़ रहे हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो ‘जौना’ सभी अन्य फ़िल्में भी सबकी जुबान पर होती। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि क्षेत्रीय भाषाई फिल्मों ने बहुत लम्बे समय तक अकाल झेला है। यह दौर उत्तराखंडी फिल्मों का स्वर्णिम दौर कहा जा सकता है, इसलिए हमें हर फ़िल्म को देखने के लिए सिनेमा हॉल तक जरूर जाना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार व ज्यूरी मेंबर अपनी सोशल साइट पर लिखते हैं कि ‘रिखुली‘ और ‘जोना‘ फिल्‍मों ने श्रेष्‍ठता के अवार्ड ही नहीं जीते, बल्कि मुख्‍यधारा के उत्तराखंडी सिनेमा के लिए कुछ मानक तय करने की भी चेष्‍टा की है। रिखुली सर्वश्रेष्ठ कहानी, सर्वश्रेष्ठ छायांकन और सर्वश्रेष्ठ सह अभिनय की श्रेणी में विजेता रही। आपको यदि सच्‍चे मायनों में पहाड़ से जोड़ता सिनेमा और सिनेमा के रूप में बाडुली लगाने वाला कोई खुदेड़पन चाहिए तो रिखुली जैसी फिल्‍में आपकी इस ‘तीस’ को और बढ़ा सकती हैं। ठेठ पहाड़ी गांव का चित्रण, वहां की जीवन शैली, सांस्‍कृतिक-सामाजिक विडम्बनाएं, पारंपरिक आस्‍था व विश्‍वास, संवादों में स्‍थानीय बोध, परिवेश से पात्रों का जुड़ाव, अभिनय कौशल और निखरे निर्देशन की बानगी है- रिखुली

ब्योमेश आगे लिखते हैं कि ‘जोना‘ ने सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म, सर्वश्रेष्‍ठ निर्देशन, सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्‍ठ सह अभिनेत्री की दौड़ में बाजी मारी। ‘जोना‘ एक सौदेश्‍यपरक फिल्‍म है। यह सार्थक और व्‍यावसायिक दोनों धरातल पर खरी उतरती दीखती है। फिल्म में छोटी भूमिकाओं के पात्र भी कारगर अभिनय कर गए। जैसे, झोला-साफे वाले बैदजी। पोती के बालों से जूंए-लीखे निकालती आम पहाड़न दादी, किशोरवय जोना की चंचलता, प्रेम में पगी सरलता, जोना की जिंदगी बचाने की जद्दोजहद के बीच नायक का रिवर्स पलायन जैसी संवेदनाओं को अभिव्‍यक्त करती ‘जोना’ यदि पहाड़ के गांवों से गायब स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर एक कटाक्ष करती है तो समाधान भी सुझाती है।

‘कारा एक प्रथा’ के खाते में भी दो पुरस्‍कार गए। सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेत्री और सर्वश्रेष्‍ठ खलनायक। दोनों कलाकारों शिवानी भंडारी और रमेश रावत के अभिनय ने कहानी के अनुरूप एक जटिल किरदार की चुनौती को स्‍वीकारा तो कारगर ढंग से निभाया भी।

ब्योमेश जुगराण आगे लिखते हैं, माना कि खिताबी दौड़ में शामिल अधिकांश फिल्‍में कैमरा, कलाकार, पटकथा, संपादन, संप्रेषण और निर्देशन की दृष्टि से 19-20 के अंतर से आगे-पीछे रही हों लेकिन बात सच है कि फिल्‍में बनेंगी तो प्रतिस्‍पर्धा होगी। प्रतिस्‍पर्धा होगी तो कोई आगे निकलेगा! तभी ‘यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड’ (यूका) जैसे पुरस्कार अपनी सार्थकता और प्रासंगिकता सिद्ध कर सकेंगे। नई दिल्ली के भव्य सीरीफोर्ट आडिटोरियम में संपन्न यूका का यह 13वां संस्करण इसलिए भी याद रखा जाएगा कि पहली बार स्पर्धा में रिकार्ड 12 फिल्में शामिल हुईं। निश्चित ही उत्तराखंडी आंचलिक सिनेमा के लिए यह सुखद स्थिति है।

मेरा मानना है कि जहाँ उत्तराखंड फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए यह ख़ुशी की बात है कि विगत पांच छ: बर्षों में दर्जनों क्षेत्रीय भाषाई फ़िल्में बन चुकी हैं और यह क्रम हर बर्ष बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन यहाँ मुसीबत यह भी है कि वर्तमान में बन रही ज्यादातर फिल्मों में हम पटकथा, डायरेक्शन, संवाद, तकनीकी दृष्टि, अभिनय सहित हर मामले में पिछड़ रहे हैं। यही एक बड़ा कारण भी हो सकता है कि दर्शकों का पिक्चर हॉल से मोहभंग हो रहा है, और अच्छी फ़िल्में दर्शकों तक पहुँचने से वँचित रह रही हैं।

बहरहाल यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड-2025 में इस बार मूलत: गढ़वाल के टिहरी जिले के निर्माता निर्देशक़ बाजी मार ले गए, वहीं दूसरी ओर निर्णायक मंडल ने गढ़-कुमाऊं के हर क्षेत्र से चिन्हित सुयोग्य कलाकारों को पुरस्कार की दौड़ में शामिल रखा। जनजातीय क्षेत्र पिथौरागढ़ के दारमा घाटी के लोकगायक गंभीर धार्मी को गोपाल बाबू गोस्वामी लीजेंड्री सिंगर अवार्ड से सम्मानित किया गया, वहीं लोक संस्कृति की संवाहक देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर क्षेत्र को इस बर्ष मायूस होना पड़ा।

क्या है खबर

उत्तराखंड की कला, संस्कृति और सिनेमा को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से आयोजित “यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स 2025” का दिल्ली के प्रतिष्ठित सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में शनिवार (23 अगस्त ) को भव्य आयोजन हुआ। यह उत्तराखंड के क्षेत्रीय सिनेमा और संगीत जगत का सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित पुरस्कार समारोह है, जिसका आयोजन यंग उत्तराखंड संस्था ने 13वीं बार सफलतापूर्वक किया।

कार्यक्रम की शुरुआत ऑपरेशन सिंदूर में भाग लेने वाले वीर सैनिकों को सलामी और हाल ही में उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में आई प्राकृतिक आपदा में दिवंगत हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई। साथ ही, उत्तराखंड के दो दिग्गज कलाकार—स्व. घनानंद (घन्ना भाई) और लोकगायक जगदीश बकरोला—को भी भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

करीब 2000 से अधिक दर्शकों की उपस्थिति में सभागार गूंज उठा जब उत्तराखंड के सिनेमा और संगीत जगत के वर्ष 2024 में किये गए उत्कृष्ट कार्य करने विजेताओं की घोषणा की गई और उन्हें यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स ट्रॉफी प्रदान की गई।

फिल्म कैटेगरी के विजेता:
सर्वश्रेष्ठ खलनायक – रमेश रावत (फिल्म कारा एक प्रथा
सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता – विजय वशिष्ठ (फिल्म रिखुली)
सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री – मंजू बहुगुणा (फिल्म जौना)
सर्वश्रेष्ठ फिल्म कहानी – जागृत किशोर गैरोला (फिल्म रिखुली)
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता – अर्जुन चंद्रा (फिल्म जौना)
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – शिवानी भंडारी (फिल्म कारा एक प्रथा)
सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्देशक – निशे नाथ (फिल्म जौना)
सर्वश्रेष्ठ फिल्म – जौना (निर्माता: तितली फिल्म्स)
सर्वश्रेष्ठ छायाकार – गोविन्द नेगी (फिल्म रिखुली)

संगीत कैटेगरी के विजेता:

सर्वश्रेष्ठ गीतकार – नरेन्द्र सिंह नेगी (भाबर नि जौंला)                  सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक – नितेश बिष्ट (सुवा प्रतापा)            सर्वश्रेष्ठ गीत छायांकन – करण चैसिर (मेरा सैंय्या)              सर्वश्रेष्ठ गायक (पुरुष) – विवेक नौटियाल (उड़ जा चखुली)          सर्वश्रेष्ठ गायिका (महिला) – ममता आर्य (धारतोली की हिमा)        सर्वश्रेष्ठ गीत निर्देशक – अंजलि कैंतुरा (झुमकी-झुमकी)              सर्वश्रेष्ठ संगीत प्रोडक्शन हाउस – मशकबीन और चाँदनी एंटरप्राइज (संयुक्त रूप से)

विशेष सम्मान:
यंग उत्तराखंड लाइफ टाइम सिने अवार्ड – श्रीमती मंजू बहुगुणा
गोपाल बाबू गोस्वामी लीजेंड्री सिंगर अवार्ड – गंभीर धार्मी

कार्यक्रम के निर्णायक मंडल में बृज मोहन शर्मा,  विनोद रावत,  जसपाल शर्मा,  प्रेम शर्मा, व्योमेश जुगरान, डॉ सतीश कालेश्वरी , अनिल कार्की, सतेन्द्र पेनिद्रियाल,  किशन महिपाल शामिल थे। कार्यक्रम के दौरान उत्तराखंड के लोक-कलाकारों ने गायन और नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियाँ दीं, जिसने सभागार को तालियों से गूंजा दिया। इस अवसर पर उत्तराखंड से जुड़े सामाजिक संगठनों और उद्योग जगत की कई प्रमुख हस्तियां भी उपस्थित रहीं।

संस्था पिछले एक दशक से लगातार इस आयोजन को कर रही है। महासचिव अनूप डोबरियाल ने कहा “हमारा लक्ष्य है कि उत्तराखंड का क्षेत्रीय सिनेमा और संगीत भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खड़ा हो। कलाकारों को उनका सही सम्मान और उचित परिश्रमिक मिले। यह आयोजन न केवल कलाकारों को प्रोत्साहित करता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करता है।”

विशेष बात यह है कि इस कार्यक्रम में दर्शकों का प्रवेश पूरी तरह निःशुल्क होता है, लेकिन दर्शक पहले से सीट आरक्षित कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। यही कारण है कि प्रवासी उत्तराखंडी समाज और कला प्रेमियों में यह आयोजन बेहद लोकप्रिय है।
संस्था के महासचिव अनूप डोबरियाल ने आगे बताया कि इस आयोजन को संचालित करने वाले सभी सदस्य या तो निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं या स्वयं का व्यवसाय करते हैं और यह कार्यक्रम पूर्णतः निःस्वार्थ सामाजिक उद्देश्य से आयोजित किया जाता है।

यह आयोजन न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को देश-दुनिया में पहुंचाने का माध्यम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रवासी समाज जब एकजुट होता है तो अपने क्षेत्रीय कला-संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है।

यंग उत्तराखंड संस्था ने सभी विजेता कलाकारों, दर्शकों, ज्यूरी सदस्यों , अतिथियों और प्रायोजकों का हृदय से आभार व्यक्त किया।

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