Tuesday, July 22, 2025
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नालागढ़ किला देहरादून का इतिहास….

(मनोज इष्टवाल)

क्या हम खलँगा नालापानी किला देहरादून के बारे में यह सब जानते हैं?

* 24 अक्टूबर सन 1814 (10 गते कार्तिक संवत 1971) में कर्नल मार्विले के नेतृत्व में 800 सैनिकों ने पहली बार खलंगा किला नालापानी पर धावा बोला। जिसको गोरखा सेना कमांडर बलभद्र कुंवर व उनकी सेना ने बुरी तरह परास्त किया।
* 26 अक्टूबर सन 1814 (12 गते कार्तिक संवत 1971)
मेजर जनरल रॉबर्ट् रोलो जिलेस्पी के नेतृत्व में कप्तान जॉन फ़ास्ट के नेतृत्व में 363 भारतीय जवान व अंग्रेज अफसरों के दल ने नाला पानी के उत्तर यानि लाखंद गाँव की ओर से, मेजर केली के नेतृत्व में 521 भारतीय सैनिक व 20 घुड़सवारों के साथ खरसाली की ओर से, लेफ्टिनेंट कर्नल कारपेंटर के नेतृत्व में 588 यौद्धा और 53वीं ब्रिटिश रेजिमेंट की दो कम्पनी के साथ ठाडापानी (ठंडापानी ) की ओर से, मेजर लाडले के नेतृत्व में 991 भारतीय व 100 आइरिश ड्रेगन सेना के साथ लेफ्टिनेंट कर्नल कारपेंटर के सहयोग हेतु भेजे व चौतरफा नाला पानी किले पर आक्रमण किया। इस किले पर आक्रमण हेतु मेजर जनरल जिलेस्पी ने लगभग 3000 सेना के साथ आक्रमण किया था। जबकि गोरखा सेना ‘सिंहनाथ’ कम्पनी के 400 सैनिक व 200 परिजन तब नालापानी किले में कमांडर बलभद्र के साथ थे।
* 30 अक्टूबर सन 1814 (16 गते कार्तिक संवत 1971) कर्नल कारपेंटर के नेतृत्व में किले पर धावा बोला। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन रात दिन चले इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला… दोनों ओर से कई सैनिक हताहत हुए।
31अक्टूबर सन 1814 (17 गते कार्तिक संवत 1971) आमने सामने के भयंकर युद्ध में मेजर जनरल जिलेस्पी व 150 अंग्रेज व 200 भारतीय सैनिक मारे गए। जनरल जिलेस्पी के अंगरक्षक ओहार व कैप्टेन बायर्स को भी गोली लगी।
* मेजर जनरल जिलेस्पी की मौत के बाद कर्नल मावी ने मोर्चा संभाला व युद्ध विराम की घोषणा कर अपने मरे हुए सैनिकों की लाशें उठाई व घामवाला -आमवाला की ओर मुड़ गए।
* 25 नवंबर 1814 फिर से नालागढ़ किले की घेराबंदी हुई। इस बार ब्रिटिश कम्पनी ने बेहद सटीक तैयारी के साथ आक्रमण किया। किले तक पहुँचने वाली पेयजल आपूर्ती बंद की। रसद सामग्री पहुँचने के सारे रास्ते बंद किये और चौतरफा गोला बारूद व मोटर्रार से हमला किया।
* 27 नवंबर 1814 रविवार पूर्णिमा के दिन यानि मंगसीर 14 गते संवत 1871 बिना राशन पानी के व्याकुल आकुल गोर्खाली कुंवर बलभद्र एक हाथ में तलवार व दूसरे हाथ में खुँखरी लिए किले से बाहर निकला उसके साथ सूबेदार चंद्रवीर थापा, सूबेदार नाथू माझी, सूबेदार दलजीत कुंवर, जमदार दलजीत शाही, सूबेदार दयाराम खड़का सहित 62 लोग मारे गए जबकि 400 ब्रिटिश सैनिक इस युद्ध में धाराशाही हुए। कुंवर बलभद्र के पास फिर से नालाढ के अंदर घुसने के आलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।
* 30 नवंबर 1814 की मध्य रात्रि बलभद्र कुंवर ने सूबेदार रिपुमर्दन थापा, सूबेदार चामू बस्न्यात, सूबेदार गज सिंह थापा, जमदार विजय सिंह खत्री, जमदार सिंह वीर घर्ती मगर, जमदार चन्द्रमणी राणा, जमदार मंगल राणा के साथ वार्ता की और सबने एक स्वर में यही जबाब दिया कि जिन्दा रहे तो फिर किले पर आक्रमण कर उसे जीत लेंगे। विगत चार पांच दिन से न खाना है न पानी है। बच्चे, पत्नियां, बूढ़े व जवान एक एक करके बिना भोजन पानी के प्राण त्याग रहे हैं। किले के अंदर लाशो के अम्बार लग रहे हैं।
* 30 नवंबर की मंत्रणा के पश्चात् 31 नवंबर की अल सुबह चन्द्रमा के प्रकाश में 4 बजे कुंवर बलभद्र अपने 90 साथियों के साथ हाथ में बन्दूक व नंगी खुँखरी लिए घेराबंदी किये ब्रिटिश सेना को कहता है व किला छोड़कर जा रहा है इसलिए कोई रास्ते में न आये। जिन्दा रहा तो दुबारा आऊंगा। ब्रिटिश सेना ने उसका यूँ चला जाना ही उचित समझा।
* इस युद्ध में ब्रिटिश सेना के अफसर सहित कुल 813 यौद्धा मारे गए जबकि नालागढ़ किले के अंदर 185 सैनिकों, परिजनों के लाशो के अम्बार व 180 मृत प्राय हुए लोग ब्रिटिश सेना को मिले। वहां ऐसी दुर्गन्ध फैली थी कि सांस लेना भी मुश्किल था। इस युद्ध में कुल 430 गोर्खाली मारे जाने की बात सामने आई है।
संदर्भ : नेपाल दिग्दर्शन (होम नाथ उपाध्याय), द हिस्ट्री ऑफ़ हँसटिंग्स पॉलिटिक्स एंड मिलिट्री ट्रांसक्शन इन द टाइम ऑफ़ मरक्वेस (एच टी प्रिंसेप), नेपाल को ऐतिहासिक रूपरेखा (बाल चंद्र शर्मा), नेपाली राणा गहरानाको संक्षिप्त वंशावली (मेजर फलेन्द्र विक्रम राणा), ब्रिटिश कालीन भारत का इतिहास (पी ई रॉबर्ट्स), नालागढ़ को यौद्धा (अम्बिका प्रसाद अधिकारी, नेपाल को आलोचनात्मक इतिहास (प्रो. ढूंडिराज भंडारी), नेपाल को सैनिक इतिहास (डॉ. प्रेम सिंह बस्न्यात)

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