Wednesday, November 20, 2024
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प्राण प्रतिष्ठा के दौरान श्रीराम इन दिव्य आभूषणों व वस्त्रों से थे सुसज्जित..।

वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल- कलश दर्शाया गया 

* वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल- कलश दर्शाया गया  

* आभूषणों का निर्माण अंकुर आनन्द की संस्थान हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स लखनऊ ने किया 

* शीष पर माणिक्य, पन्ना और हीरा जड़ा सोने का मुकुट
 (मनोज इष्टवाल)
आखिरकार हिन्दू सनातन धर्मावलम्बियों का 500 बर्ष पुराना इंतजार खत्म हो गया है। अयोध्या में पुरुषोत्तम राम नए मंदिर में विराजमान हो चुके हैं। जानकारी के मुताबिक दोपहर को 12:30 बजे परिजात मुहूर्त श्रीराम के नवीन विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा शुरू हुई। मात्र 84 सेकेंडस अर्थात एक मिनट 24 सेकेंड्स के अद्भुत योग में बीच श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की पूर्ण की गई। यह दृश्य अद्भुत था क्योंकि लगभग 504 बर्ष बाद पुरुषोत्तम राम अपने मंदिर रुपी महल में विराजमान हुए। आज देश का हर घर दिव्य रामज्योति से जगमगा रहा है और दीपावली के बम-पटाके गगनचुम्बी आवाज के साथ आसमान छू रहे हैं। यह दृश्य अद्भुत व मनोहारी है, सचमुच लग रहा है मानो रामराज आ गया हो।
अयोध्या में प्रभु श्रीराम भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और उत्तरप्रदेश  के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत संत समाज और अति विशिष्ट लोगों की उपस्थिति में रामलला के श्रीविग्रह की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हो गई है।
यह अपने आप में बेहद मनोहारी व दिव्य व भव्य क्षण थे जब  प्राण-प्रतिष्ठा के बाद श्रीराम के बालरूप की पहली झलक सामने आई थी। सामने आई तस्वीर में पांच साल के पुरुषोत्तम राम  का बहुत ही मनमोहक रूप आंखों में बस जाने वाला है।
बालरूप की इस छवि में श्रीराम की आंखों में मासूमियत, होठों पर मुस्कान, चेहरे पर गजब का तेज दिखाई दे रहा है। कुछ पल एकाग्र मन से  राम जी कि मूर्ती को एकटक निहारते रहने से ऐसा महसूस हो रहा है मानो वह मेरे मन की हर बात जानकर मंद-मंद मुस्करा रहे हों। यकीनन उनकी पहली झलक दिल में बस जाने वाली है। भगवान की पहली झलक देखकर एक बात तो साफ है कि कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने जब मूर्ती को मूर्त रूप देना शुरू किया होगा तब स्वयं राम लला उन्हें अपनी बालपन की मूर्ती बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हों व उनका उन्हें मार्गदर्शन मिल रहा हो। मैसूर के फेमस मूर्तिकार अरुण योगीराज ने सचमुच पुरुषोत्तम राम की ऐतिहासिक प्रतिमा बनाई है। यह मूर्ती 51 इंच की आज मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हो गयी है।
श्रीराम के वस्त्राभूषण व साज-श्रृंगार 
पुरुषोत्तम राम के  पांच साल के बाल्यरूप को प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर खास शृंगार से सुसज्जित किया गया था। उन्हें दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सजाया गया था। इन दिव्य आभूषणों का निर्माण अध्यात्म रामायण, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरिमानस और आलवन्दार स्तोत्र के अध्ययन और उनमें वर्णित श्रीराम की शास्त्रसम्मत शोभा के अनुसार शोध और अध्ययन के बाद किया गया है। इस शोध के अनुसार ही यतींद्र मिश्र की परिकल्पना और निर्देशन में इन आभूषणों का निर्माण अंकुर आनन्द के संस्थान हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स लखनऊ ने किया है।
इस साजो-श्रृंगार में श्रीराम बनारसी वस्त्र से बनी पीताम्बर धोती और लाल रंग के पटुके (अंगवस्त्रम) से सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर शुद्ध सोने की जरी और तारों से काम किया गया है। इनमें वैष्णव मंगल चिन्ह- शंख, पद्म, चक्र और मयूर भी अंकित किया गया है। इन वस्त्रों का निर्माण अयोध्या रहकर दिल्ली के सुप्रसिद्ध डिजाइनर मनीष त्रिपाठी ने किया है।
रामलला के आभूषण
श्रीराम के इस बालरूप की छवि बेहद निराली है। रामलला के गले में अर्द्धचन्द्राकार रत्नों से जड़ित कंठा सुशोभित हो रही है। इसमें मंगल का विधान रचते पुष्प अर्पित हैं और बीच में सूर्य देव बने हैं। सोने से बने इस कण्ठा में हीरे, माणिक्य और पन्नें जड़े हैं। कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गई हैं। रामलला के हृदय (सीने) पर कौस्तुभमणि धारण कराया गया है। इसे एक बड़े माणिक्य और हीरों के अलंकरण से सजाया गया है। यह शास्त्र-विधान है कि भगवान विष्णु और उनके अवतार हृदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं। इसलिए रामलला भी इसे धारण किये हुए हैं।
शीष पर माणिक्य, पन्ना और हीरा जड़ा सोने का मुकुट
पुरुषोत्तम राम के सिर पर जो शीष मुकुट है, उसे किरीट भी कहते हैं। यह उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार सोने से बनाया गया है। इसमें माणिक्य, पन्ना और हीरे भी जड़े हुए हैं। मुकुट के ठीक बीच में भगवान सूर्य अंकित हैं। मुकुट के दाईं ओर मोतियों की लड़ियाँ पिरोई गई हैं। मुकुट के अनुसार ही और उसी डिजाइन का कर्णपुष्प और अन्य आभूषण बनाए गए हैं। इनमें मयूर आकृतियाँ बनी हैं, और यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित हैं। श्रीराम का यह श्रृंगार बेहद लोकलुभावन है।
गले में रत्नों से बना कंठा
गले में अर्द्धचन्द्राकार रत्नों से जड़ित कंठा सुशोभित हो रही है। इसमें मंगल का विधान रचते पुष्प अर्पित हैं और बीच में सूर्य देव बने हैं। सोने से बने इस कण्ठा में हीरे, माणिक्य और पन्ने जड़े हैं। कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गई हैं। रामलला के हृदय (सीने) पर कौस्तुभमणि धारण कराया गया है। इसे एक बड़े माणिक्य और हीरों के अलंकरण से सजाया गया है। यह शास्त्र-विधान है कि भगवान विष्णु और उनके अवतार हृदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं। इसलिए इसे धारण कराया गया है।
पंचलड़ा वाला हार
गले से नीचे नाभिकमल से ऊपर रामलला ने हार पहना है। इसका देवताओं के अलंकरण में विशेष महत्त्व है। यह पदिक पांच लड़ियों वाला हीरे और पन्ने का ऐसा पंचलड़ा है, जिसके नीचे एक बड़ा सा अलंकृत पेण्डेंट लगाया गया है। इसके अलावा तीसरा और सबसे लम्बा सोने से निर्मित एक अन्य हार भी पहन रखा है। इसमें कहीं-कहीं माणिक्य लगाये गये हैं, इसे विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है। इसमें वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल- कलश दर्शाया गया है। इसमें पांच प्रकार के देवता को प्रिय पुष्पों का भी अलंकरण किया गया है, जो क्रमशः कमल, चम्पा, पारिजात, कुन्द और तुलसी हैं।
कमर में रत्नजड़ित करधनी
रामलला के कमर में करधनी धारण कराई गई है। इसे रत्नजड़ित बनाया गया है। स्वर्ण पर निर्मित इसमें प्राकृतिक सुषमा का अंकन है, और हीरे, माणिक्य, मोतियों और पन्ने से यह अलंकृत है। पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पाँच घण्टियों भी इसमें लगायी गयी है. इन घण्टियों से मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियों भी लटक रही हैं। दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित मुजबन्ध पहनाये गये हैं। दोनों ही हाथों में रत्नजडित सुन्दर कंगन पहनाये गये हैं। बाएं और दाएं दोनों हाथों की मुद्रिकाओं में रत्नजडित मुद्रिकाएं सुशोभित हैं। इनमें से मोतियां लटक रही हैं। पैरों में छड़ा और पैजनियां पहनी हैं। इसके साथ ही श्रीराम लला को सोने की पैजनियां पहनाई गई हैं।
राम लला के धनुष बाण
रामलला के बाएं हाथ में सोने का धनुष है। इनमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं। दाहिने हाथ में सोने का बाण धारण कराया गया है। गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण करायी गयी है। इसका निर्माण हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्पमंजरी संस्था ने किया है। रामलला के प्रभा-मण्डल के ऊपर स्वर्ण का छत्र लगा है। रामलला के मस्तक पर पारम्परिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है। भगवान के चरणों के नीचे जो कमल सुसज्जित है, उसके नीचे एक स्वर्णमाला सजाई गई है। भगवान पांच वर्ष के बालक-रूप में श्रीराम विराजे हैं, इसलिए पारम्परिक ढंग से उनके सामने खेलने के लिए चांदी से निर्मित खिलौने रखे गये हैं। इनमें झुनझुना, हाथी, घोड़ा, ऊंट, खिलौना गाड़ी और लट्टू हैं।
पुरुषोत्तम राम  के इस बालरूप ने देश व दुनिया के लोगों को मन्त्र मुग्ध कर दिया। यह सचमुच सरयू तट पर बसे सम्पूर्ण विश्व की पुरातन धर्म व संस्कृति नगरी अब फिर से अपने उसी पुरातन रूप में लौट रही है जिसे मुगलों ने 16वीं सदी में तहस नहस कर राममहल (राममंदिर) को बावरी मस्जिद में तब्दील कर दिया।
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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