निर्यात रोकने के बाद अब सरकार दो लाख टन अतिरिक्त प्याज खरीदेगी। यह खरीदारी निर्यात के आरंभिक भाव 2,410 प्रति क्विंटल की दर से की जाएगी। यह उचित फैसला है। लेकिन सरकार को इस बारे में एक स्थायी नीति बनानी चाहिए।
अचानक आयात या निर्यात को रोक देना नरेंद्र मोदी सरकार की खास पहचान बन चुकी है। फैसले चौंकाने वाले अंदाज में लिए जाते हैं, जिससे प्रभावित होने वाले तबकों को किसी पूर्व तैयारी का मौका नहीं मिलता। ऐसी मिसाल हाल में एक तरफ कंप्यूटर और उससे संबंधित उपकरणों का आयात रोकने के निर्णय के रूप में देखने को मिली, तो दूसरी तरफ अचानक चावल और फिर प्याज का निर्यात रोक दिया गया।
ऐसे फैसलों से निर्यात शृंखला से जुड़े तमाम उत्पादकों और कारोबारियों के लिए अचानक जो मुसीबत खड़ी होती है और साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भरोसे का जो संकट खड़ा होता है, वर्तमान सरकार उसकी परवाह नहीं करती। मगर इस बार प्याज के मामले में फैसला होते ही प्याज किसान सडक़ों पर उतर आए। चुनाव के गरमाते सीजन में किसानों के इस गुस्से से सत्ताधारी दल में आशंकाएं पैदा हुईं। तो अब वाणिज्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने किसानों को भरोसा दिया है कि उनके नुकसान की भरपाई की कोशिश में सरकार दो लाख टन अतिरिक्त प्याज खरीदेगी।
यह खरीदारी निर्यात के आरंभिक भाव 2,410 प्रति क्विंटल की दर से की जाएगी। यह उचित फैसला है। असल में सरकार को इस बारे में एक स्थायी नीति बनानी चाहिए। नौ साल पहले जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तब एक मूल्य स्थिरता (प्राइस स्टैबलाइजेशन) कोष बनाने का इरादा जताया गया था। उसका मकसद बाजारों में उस कोष के जरिए हस्तक्षेप कर जरूरी चीजों की कीमतों को स्थिरता देना बताया गया था। लेकिन बाद में उस बात को भुला दिया गया। इसके विपरीत विभिन्न क्षेत्रों में मोनोपोली कायम करने वाले कदमों को बढ़ावा दिया गया।
यह अनेक अध्ययनों का निष्कर्ष है कि आज के दौर की महंगाई मोनोपोली और विक्रेताओं के लगातार मुनाफा बढ़ाने के प्रयासों का नतीजा है। इसकी कीमत आम उपभोक्ताओं के साथ-साथ कृषि जैसे क्षेत्र में उत्पादकों यानी किसानों को भी चुकानी पड़ रही है। किसानों का सवाल वाजिब है कि जब कीमतें बढऩे के कारण उन्हें लाभ होने की स्थिति होती है, तो सरकार इसमें ब्रेक क्यों लगा देती है? सरकार को इस प्रश्न का जवाब देना चाहिए।