श्रीनगर का राणी हाट….। जहाँ छमना पात्तर व मस्तानी से लेकर कई गणिकायें गुलजार करती थी धन्नासेठों व राजकुंवरों की रातें।
(मनोज इष्टवाल)
“उझकी उझकी फिरकी सि फिरी चहूँ आसहि पासहि, कवि मोलाराम चली हटी कै दुपट्टा पटचोट बचावत हि।। संवत 1852 (सन 1795)… मोलाराम ने जाने कितनी गणिकाओं जिन्हें वर्तमान में रंडी जैसा नाम दिया गया है पर अपनी चित्रकारी की व उनके स्वरूपों पर अपनी बेबाक रसिक कलम चलाई है। उनकी इसी रसिकता ने उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भी रखा लेकिन फिर भी वह अपनी बेहद खूबसूरत गणिका “मस्तानी” को नहीं भुला पाये जिनसे वह अथाह प्रेम करते थे। आखिर ये राणीहाट इतने बदनाम क्यों थे? क्या इन गणिकाओं जिनका पेशा नाच गाना होने के साथ – साथ वेश्याओं सा भी था, के कारण उस दौर में आपसी खून-ख़च्छर भी था! अगर ऐसा नहीं है तब इसी राणीहाट में आई कुमाऊँ की सबसे खूबसूरत गणिका छमुना पात्तर को आज भी गढ़वाल में हेय दृष्टि से क्यों देखा जाता है व क्यों गालियों में अक्सर महिलाएं “लोली छमुना पात्तर” शब्द का इस्तेमाल करते हैं।
(मोलाराम की वह कृति जिसमें श्रीनगर राजमहल व राणी हाट को दर्शाया गया है)
अब सबसे पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि श्रीनगर में राणी हाट था कहाँ…? इस पर मेरे द्वारा फेसबुक में सबसे प्रश्न किया गया तो ज्यादात्तर मित्रों के जबाब थे कि यह कीर्तिनगर से एक किमी आगे बढ़ियार गढ़ रोड के पास अवस्थित है तो कुछ ने इसे चौरास -बढ़ियार गढ़ व कीर्ति नगर क्षेत्र में बताया है। वहीं गढ़वाल के सुप्रसिद्ध वैरिस्टर मुकुंदी लाल ने अपनी पुस्तक “गढ़वाल चित्रकला” के पृष्ठ संख्या 58 में रानीहाट के बारे में जानकारी देते हुए लिखा है कि ” चित्र के ऊपरी भाग में बाईं तरफ श्रीनगर का एक पर्वत है। उसके सामने रानी हाट का टीला (जो वहां अब भी मौजूद है) चित्रित है। रानीहाट के सामने दाईं ओर, अलकनंदा के इस पार, श्रीनगर के राजमहल दर्शाये गये हैं। ये महल श्रीनगर शहर की तरह गौना की बाढ़ में सन 1894 में नष्ट हो गये। रानीहाट पर्वत पर मकान व मंदिर अब भी मौजूद है। जब इस चित्र को बनाया गया था, तब वहां राजदरबार में गायन व नृत्य करने वाली ललनाएं रहती थीं। इसीलिए उसका नामकरण ‘रानी -हाट’ किया गया। उक्त चिह्नों की उपस्थिति से इस चित्र का श्रीनगर (gadhwal) में चित्रित किया जाना सिद्ध होता है। “
अब अगर बैरिस्टर मुकुंदीलाल के शब्दों पर गौर किया जाय तो वह संशय पैदा करते हैं क्योंकि अगर हम पौड़ी की छोर से श्रीनगर में प्रवेश करते हैं तो यह अलकनन्दा पार टिहरी में कहीं रानी गढ़ दर्शाता नजर आता है और अगर हम श्रीनगर से कीर्तिनगर की तरफ मुंह खड़ा करके खड़े होते हैं तो यह स्थान पौड़ी रोड पर अवस्थित गंगा दर्शन नजर आता है, जहाँ आज भी मंदिर है व ऊपर टीले में मकानों के अवशेष भी मौजूद हैं। बहरहाल इस विवाद को यहीं रहने देते हैं क्योंकि वर्तमान में सभी का मत है कि रानीहाट टिहरी जिले में कीर्तिनगर बढ़ियार गढ़ क्षेत्र में पड़ता है।
(रानीहाट स्थित शिवालय… जहाँ देवदासियाँ अक्सर पूजा करने जाया करती हैं]
रानीहाट जिसे शुद्ध लिखें तो राणी हाट कहा जाता है जो भाषाई अपभ्रन्शता के चलते रानी हाट कहलाने लगा, सिर्फ़ मोलाराम की कृतियों में ही बर्णित नहीं है बल्कि गढ़वाल के सैकड़ों बर्षों से चले आ रहे लोकगीतों में भी राणी हाट का जिक्र मिलता है। गढ़वाल के महान सेनानायक़ माधो सिंह भंडारी की नृत्य व गणिकाओं के रसिया कहे जाते रहे हैं। उनकी मृत्यु के बाद गढ़ नरेश के सेनापति बने उनके पुत्र गजे सिंह भी जब उसी राह बढ़ने लगे तब उनकी माँ ने गजे सिंह को उलाहने देते हुए कहा कि – रानी हाट, नहीं जाना गजे सिंह… वहां तुझे बैरी मार देंगे। तेरे पिता भी वहीं जाते थे और वही उनके लिए काल निकले। उनकी इस उलाहना का लोकगीत आज भी पूरे समाज में कुछ इस तरह प्रचलन में है :-
राणी हाट नी जाणो गजे सिंग त्वे बैरी मारला गजे सिंग,
राणी हाट नी जाणो गजे सिंग, छि: दारु नी पेणु गजे सिंग।
बड़ा बाबू कु बेटा गजे सिंग, उदमत्तो नी होणु गजे सिंग,
राणीयूँ को रसिया गजे सिंग, फुलू कु होशिया गजे सिंग।
त्वे राणी लूटली गजे सिंग, मेरु बोल्युँ मान बेटा गजे सिंग,
बैर्यूं का भकौणीया गजे सिंग, दर्वाल्या नी होण गजे सिंग।
तेरु बाबा गै छायो गजे सिंग, घरबौडु नी होई गजे सिंग,
हौन्सिया उमर गजे सिंग, त्वे बैरी मारला गजे सिंग।।
दरअसल गढ़वाल राज्य के विनाश का कारण यह राणी हाट भी माना जाता रहा है क्योंकि 17वीँ व 18वीँ सदी में इस राणी हाट की दुर्दशा ये हो गई थी कि यहाँ राज दरबार में नृत्य करने वाली नायिकायें जिन्हें मोर प्रिया, चकोर प्रिया, मयंक मुखी, कदली प्रिया इत्यादि नाम मिले व जो मोला राम की कृतियों में भी शामिल हुई, इनकी चेलियों ने इसे वैश्यालय में तब्दील कर दिया। बताया तो यह भी जाता है कि कुमाऊँ नरेश लक्ष्मी चंद की रखैल गणिका जो किसी अप्सरा के समान थी व जिसके हुश्न के चर्चे न सिर्फ़ गढ़वाल – कुमाऊँ तक बल्कि दिल्ली दरबार तक भी थे, वह न सिर्फ़ कुमाऊँ नरेश की गणिका थी अपितु वह एक प्रशिक्षित जासूस थी, व उसका अक्सर गढ़वाल के राणी हाट आना जाना था व जिसे राजकीय सम्मान दिया जाता था, उसी की जासूसी के चलते कुमाऊ नरेश बाजबहादुर चंद ने गढ़वाल के कई इलाकों पर अधिकार कर लिया था। आज भी गढ़वाल में आम बोलचाल की भाषा में “छमुना पात्तर” शब्द हेय दृष्टि से देखा व कहा जाता है।
मोलाराम ने इन गणिकाओं के स्वरूप को बड़ी खूबसूरती के साथ अपने शब्दों में ढाल कुछ इस तरह अलंकृत किया :-
जीर को दुपट्टा ओढ़ प्याजी पेशवाज पैहर,
जवानी की लहर में सजी है कैसी!
काम की उजागर परम सुंदरी प्यारी,
गुलजारि में निहारी चन्द चाँदनिसी ऐसी।।
नाशिका मरोर रद वसन दसन दाबे,
उझकि उझकि उठन मानो दामिनी लसि है जैसी!
कहत मोला राम ऐसी बाम इक बगीचा मांहि,
कदली के फूल को कमान सि कसि निकसी है कैसी।।
वहीँ जिस मस्तानी को मोलाराम ने लक्ष्मी नाम दे दिया था उसकी खूबसूरती पर मोहित होकर राजा प्रधुम्न शाह के भाई पराक्रम शाह ने राणी हाट से अगुवा कर लिया था, जब मोलाराम ने इस पर विरोध दर्ज किया तो पराक्रम शाह ने मोलाराम को दो माह तक कारावास में रखकर लक्ष्मी के साथ दो माह तक सहवास किया। मोलाराम ने इस पर भी अपनी कलम चलाई व लिखा – “जिन छीन लई गणिका हम सौं, बिन अपराध हमको दंड दियो।”
आज कीर्तिनगर से बढ़ियारगढ़ मार्ग पर अवस्थित रानीहाट मात्र एक स्थान है लेकिन कभी गढ़राज वंश के दौर में यह सिर्फ़ नरेशो का ही नहीं बल्कि सेनापतियों, दरबारियों व धन्नासेठों की अय्याशी का अड्डा माना जाता था। एक वह भी दौर बढ़ियारगढ़ की सम्पन्नता का था जब यहाँ के सेरों में झीरी नामक बॉसमती धान उगा करती थी व गाँव के आँगनों में माँ बहनें अपने थड़िया बाजूबंद गीतों में गाया करती थी :- झीरी झमको, तै बढेरी सेरा, झीरी झमको।…
आइये अतीत के पन्नों में विस्मृत इतिहास की बारिकियों को समझने के लिए हम उस महान अतीत पर शोध करते रहें जो कहीं न कहीं हमारे पुरखों के इतिहास को खंगालने में हमें प्रेरित करता रहे। ठीक वैसे ही जैसे यह रानीहाट…..।