संदेश यह है कि जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर मानव समाज को एक नजरिए से सोचना चाहिए। लेकिन यह संदेश सुनने के लिए ज्यादातर देश और समाज तैयार नहीं हैं। नतीजा है कि सभी अलग-अलग चरम रूप लेते मौसम की मार झेल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का असर एक बार फिर यही जाहिर कर रहा है कि कुदरत किन्हीं सरहदों का ख्याल नहीं करती। भारत, चीन और पाकिस्तान वैसे तो अलग-अलग देश हैं और भारत का बाकी दोनों देशों से रिश्ता भी अच्छा नहीं है, लेकिन अगर प्राकृतिक आपदा की बात करें, तो तीनों देश इस समय समान रूप से असामान्य मौसम की मार झेल रहे हैं। भारत और पाकिस्तान असाधारण अति-वृष्टि से प्रभावित हुए हैं, जबकि चीन के कई इलाकों में असामान्य रूप से अत्यधिक गर्मी पड़ रही है। वैसे अगर हम पूरे भूमंडल पर ध्यान ले जाएं, तो ऐसी मौसमी घटनाओं का प्रभाव लगभग हर जगह और अब तो लगभग हर वक्त नजर आएगा।
इस परिघटना का संदेश है कि कम से कम जलवायु परिवर्तन की चुनौती के मद्देनजर पूरे मानव समाज को एक नजरिए से सोचना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यह संदेश सुनने के लिए ज्यादातर देश और समाज तैयार नहीं हैं। नतीजा है कि सभी अलग-अलग चरम रूप लेते मौसम की मार झेल रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में उत्तर भारत कई उन इलाकों में एकबारगी से उतनी अधिक बारिश हुई है, जहां पहले हाल वर्षों में लोग मानसूनी वर्षा के लिए भी तरसते रहते थे। इससे हिमाचल प्रदेश से लेकर दिल्ली और उत्तर प्रदेश तक में जल-भराव और विध्वंस का नजारा देखने को मिला है, जबकि अनेक लोगों की जान भी चली गई है। उधर पाकिस्तान के कई हिस्सों में पिछले कुछ दिनों से हो रही जोरदार बारिश ने लोगों के मन में पिछले साल की डरावनी यादें ताजा कर दी हैं।
पाकिस्तान के नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथरिटी के मुताबिक जून के आखिरी हफ्ते से लेकर अब तक मानसून के कहर से 80 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है। कई इलाकों में लोग जल जमाव के कारण घिरे हुए हैं। विशेषज्ञों ने दो टूक कहा है कि पाकिस्तान में पिछले साल हुई तबाही का कारण जलवायु परिवर्तन था। इस बार भी मौसम का वैसा ही रूप देखकर स्वाभाविक है कि लोग डरे हुए हैँ। लेकिन असल सवाल है कि क्या बार-बार पड़ रही ऐसी मार से अब कोई सबक लिया जाएगा?