अस्युत्तरस्य दिशि देवतात्मा
हिमालयो नाम नगाधि राजा।
(वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा की कलम से)
बर्फ़ीले तूफ़ान में मारे गए तथा लापता हुए लोगों के प्रति शोक और संवेदना व्यक्त करते हुए मैं पुनः यह कहने का ज़ोखिम उठा रहा हूं, कि अति उच्च हिमालय पर पर्वता रोहण नामक यह पागल पन अब बंद हो।
हम हिमालय वासी अमूमन छह से आठ हज़ार फुट की ऊंचाई पर निवास करते हैं, और 12 -15 हज़ार तक हम भैंसे चराने जाते हैं. लेकिन हम वहीँ तक जाते हैं, जहां तक प्रकृति अनुमति देती है।
हमारे सभी उच्च शिखरों के नाम देवी देवताओं पर रखे गए हैं। यथा – नंदा देवी, सागर माथा (एवरेस्ट ), त्रिशूल, गौरा, आदि। इसका अभिप्राय यह है कि इनके माथे पर पैर नहीं रखना। गढ़वाली में एक कहावत है – आगी माँ मुतणु, पाणी मा थूकणु। मरी क कख लुकणु। (आग में मूतना, और पानी में थूकना, तो मर के कहां छुपना)।
पर्वतरोहण एक अनुत्पादक श्रम है। आख़िर आप क्या लेने वहाँ गए थे?
आपको शौर्य और साहस का प्रदर्शन करना है, तो आपदा एवं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में राहत और बचाव कार्य कीजिये. सुदूर गांवो तक पैदल चल कर रसद पहुंचाइये।
ज़्यादा ही चुल है तो आरावली, शिवालिक, सहयद्रि आदि पहाड़ों पर चढ़ो।
पत्थर पर सर फोड़ो, रेत के बोरों पर मुक्के मारो, जैसा कि कुछ मूर्ख करते हैं, लेकिन सर्वोच्च हिमालय को अपने पागलपन से बख्श दो।
एक पर्वतरोही के साथ उसके वज़न के चार गुना सामान जाता है। उसका कबाड़ वहीँ छूट जाता है।
जैसे राजाओं की हेकड़ी और पागलपन को पूरा करने वास्ते चीता का शिकार करते वक़्त कई हांका लगाने वाले साथ चलते थे, वैसे ही एक पर्वतरोही के साथ कई पोर्टर चलते हैं। चीता की तरह हिमालय भी लुप्त हो जायेगा, तो दूसरा हिमालय कहां से लाओगे? यह केन्या में नहीं मिलेगा। कहीं भी नहीं मिलेगा ।
हिमालय विश्व का एक नवजात और अस्थिर पहाड़ है. जैसे सोता हुआ बच्चा एक हल्की आहट पर भी चौंक जाता है, वैसे ही हिमालय भी हमारी गतिविधियों से चौंक कर रोने लगता है।
विश्व समुदाय एक जुट हो। पर्वतरोहन की ठरक पूरा करने वास्ते जगह जगह लोहा, मिट्टी और पत्थर के पहाड़ बना कर उन पर कृत्रिम बर्फ छड़की जाये, वहां चढ़ो।
साल में असंख्य लोग एवरेस्ट पर चढ़ते हैं, और उसे एवरेस्ट विजय का नाम देते हैं. क्या एवरेस्ट आपका शत्रु है, जो उस पर विजय प्राप्त करोगे? और यदि शत्रु मान ही लिया, तो उससे कभी न जीत पाओगे. वह ख़ुद से पहले तुम्हें मिटा देगा
अपनी किशोरवस्था तक मैं भी एक दक्ष पर्वतरोही रहा हूं. लेकिन जबसे मुझे हिमालय की व्यथा समझ आयी, कभी 22 हज़ार फुट से आगे नहीं गया. लम्बी बाइकिंग, तैराकी और कार हाँक कर अपनी ठरक पूरी करता हूं।
यह निसर्ग का एक मनोवैज्ञानिक क्षण है, वस्तुस्थिति समझो। 22 हज़ार फुट से अधिक ऊंचाई पर जाने से बाज़ आओ। मैं पुनः दुर्घटना में मरे मनुष्यों के प्रति शोक व्यक्त करता हूं।