गढ़ चाणक्य पुरिया नैथानी की 374 वीं जयंती नैथाणा में। क्या पुरिया भी राजा भृतहर्रि व गोपीचंद की तरह आज भी जिंदा हैं?
(मनोज इष्टवाल)
◆ क्या 1759-60 का कुम्भ क्या उनका आख़िरी कुम्भ था?
◆ क्या बाल रूप के ग्वाला पुरिया ने चाटी थी राजा भृतहर्रि व गोपीचंद की जूठी खिचड़ी की पत्तल?
◆ क्या सचमुच 112 बर्ष की उम्र तक पुरिया नैथानी ने देखा 10 मुगल सल्तनत राजाओं का राजवंश, 08 कुमाऊं के चंद वंशी राजाओं की सल्तनत व 06 गढ़ नरेशों के रहे सिपहसलार/सैन्य सलाहकार व राजदूत?
◆ क्या श्रीनगर राज्य कुमाऊं के राजा जगत चंद ने उन्हें ही दे दिया था दान स्वरूप।
◆ क्या गढ़पति भजन सिंह ने अपना गढ़ उन्हें ही किया था दान?
गढ़ चाणक्य के रूप में उत्तराखंड में सुप्रसिद्ध पुरिया नैथानी को मुगल सम्राट अकबर के दरबारी कवि व सलाहकार बीरबल की भांति ही बुद्धिमान व राजकाज की शिक्षा दीक्षा में भारत के महान शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के सलाहकार चाणक्य की भांति राजनीति का कुसाग्र व्यक्तित्व। और यही कारण भी रहा कि उन्हें गढ़ चाणक्य ज्यादा पुकारा जाने लगा क्योंकि उनके सिपहसलार/सैन्य सलाहकार व राजदूत रहते हुए गढराज वंश ने अपना राज्य विस्तार सुदूर हिमाचल, तिब्बत व कुमाऊँ के द्वाराहाट अर्थात रामगंगा आरपार तक फैलाया। भले ही उन्ही के समय राजा जगत चंद ने गढ़वाल पर आक्रमण कर गढ़ नरेश को श्रीनगर छोड़ने को मजबूर कर दिया व गढ़राज्य एक ब्राह्मण को दान कर दिया। यह राज दान किस ब्राह्मण को किया गया इसका उल्लेख नहीं मिलता लेकिन सदियों की अनुश्रुतियों या जनश्रुतियों के अनुसार राजा जगत चन्द ने यह राज्य गढ़ चाणक्य पुरिया नैथानी को ही दान किया।
आज पुरिया नैथानी सेवा ट्रस्ट द्वारा उनके 374वें जन्मदिवस पर बर्षों बाद उन्हीं के गांव नैथाणा पौड़ी गढ़वाल में हर्षोल्लास के साथ उनकी जयंती मनाई जा रही है। पुरिया नैथानी सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल नैथानी ने जानकारी देते हुए कहा कि जब से हमने ट्रस्ट के तहत गांव में कार्य करने शुरू किए हैं तब से देश विदेश में बसे प्रबुद्ध नैथानी बन्धुओं ने रिवर्स माइग्रेशन करना शुरू कर दिया है। कई अपने पुरखों के मकान का खंडहर ढूंढकर उसे रिनोवेट कर रहे हैं तो कई झीर्ण-शीर्ण हो चुके मकानों की मरमम्त कर फिर से गांव को खुशहाल कर रहे हैं। निर्मल नैथानी कहते हैं कि मैं भी लगभग प्रवासी ही था लेकिन पुरिया जी की ऐसी कृपा हुई कि हम सबने गांव आना जाना नियमित शुरू कर दिया है व अब या तो हर महीने गांव आना होता है वरना हर तीसरे माह हम गांव की आवोहवा में शुकून की सांस लेने पहुंचते हैं व खुद को तरोताजा करते हैं।
मैं सच कहूं तो यह पुरिया जी की खिचड़ी का ही कमाल कह सकते हैं कि विकास खण्ड कल्जीखाल पट्टी मनियारस्यूँ पौड़ी गढ़वाल के नैथाणा गांव के नैथानियों को क्षेत्र के विद्वान वर्गीय लोगों में माना जाता है। इस गांव के ज्यादात्तर लोग सरकारी व प्राइवेट सेक्टर में बहुत ऊंचे-ऊंचे पदों पर विश्व भर में फैले हुए हैं। नैथाणा गांव से निकली नैथानी बंधुओं की हर शाखा ही विद्वानों से भरी है। अक्सर क्षेत्रीय बुजुर्ग नैथाणा गांव के लोगों के बारे में दो अवधारणायें पाले हैं। ज्यादात्तर का मानना है कि ये मैदानी भू-भाग के हिन्दू गूर्जर थे जिन्हें मनियारी थोकदारों ने झंग्वरिया गांव (वर्तमान में नैथाणा) में बसाया था व ये लोग अपनी व उनकी गाय भैंस चुगाकर जैसे तैसे अपना जीविकोपार्जन किया करते थे। इन्हीं में कुछ ब्राह्मण कुलीन बेहद निर्धन व्यक्ति भी थे, जिनके वंशज पुरिया नैथानी ने राजा से महात्मा बने राजा भृतहर्रि व उनके भांजे गोपीचंद की जंगल में बनाई जूठी खिचड़ी खाई व तब से इनकी नस्ल परम विद्वानों में शामिल हो गयी।
यह सब किंवदंतियों व लोककथाओं, लोकगाथाओं में सुनने को ओमिलता है लेकिन यह सत्य है कि नैथाणा गांव की जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं है व यहां झंगोरा बहुतायत में उत्पन्न होता था। भले ही पुरिया नैथानी व उनके वंशजों की बदौलत आज उनके पास मनियारस्यूँ दैशण-बिलखेत के पास सांगुड़ा में कई एकड़ भुवनेश्वरी मंदिर के सेरा वाली उपजाऊ जमीन है जिसमें कभी झीरी बासमती उगाई जाती थी। वर्तमान में वो बंजर पड़े हैं। कोटद्वार किशनपुरी क्षेत्र में 2000 एकड़ जमीन जोकि पुरिया नैथानी को गढ़ नरेश ने दान दी थी, चरक क्षेत्र के शून्य शिखर के नीचे ईड़ा गांव में कई सौ बीघा उपजाऊ जमीन (वर्तमान में बंजर), रीठाखाल पाली की पुस्तैनी हवेली सहित कई ऐतिहासिक धरोहरें आज भी हैं जिनमें मूसा की नाव, हाथी थान व अदवाणी से जुडी ऐतिहासिक घटनाएं व दंतकथाएं सम्मिलित हैं, 374 बर्ष बाद भी गवाही देती नजर आती हैं।
पुरिया नैथानी का संक्षिप्त इतिहास।
आज ही के दिन अर्थात 22 अगस्त संवत 1705 यानि सन 1648 में शुक्ल पक्ष पूर्ण मासी के भाद्रपद में पौड़ी गढ़वाल के (वर्तमान में विकासखंड कल्जीखाल, पट्टी मनियारस्यूं) नैथाना गाँव में पंडित गेंदामल नैथानी ( जिन्हें ग्रामीण गैंदु नैथानी के नाम से जानते थे) के घर जन्में पुरिया नैथानी बचपन से ही बेहद बुद्धिमान थे।
पुरिया नैथानी के पिता कर्मकांडी ब्राह्मण थे लेकिन एक गरीब ब्राह्मण कहलाये जाते थे। रिश्तेदारी उनकी उच्च कुलीन थी इसीलिए उनका श्रीनगर दरवार में आना जाना लगा रहता था। तत्कालीन महाराजा के सेनापति महान ज्योतिष शंकर डोभाल उनके दूर के रिश्ते में आते थे। पंडित गेंदामल नैथानी उम्रदराज होने लगे थे लेकिन संतान सुख से बंचित थे। पुरिया नैथानी उनके बुढापे में जन्मी औलाद कही गयी। उनके जन्म के समय भाबर क्षेत्र (कोटद्वार) से लौटते समय जब सेनापति शंकर डोभाल उनके गाँव से गुजर रहे थे तब पंडित गेंदामल नैथानी ने उनसे पुरिया की जन्मकुंडली दिखाई। कहते हैं पुरिया की जन्मकुंडली देखते ही सेनापति डोभाल बोले – यह आने वाले समय में महान कीर्तिमान और बुद्धिमान के धनी होंगे इसलिए इनका नामकरण संस्कार खूब धूमधाम से होना चाहिए। बिपप्न ब्राह्मण गेंदामल नैथानी सोच में पड गए कि भला मैं कैसे यह सब कर पाऊंगा! घर में धन तो है ही नहीं और न ही कोई ऐसा जरिया ही है जो कहीं से आ जाय!
कहते हैं सेनापति डोभाल ने पंडित गेंदामल नैथानी से पुरिया को माँगा था क्योंकि उनकी एक मात्र पुत्री थी, लेकिन बुढापे में पैदा औलाद के सुख से वे कैसे बंचित रह पाते। अचानक घटनाक्रम बदला और पंडित गेंदामल नैथानी के घर घोड़े के सौदेर आये। यह घोड़ा जिसे पंचकल्याणी नाम से जाना जाता था वह उन्हें राजघराने से दान स्वरूप मिला था। उन्हें अति प्यारा था लेकिन पुत्र मोह में उन्होंने उसे बेचकर धूमधाम से पुरिया का नामकरण संस्कार किया।
सेनापति डोभाल ने जब पंडित गेंदामल नैथानी के आगे पुरिया की शादी अपनी पुत्री से करने की बात रखी तब वे ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गए। सात बर्ष की उम्र में पुरिया को सेनापति डोभाल ने श्रीनगर शिक्षा दीक्षा हेतु बुला दिया यहाँ वे राजकुमारों की पाठशाला में पढ़े व बेहद बुद्धिमान छात्र होने के साथ साथ बेहद बलिष्ठ विद्यार्थियों में भी गिने जाने लगे। उन्हें भैंसों को उठाकर पटकने की महारत हासिल हुई और वे घुडसवारी में भी अबल निकले। अगर 07 बर्ष की आयु में पुरिया शिक्षा दीक्षा हेतु श्रीनगर चले गए थे तो क्या राजा भृतहर्रि व गोपीचंद की जूठी खिचड़ी उन्होंने 07 बर्ष की उम्र से पूर्व ही खा ली थी?
सन 1666 ई. शुक्ल पक्ष अष्टमी को 18 बर्ष की आयु में उनकी विधिवत शादी डोभाल सेनापति की पुत्री से हुई। कहा तो ये भी जाता है कि उनकी शादी बाल्यकाल में ही हो गयी थी रस्म 18 साल बाद हुई। घुडसवारी में अबल होने के कारण उन्हें राजदरबार में ही अश्वशाला के अध्यक्ष पद पर नौकरी मिल गयी। उनका काम घोड़ों को पढ़ाने का होता था और उन्हें महाराजा का श्यामकल्याण घोड़ा सबसे प्रिय था।
राजदरवार के अनछुवे इतिहास में बर्णित है कि सन 1667 ई. में बिजयदशमी के पर्व पर दिल्ली दरवार के राजदूत श्रीनगर आये थे जिन्होंने इस उत्सव में शिरकत की। यहाँ मैदान में घोड़ों का करतब देखते हुए उन्होंने यूँहीं मजाक उड़ाते हुए कह दिया कि भला ये भी कोई घोड़े हुए हमारे घोड़े तो इतनी ऊँची छलांग लगा लेते हैं कि क्या कहने। कोई ऐसा घोड़ा हो जो उस छोटी हवेली को छलांग मार पार कर जाए तो मानूं?
महाराजा श्रीनगर असमर्थता व्यक्त करने ही वाले थे कि स्वाभिमान के धनि पुरिया बोल पड़े- जी हमारे घोड़े भी इस लायक हैं। आप देखिये कि महाराजा जिस घोड़े पर सवार होते हैं वह कितना बुद्धिमान व साहसी है। उन्होंने महाराजा के घोड़े श्यामकल्याण के लिए सीटी बजाई घोड़ा दनदनाता हुआ पुरिया के पास आ पहुंचा। महाराजा की आज्ञा लेकर पुरिया उस दुस्साहसिक कार्य को अंजाम देने निकल पड़े। सबकी साँसे थमी की थमी रह गयी जब पुरिया ने घोड़े सहित छोड़ी हवेली लांघ डाली। यह तो शुक्र था कि हवेली पार घोड़ों का मल पडा हुआ था और पुरिया घोड़े सहित वापस लौट आये। पुरिया की जय-जयकार होने लगी। राजदूत ने घोषणा की कि पुरिया न सिर्फ गढ़ नरेश बल्कि दिल्ली स्थित चक्रवर्ती सम्राट के लिए भी स्वाभिमान हैं।
पुरिया नैथानी की मात्र एक बर्ष के कार्यकाल में ही अश्वशाला अध्यक्ष से घुड़सवार सेना के सेनापति के रूप में नियुक्ति हो गयी व कुछ ही समय बाद उन्हें सैन्य सलाहकार व राज्य का बिशेष दूत नियुक्त किया गया।उनका दाम्पत्य जीवन बेहद कष्टकारी रहा और लम्बी बीमारी के बाद उनकी पत्नी की मात्र एक बर्ष की अवधि में मौत हो गयी। सेनापति डोभाल उनकी अन्यत्र शादी करना चाह रहे थे लेकिन उन्होंने साफ़ घोषणा कर दी कि अब वे ब्रह्मचार्य का पालन करेंगे। लेकिन कहा जाता है कि बाद में उनका विवाह श्रीनगर राजदरबार में बड़े ओहदे पर कार्यरत चंदोला राई के चंदोला की पुत्री रमा चंदोला से सम्पन्न हुआ जिससे उनका आगे का वंश चला।
उनकी सेवाओं से खुश व कई युद्धविजय के कारण महाराजा प्रदीप शाह ने रामगंगा के बांये छोर पर सन 1748 में उनके जुनिया गढ़/जूना गढ़ युद्ध में अद्वितीय पराक्रम दिखाने के लिए नैथाना गढ़ की स्थापना की। जो रामगंगा के बांये छोर पर द्वाराहाट कुमाऊ में स्थित माना जाता है। सन 1758 में पुरिया नैथानी द्वारा राजसेवा से अवकाश लिया गया। कहते हैं इस दौरान उनकी भेंट रानीगढ़ अदवाणी के आस-पास महाराजा भर्तहरी से हुई जो सन्यासी बन गये थे, और अमर सिद्ध पुरुष कहे जाते थे। तब से पुरिया बेहद शांत, सात्विक और संन्यास के प्रति आकृष्ट हो गये थे।
यह बेहद आश्चर्यजनक बात है कि वे पहले ऐसे व्यक्ति हुए जिन्होंने अपने जीवन के 84 साल सिर्फ गढ़राज्य की सेवा को न्यौचावर किये। 112 बर्ष की उम्र में पुरिया नैथानी हरिद्वार कुम्भ (1759-60) स्नान हेतु गए जहाँ से वे अंतर्ध्यान हो गए। कहा तो यह भी जाता है कि वे भी राजा भर्तहरी की तरह अमर हो गए। इसलिए उनकी मौत हुई भी कि नहीं यह अभी तक राज बना हुआ है। देहरादून स्थित टिहरी हाउस संग्राहलय में उनकी लगभग 374 बर्ष पुरानी तलवार ठाकुर भवानी सिंह द्वारा हमें दिखाई गयी। यह तलवार अन्य तलवारों की अपेक्षा बेहद अलग व सीधी है।
क्या सचमुच 112 बर्ष की उम्र तक पुरिया नैथानी ने देखा 11 मुगल सल्तनत राजाओं का राजवंश, 08 कुमाऊं के चंद वंशी राजाओं की सल्तनत व 06💐 गढ़ नरेशों के रहे सिपहसलार/सैन्य सलाहकार व राजदूत?
1648 से लेकर 1760 तक दिल्ली सल्तनत के राजा।
◆ शाहजहां (1628-1658)
◆ औरंगजेब (1658-1707)
◆ बहादुर शाह प्रथम (1707-1712)
◆ जहांदार शाह (1712-1713)
◆ फरुख्तिशायार (1713-1719)
◆ रफी-उल-दर्जन (1719-1719)
◆ शाहजहां द्वितीय (1719-1748)
◆ अहमदशाह (1748-1754)
◆ आलमगीर द्वितीय (1754-1759)
◆ शाहजहां तृतीय (1759-1760)
1648 से 1760 तक कुमाऊं राजवंश।
◆ राजा बाजबहादुर चंद (1635-1678)
◆ राजा उद्योत चंद (1678-1698)
◆ राजा ज्ञान चंद (1698-1708)
◆ राजा जगत चंद (1708-1720)
◆ राजा देवी चंद (1720-1726)
◆ राजा अजीत चंद (1726-1729)
◆ राजा कल्याण चंद (1729-47)
◆ राजा दीप चंद (1747-1777)
1648 से 1760 तक गढ़वाल राजवंश।
◆ राजा पृथ्वीपति शाह (1640-1644)
◆ राजा मेदनीशाह (1644-1655)
◆ राजा फतेहशाह (1655-1715)
◆ राजा उपेंद्र शाह (1715-1716/रानी कटौची)
◆ राजा दिलीप शाह (1716-1717/रानी कटौची)
◆ राजा दलीप शाह (1717- 1773)