अजीत द्विवेदी
लोकतांत्रिक सत्ता भी नेता को अहंकारी बनाती है लेकिन कितना? क्या लोकतंत्र में किसी चुनी हुई सरकार के नेता या मंत्री का अहंकार ऐसा हो सकता है कि वह कहे कि तुम जिंदा हो तो हमारे नेता की वजह से, उसका धन्यवाद करो? या यह कि हमारा नेता 80 करोड़ गरीबों का फ्री फंड में पेट भर रहा है, उसका धन्यवाद करो? ये दोनों डायलॉग दो दिन के अंतराल पर सुनने को मिले हैं। लोकसभा में महंगाई पर चर्चा के दौरान भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री देश के 80 करोड़ गरीबों को फ्री फंड में खाना दे रहे हैं तो क्या उनका धन्यवाद नहीं किया जाना चाहिए’। इससे एक दिन पहले बिहार सरकार के एक मंत्री और भाजपा के नेता रामसूरत राय ने एक सभा में कहा कि ‘आज अगर आप जिंदा हैं, तो वो नरेंद्र मोदी की देन है। अगर नरेंद्र मोदी अपना कोरोना वैक्सीन का इश्तहार नहीं करते, आविष्कार नहीं करते। लोगों को फ्री वैक्सीन नहीं लगताज्..एक साल पहले वाला जो कोरोना थाज् सबसे पहले वाला कम था, बीच वाला जो कोरोना आया था, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसके परिवार के लोग, रिश्तेदार लोग, घर का लोग नहीं मरा होगा’।
सोचें, एक नेता के मुताबिक प्रधानमंत्री देश के लोगों के पालनहार हैं तो दूसरे के मुताबिक जीवन-मृत्यु भी उन्हीं के हाथ में है! वे ही रक्षक भी हैं! हैरानी है कि भारत जैसे देश में, जहां हर व्यक्ति यह दोहराता है कि अहंकार तो रावण का भी नहीं रहा, वहां ऐसा अहंकार!
वह भी अहंकार एक नेता का, जिसका खुद का सारा जीवन फ्री फंड की सुविधाओं पर चलता है! सोचें, सांसदों और विधायकों को क्या-क्या फ्री फंड में मिलता है। देश या राज्यों की राजधानी में फ्री का घर मिलता है। उस घर में फ्री की बिजली मिलती है और फ्री का पानी मिलता है। उसमें फ्री का फर्निचर और परदे लगाए जाते हैं। फ्री का टेलीफोन मिलता है। फ्री की हवाई यात्रा और फ्री की रेल यात्रा मिलती है। फ्री का स्टाफ मिलता है। सांसद या विधायक के नाते जो वेतन मिलता है उसके अलावा संसद या विधानसभा में जाने के लिए भत्ता अलग से मिलता है। क्षेत्र में घूमने और जनता से मिलने के लिए भी भत्ता मिलता है। संसद और विधानसभाओं में लगभग फ्री की कीमत पर खाना मिलता है। हार जाने के बाद भी सांसदी और विधायकी दोनों की अलग अलग पेंशन मिलती है और ढेरों अन्य सुविधाएं मिलती हैं, वह व्यक्ति कह रहा है कि फ्री फंड का खाना दे रहे हैं या फ्री की वैक्सीन लगवा रहे हैं! इसी के लिए कहा गया है, ‘बुत हमको कहें काफिर, अल्लाह की मर्जी है’!
फ्री की इतनी सारी सुविधाएं देने के लिए पैसा कहां से आता है? वह पैसा इस देश की 140 करोड़ जनता की खून-पसीने की कमाई का होता है। देश के सकल घरेलू उत्पादन में हर भारतीय का योगदान है। भारत में टैक्सपेयर का एक मिथक बनाया गया है, जिसमें आयकर देने वाले ही टैक्सपेयर माने जाते हैं। लेकिन असल में इस देश का एक एक व्यक्ति टैक्स देता है। अप्रत्यक्ष कर ऐसा कर है, जिसे हर व्यक्ति को चुकाना होता है। सो, यह टैक्सपेयर का पैसा होता है, जिससे सांसदों, विधायकों और देश के सरकारी बाबुओं को वेतन, पेंशन और ढेर सारी फ्री की सुविधाएं मिलती हैं। क्या कभी किसी ने इसके लिए देश की जनता का आभार मानने या उसे धन्यवाद कहने की जरूरत समझी है? नेता महोदय, आप धन्यवाद कहिए देश की जनता का, जिसकी गाढ़ी कमाई के पैसे से आपको सारी सुख-सुविधाएं मिल रही हैं! उसी की कमाई या उसी के टैक्स के पैसे में से अगर कोई सरकार उसे कुछ सुविधाएं देती है तो उसका अहसान नहीं जताया जा सकता है!
देश का पैसा या संपत्ति किसी सरकार की नहीं होती है। वह देश की होती है, देश के नागरिकों की होती है। सरकार उस पैसे या संपत्ति की मालिक नहीं है, बल्कि मैनेजर है, कस्टोडियन है। उसे उस पैसे की देख-भाल करनी है और उससे नागरिकों के लिए अधिकतम सुविधाओं का इंतजाम करना है। ध्यान रहे लोग सरकार इसलिए नहीं चुनते हैं कि वह उनके उपर कोड़े चला कर टैक्स वसूले और उस टैक्स के पैसे से सरकार का सिस्टम चलाए। नेताओं और सरकारी बाबुओं के वेतन-पेंशन दे और ठेके-पट्टे बांटे। लोक कल्याणकारी सरकार इसलिए चुनी जाती है कि वह आम जनता के हितों की रक्षा का काम करे। उसका काम जनता के लिए बुनियादी सुविधाओं का इंतजाम करने का होता है। इसके लिए ही सरकार चुनी जाती है और सरकार के लोगों को वेतन-भत्ता मिलता है। तभी प्रधानमंत्री अपने को बार बार प्रधान सेवक कहते हैं।
पहले भी सरकारें नागरिकों को वैक्सीन लगवाती रही हैं और पहले भी जन वितरण प्रणाली की दुकानों से गरीब लोगों को बिना पैसा दिए या बहुत कम कीमत पर अनाज आदि मिलते रहे हैं। याद करें कैसे यूपीए के शासन के समय कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी कहा करते थे कि हमारी सरकार ने अमुक राज्य को इतना पैसा दिया, अमुक राज्य को उतना पैसा दिया तो तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में कहा था कि क्या मामा के यहां से पैसे लाकर दे रहे हैं! वह बहुत वाजिब सवाल था और आज भी प्रासंगिक है। जिस पैसे से गरीबों को अनाज दिया जा रहा है या देश के लोगों को वैक्सीन लगवाई जा रही है वह किसी के घर से नहीं आ रहा है। वह पैसा इस देश के नागरिकों की गाढ़ी कमाई का ही है। सो, नेताओं को इस मानसिकता से निकलना होगा कि वे देश के नागरिकों को मुफ्त में कुछ दे रहे हैं। मुफ्त में कुछ नहीं दिया जा रहा है, बल्कि मुफ्त की बात करके नागरिकों का अपमान किया जा रहा है।