Sunday, December 22, 2024
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“बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” अभियान में मील का पत्थर साबित हो सकता है “हाऊँ माईये… तेरी कोखि का पाणि..!” जौनसार की सुप्रसिद्ध गायिका सितारा खत्री ने मचाया धमाल।

“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” अभियान में मील का पत्थर साबित हो सकता है “हाऊँ माईये… तेरी कोखि का पाणि..!” जौनसार की सुप्रसिद्ध गायिका सितारा खत्री ने मचाया धमाल

(मनोज इष्टवाल)

गीत यूँही फिजाओं में तैरकर विभिन्न बोली भाषाओं में गाये जाने के बाद भी यूँही विश्व भर में अजर अमर नहीं हो जाते। गीत के पीछे छुपे उस मर्म को स्वर लय व ताल का जब सही साथ मिल जाये तब वह इतिहास रचने को आतुर हो जाते हैं। अब चाहे राजस्थानी गीत “दिल हुम हुँम करे” को असमिया गायक पद्मश्री भूपेन हजारिका गायें या फिर कुमाउँनी गीत “झन दिया बौजु छाना बिलौरी” को सुप्रसिद्ध बॉलीवुड सिंगर “पप्पन” या “बेडु पाको बारामासा” को मास्को रेडियो से कई बार प्रकाशित किया जाना, या फिर गढवाली गीत “मन भरमैग्ये मेरी सुध-बुध ख्वेग्ये..” के बोल स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के कंठ से सजे बोल हों। सभी के पीछे कहीं न कहीं उसका लोक संगीत व रिदम की परिपक्वता व गीतों में बसा लोक दिखता है।

यहां भी कुछ ऐसा ही दिखने को मिला। यूँ तो जौनसार के सुप्रसिद्ध रचनाकार श्याम सिंह चौहान ने यह गीत पूर्व में लोकगायिका मीना राणा के स्वर में उतारा था लेकिन तब इस गीत को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिल पाई। इसके पीछे क्या कारण रहा होगा यह कह पाना कठिन है लेकिन जहां तक मुझे लगता है तब यूट्यूब की जगह कैसेट का जमाना था और जौनसारी एवं गढवाळी शब्दों की ढाल चाल में अमूल चूक अंतर…! आज यूट्यूब में सैकेंडस के अंदर यह बोल धुन के साथ अपना स्थान ले लेते हैं।

हाऊँ माईये.. तेरी कोखि का पाणी..शब्द जब वी कैश भारद्वाज के शानदार संगीत में सुंदर कंठ की धनी सुप्रसिद्ध गायिका सितारा खत्री की आवाज में गहराई तक उतरते गए तो कानों ने मन की व्यग्रता उसका ध्वन्ध सब शून्य कर दिया। मस्तिष्क उस शून्य को छूने की परिकल्पना में खो गया मानों पांचाली को गांडीवधारी अर्जुन “चक्रव्यूह” भेदन के बारे में बता रहे हों और उनका पुत्र अभिमन्यु माँ के गर्भ में एकाग्र मन से वह सब सुन रहा हो और सातवें द्वार तक पहुंचते-पहुंचते द्रोपदी को नींद आ गयी हो। यहाँ भी कुछ ऐसे ही हुआ लगता है। गीतकार श्याम सिंह चौहान की परिकल्पना में यह रचना गर्भ में पल रही वह बेटी माँ शब्द के उच्चारण के साथ मानों अपने पिता की मन:स्थिति को समझकर उन्हें अपने तीन माह के गर्भ धारण से लेकर नौ माह तक पिता की उस व्यग्रता के लिए डर-डर कर ढांढस बंधा रही हो कि “हे माँ मेरी तेरी कोख में पल रही जल की वह मछली हूँ, जिसके जन्म को लेकर जो तेरी आँखों में सपने हैं ..काश वही मेरे पिताजी के भी होते। लेकिन पिता जी तो उस पुत्र की कल्पना कर रहे हैं जिसने वंश वृक्ष बढ़ाना है, उन्हें शायद मेरे पैदा होने पर अफसोस हो निराशा हो लेकिन बाबा से कहना कि आप बेटे को घर की निशानी समझते हुए मुझे अभी से क्यों बेगानी बना रहे हो। अगले आन्तरा में वह बेटी माँ के गर्भ में ही अपनी छटपटाहट का अहसास दिलाती हुई माँ के पेट पर लात मारकर माना अपने पिता का ध्यान आकर्षित कर उन्हें समझा रही हो कि माँ के पेट में पल रही हूं । बाबा बेटे की आस के सहारे ही मत रह कहीं मेरे जन्म के बाद तुझे निराश न होना पड़े। आगे के शब्द कुछ ज्यादा ही मार्मिक हैं क्योंकि यहां बेटी वर्तमान में कन्या भ्रूण हत्या की उस प्रताड़ना को समझकर अपने बाबा से कहती सुनाई दे रही है कि आप माँ के गर्भ में बेटा है या बेटी इसकी जांच करवाने डॉक्टर के पास मत जाना। मुझे भी जीने का अधिकार है , मुझे कहीं गर्भ में ही मत मरवा देना।
फिर वह कहती है कि मुझे अपने घर में रहने देना, मैं आपसे सोना चांदी नहीं मांग रही । मैं अपने भाग से कमा खा लूँगी अपने घर को आबाद ही करूंगी बर्बाद नहीं। मुंह स्कूल जाने देना ताकि पढ़ लिख कर देश सेवा करूँ आपके नाम को कीर्ति यश दे सकूं। वह फिर कहती सुनाई देती है कि बाबा जिस घर में बेटी जन्म लेती है, वह देवी रूप होती है। वहां भगवान का वास होता है। आप उदास मत होता मैं देवी रूप में ही आपका मान सम्मान बढ़ाऊंगी।
अंतिम आन्तरा में गीत के बोल कहते हैं कि पाप व श्राप अपने सिर मत ले लेना। बेटी को जन्म लेने देना। जैसे माँ के जन्म के बाद ..माँ ने सबको जन्म दिया।

यूँ तो गीतकार श्याम सिंह चौहान अभी उम्र की उस दहलीज पर नहीं पहुंचे हैं जिसमें एक परिपक्व रचनाकार अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करता है और न ही उनकी शिक्षा ही इतनी उच्च स्तर की हुई कि उनके लिखे शब्दों का मोल समझा जा सके। लेकिन सच यकीनन अंचभित करने वाला है। इस व्यक्ति के गीतों में वह कल्पनाशीलता मैंने तब देखी है जब श्याम सिंह चौहान स्कूली छात्र था व उन्होंने चक्रधर फ़िल्मस की “इष्टवाल सीरीज” के लिए कई खूबसूरत रचनाएं लिखी। लेकिन अब जबकि यह कालजयी रचना हम सबके सामने है तब इस रचना के आस पास नजर दौड़ाकर यह ढूंढने की कोशिश करता हूँ कि क्या भारत सरकार या उत्तराखंड सरकार के पास “बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ ” अभियान को प्रसारित करने के लिए अब तक ऐसे मर्म को छूने वाली कोई रचना व गीत है?

गीत का संगीत पक्ष।

निसन्देह वी कैश भारद्वाज अर्थात विकास भारद्वाज आये दिन संगीत के क्षेत्र में जो कम्पोजिशन लेकर आते हैं उसमें लोक की खुशबू किसी रात की रानी से कम नहीं होती। उनके संगीत में उनके अनूठे प्रयोग उनकी अलग ही छाप छोड़ते नजर आते हैं। इस गीत में उन्होंने बड़ी शिद्दत के साथ अपना सर्वस्व देने की कोशिश की है। शायद उन्हें भी इस रचना को बोलों के उभरते स्वरूप व मर्म की इतनी गुणवत्ता का अनुमान नहीं रहा होगा जितना रिस्पॉन्स इसे अब मिल रहा है। वरना वे इसमें शहनाई, बांसुरी, तानपुरा या मेंडोलिन की झंकार से वह आलम पैदा कर देते कि बड़े बड़े संगीत के जानकर कान पकड़कर बोल उठते ..वाह उस्ताद। मुझे जितनी खूबसूरत गीत के शुरुआत में उनकी हमिंग भरा क्लासिक अलाप लगा उतना ही अटपटा गीत की शुरुआत में बज रहा रणसिंघा! क्योंकि गीत के मर्म में रणसिंघे की दूर दूर तक कोई गुंजाइश नजर नहीं आती। यह हर्ट टचिंग ऐसा गीत है जो अपने उद्गारों से भाव विभोर बना दे, न कि धुमसु की धुन पर डांगरे के साथ नृत्य करवाने वाला। संगीतकार वी कैश के स्टार्टिंग प्रयोग में हमिंग अलाप में क्लासिक पुट व कोरस में लोकगायिका सुश्री शांति वर्मा “तन्हा” सितारा खत्री व अन्य की आवाज ने गीत में जान फूंकने का काम किया है। आप को शुभकामनाएं वी कैश…!

गीतकार श्याम सिंह चौहान व रचना।

श्याम सिंह चौहान का सरस व सरल व्यवहार जहां उन्हें समाज में लोकप्रिय बनाये रखता है वहीं पिछले डेढ़ दशक से लगातार सुपरहिट गीत लिखकर भी उन्हें जमीन पर चलने की कला बखूबी आती है, जो उनके प्रति सबके दिल में सम्मान पैदा करता है। वे सीताराम चौहान के साथ बर्षों से कदम ताल करते अपनी लोकसंस्कृति का ध्वज उठाए उसी आवोहवा के गीत रचना करते आगे बढ़ रहे हैं जो उनके लोक ने उन्हें दिया जो उनकी आंखों के आगे दिखता गया।

श्यामू…बोलने भर की देरी है । दूरभाष पर उनकी आवाज का बहता अमृत ऐसे लगता है जैसे उनके क्षेत्र से निकली अमृत गंगा का नीर तमसा (टोंस) नदी में मिलकर यमुना के गले लगने को आकुल व्याकुल हो। ऐसा लगता है जैसे उनके बोल क्षीर सागर में मिलकर उस अमृत का रस्वादन करने सेतुबंध रामेश्वर पहुंच अमृत कलश में मिल जाना चाहते हों। वह बहुत प्यार व आत्मीयता के साथ कहते हैं। सर..मैं आपको अपना गुरु मानता हूँ क्योंकि आपने व अंतराम नेगी जी ने ही हमें हाथ पकड़कर इस पंक्ति में खड़ा होने का अवसर दिया। मैं मुस्कुरा भर देता हूँ क्योंकि उनके इस गुरु वचन का अभिवादन को सम्मान देते हुए सोचता हूँ कि मुझसे कई बड़ा श्रेय तो अंतराम नेगी जी को जाता है जिन्होंने कोयले की खान से निकालकर इस हीरे को तराशने की कोशिश की, और शुरुआती दिनों में श्याम सिंह चौहान के गीतों पर अपना आर्थिक सहयोग लगातार जारी रखा।

श्याम सिंह चौहान के जितने भी गीत अब बाजार में हैं उन्हें मैं 95 प्रतिशत मार्क्स देना चाहूंगा क्योंकि उनकी कल्पनाओं ने कभी लोकसमाज के ताने-बाने को नहीं छोड़ा। यह गीत क्या है शायद इस बारे में श्याम सिंह चौहान को भी इन शब्दों के मोल का पता न हो। मेरी नजर में इस गीत की हर आन्तरा में ढले शब्द लाखों के हैं।

हाऊँ माइये..गायिका सितारा खत्री।

यूँ तो सितारा का नाम मेरे समुख 2005 -06 में तब सामने आया था जब उस दौर में सुमन वर्मा के कई कैसेट्स इष्टवाल सीरीज के माध्यम से सुपरहिट हो रहे थे। उसी दौर में लोकगायिका सुमन वर्मा ने मुझे सलाह दी थी कि मैं एक बार सितारा को मार्केट में किसी गीत के माध्यम से परिचित करवाऊं। लेकिन बिडम्बना यह है कि उनकी गुरु उनकी बुआ शांति वर्मा “तन्हा” हैं, इसके लिए उनसे बात करनी होगी क्योंकि उन्होंने ही सितारा को मंच दिया है। मेरे लिए मुसीबत यह थी कि तब शान्ति जी देहरादून में रहती थी व उनसे परिचय नहीं था। लेकिन सितारा नाम कभी जेहन से बाहर नहीं निकला। नाम जो दुर्लभ था। आखिर सितारा व शांति वर्मा जी का लोकगीत “छुमका” क्या सुना तो मन ही मन सुमन वर्मा के आंकलन की हृदय से प्रशंसा की। सितारा से जब भी मिला उन्हें गीत गुनगुनाते जरूर देखा लेकिन एक अच्छे गले को इतना लापरवाह देख बड़ा अचम्भा होता था। सोचता था शायद सितारा का गायन के प्रति रुझान कम और किसी अन्य फील्ड में ज्यादा है। या फिर कोई ऐसी कसमसाहट है जो इस कंठ की सरस्वती को आगे बढ़ने से रोक रही है। सितारा ने विगत बर्ष से गाने के प्रति थोड़ा सा रुझान क्या पैदा किया उन्हें गीतकार के रूप में श्याम सिंह चौहान मिल गए। बस फिर क्या था गीत हिट होने लगे लेकिन सितारा मेरी नजर में अभी भी अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाई थी। शादी क्या हुई कि सितारा के सुर में मानों ठहराव आ गया हो। और जब यह गीत सितारा को गाते देखा तो विश्वास नहीं हुआ। लगा भला यह लड़की इस गीत की उस नब्ज को कैसे पहचान पाई जिसके मर्म में सागर जैसा ठहराव, सागर जैसा उतार चढ़ाव (ज्वार भाटा) है। जिसके बोल कानों में रुणाट पैदा कर आपको ठीक किसी गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे की भाव भंगिमा उसकी अभिव्यंजना समझा रहे हैं।

यकीनन सितारा अपने इस गीत में अपना 90 प्रतिशत दिया। 10 प्रतिशत की कमी वह है जो आपके अलावा किसी अन्य के हंठ-कंठ में नहीं। जिन्हें छड़, कण व मुर्की कहते हैं। आपको इन्हें हासिल करने के लिए नियमित एकाग्रता व रियाज की आवश्यकता है। मैं उस दिन को देखने के लिए लालायित हूँ जिस दिन आप 100 प्रतिशत के साथ गाती दिखोगी व मैं खुशी से छलकती आंखों से कह सकूं वाह बिटिया वाह..ये है सितारा खत्री।

रिकार्डिस्ट रोहित मोडका।
वाह भाई…कमाल। आपके बारे में इतना ही कहूंगा कि आप लोक की समझ रखते हो । आपकी मेहनत को सलूट।

अर्पण फ़िल्म/स्टूडियो की सम्पूर्ण टीम ।

एक समीक्षक के रूप में कहूँ तो यकीनन अंतराम नेगी व श्रीमती रोशनी नेगी ने विकास नगर जैसे छोटे बाजार में एक बेहतरीन क्वालिटी का स्टूडियो दिया है। जिसकी आउटपुट इस गीत में दिखने को मिल रही है। यह और सुखद लगा कि इस गीत की कम्पोजिशन सीताराम चौहान की है जो आने आप में नामी गायकों में शुमार हैं। यह यकीनन आंखें फाड़कर देखने जैसी बात है। जब आप यह देखते हैं कि एक बेहद शर्मिला व अनुशासित बच्चा एक कुशल एडिटर बन जाता है। अंतराम नेगी जी के सुपुत्र नरेंद्र सिंह नेगी को मैंने तब देखा था जब वह आठवीं नवीं कक्षा के छात्र थे। अब ऐसे गीत को सम्पादित करते दिखेंगे तो आश्चर्य होना लाज़िम है। नरेंद्र आपकी एडिटिंग में कमाल दिखता है लेकिन एक आध पंच में हल्की सी फिलर की गुंजाइश बाँसुरी व शहनाई की रख लेते तो आप मेरी नजर में और ऊपर चढ़ जाते।

बहरहाल यह गीत एक समीक्षक के रूप में जहां तक मेरी सोच है, एक ऐसे सन्देश की अलख है जो समाज को मजबूर कर देगा कि वह बेटी की क्या कीमत है उसके लिए बेहद गंभीरता से सोच सके व उस समाज के लिए आइना साबित होगा जिसके मन मस्तिष्क में अशिक्षा की धुंध व आंखों में बेटियों के नाम का कचरा घुसा हुआ है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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