नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना मंगलवार को जारी हो गई। 19 जुलाई को नामांकन की आखिरी तिथि है। छह अगस्त को मतदान होगा। नतीजे भी छह अगस्त को ही आएंगे। इसी के साथ एनडीए और यूपीए में उम्मीदवारों के नामों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि द्रौपदी मुर्मू की तरह की उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार के नाम से भी भाजपा सबको चौंका सकती है। वहीं, विपक्ष भी इस बार मजबूत उम्मीदवार उतारने की रणनीति तैयार करने में जुट गया है।
भाजपा की क्या तैयारी है?
उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर भाजपा की रणनीति समझने के लिए हमने भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक नेता से संपर्क किया। उन्होंने बताया, श्यह तो साफ है कि उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार उत्तर, पश्चिम या पूर्वाेत्तर भारत के किसी राज्य से होगा। उन्होंने कहा श्इन राज्यों के अलग-अलग नामों पर मंथन चल रहा है। देश के इतिहास में आज तक कोई महिला उपराष्ट्रपति नहीं रही हैं। संभव है कि इस बार इतिहास बनाया जाए। द्रौपदी मुर्मू के रूप में महिला और पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिलें। वहीं, उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर भी कोई महिला बैठे। अगर ऐसा होता है तो ये एक नया रिकॉर्ड होगा। पहली बार ऐसा होगा जब देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों ही महिला होंगी। राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह ने बताया, उपराष्ट्रपति के मामले में भी भाजपा का फैसला थोड़ा हटकर हो सकता है। मौजूदा समीकरण को देखते हुए भाजपा तीन-चार अलग-अलग वर्ग के प्रत्याशियों पर विचार कर रही है।
1. आज तक देश में कोई भी महिला उपराष्ट्रपति के पद तक नहीं पहुंच पाई हैं। ऐसे में पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, मणिपुर की पूर्व राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला, गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश की मौजूदा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के नाम पर चर्चा चल रही है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल की चर्चित महिलाओं के नाम पर भी मंथन जारी है। वह इसलिए क्योंकि, विधानसभा चुनाव में टीएमसी से मिली हार के बाद भाजपा यहां फिर से मजबूत होना चाहती है। उमा भारती का असर मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी अच्छा खासा देखने को मिलता है। वहीं, नजमा देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की नातिन हैं। वह काफी समय तक कांग्रेस में रहीं। नजमा का नाम आगे करने पर भाजपा को दो फायदे हो सकते हैं। पहला यह कि वह मुस्लिम हैं। दूसरा यह कि वह महिला हैं। इसी तरह आनंदीबेन पटेल के नाम पर भी चर्चा है। आनंदीबेन गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री हैं। मौजूदा समय वह उत्तर प्रदेश की राज्यपाल हैं। आनंदीबेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबियों में भी शामिल हैं।
2. आज तक देश में कोई सिख उपराष्ट्रपति भी नहीं रहा है। ऐसे में भाजपा किसी सिख चेहरे को उपराष्ट्रपति बना सकती है। इसका फायदा उसे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में मिल सकता है। इसमें पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा है। पंजाबी चेहरा दिल्ली से भी हो सकता है। इसका फायदा भाजपा को दिल्ली में भी मिल सकता है।
3. राष्ट्रपति की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं। ऐसे में उपराष्ट्रपति के लिए किसी ओबीसी या सामान्य वर्ग के चेहरे को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इससे क्षेत्र के साथ-साथ जातीय समीकरण भी बैठ सकता है।
4. आज तक नॉर्थ ईस्ट से कोई भी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति नहीं बन पाया है। ऐसे में भाजपा इसपर भी विचार कर रही है कि इस बार नॉर्थ ईस्ट से किसी को उपराष्ट्रपति बनाया जाए। अगर ऐसा होता है तो यह भी एक इतिहास होगा। अगले दो साल में नॉर्थ ईस्ट के छह राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। अगर भाजपा नॉर्थ ईस्ट से किसी को उम्मीदवार बनाती है तो उसे इसका फायदा चुनावों में भी मिल सकता है।
5. राष्ट्रपति चुनाव में ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार किसी मुस्लिम चेहरे को भाजपा उम्मीदवार बना सकती है। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। अब चर्चा ये है कि भाजपा उपराष्ट्रपति चुनाव में मुस्लिम चेहरे पर दांव खेल सकती है। इसमें केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। इसके अलावा भी कुछ मस्लिम नेताओं पर भाजपा की नजर है। हाल ही में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी ये तय हुआ है कि पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने का काम किया जाएगा। भारत में ज्यादातर पसमांदा मुसलमान हैं। इनकी संख्या ज्यादा है और सबसे ज्यादा गरीब और पिछड़े भी यही लोग हैं। ऐसे में यह भी संभव है कि इस बार किसी पसमांदा मुसलमान को भाजपा उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बना दे। इससे दुनिया में भाजपा के मुसलमान विरोधी होने का आरोप भी मिट जाएगा और पसमांदा मुसलमानों का साथ भी भाजपा मजबूत करने में कामयाब होगी।
विपक्ष की क्या है रणनीति?
भाजपा की तरह ही विपक्ष भी उपराष्ट्रपति पद के लिए रणनीति बनाने में जुट गया है। कांग्रेस के एक दिग्गज नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, श्उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए इस बार कांग्रेस विपक्ष की अगुआई करेगी। राष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी ने शुरुआत की थी। इसके चलते उम्मीदवारों के चयन और विपक्षी दलों को एकजुट करने में कई तरह की दिक्कतें आईं। अब उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसा न हो इसके लिए रणनीति बनाई जा रही है। कांग्रेस नेता आगे कहते हैं, इस बार हम सभी विपक्षी दलों को एकसाथ बैठाकर प्रत्याशी का चयन करेंगे। पिछली बार कई दलों को टीएमसी ने छोड़ दिया था। इस बार हम ऐसा नहीं करेंगे। छोटे से छोटे विपक्षी दल को साथ लेकर उनकी राय लेंगे।श्
1. संसद के दोनों सदनों के सदस्य वोट डालते हैंरू उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से होता है। संसद के दोनों सदनों के सदस्य इसमें हिस्सा लेते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचित सांसदों के साथ-साथ विधायक भी मतदान करते हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही वोट डाल सकते हैं।
2. मनोनीत सांसद भी डाल सकते हैं वोटरू राष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सांसद वोट नहीं डाल सकते हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसा नहीं है। उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसे सदस्य भी वोट कर सकते हैं। इस तरह से देखा जाए तो उपराष्ट्रपति चुनाव में दोनों सदनों के 790 निर्वाचक हिस्सा लेते हैं। इसमें राज्यसभा के चुने हुए 233 सदस्य और 12 मनोनीत सदस्यों के अलावा लोकसभा के 543 चुने हुए सदस्य और दो मनोनीत लोकसभा सदस्य वोट करते हैं। इस तरह इनकी कुल संख्या 790 हो जाती है।
कौन लड़ सकता है उपराष्ट्रपति का चुनाव?
1. भारत का नागरिक हो।
2. 35 साल वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
3. वह राज्यसभा के लिए चुने जाने की योग्यताओं को पूरा करता हो।
4. उसे उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए।
5. कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, वह इसका पात्र नहीं हो सकता है।
6. उम्मीदवार संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए। अगर वह किसी सदन का सदस्य है तो उसे उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ेगी।