“कुतुब ऑफ हिमाचल” की अदभुत है चैहणी कोठी (किला) का वास्तुशिल्प। 400 साल से खडा है मन्दिर महल।
(मनोज इष्टवाल)
जब भी इतिहास या इतिहाकारों की बात होती है, तभी मन में एक खटका सा होता है कि हर बात हम मुगलों से क्यों जोड़ देते हैं। अब इस प्राचीन महल को ही देख लीजिये बनवाया एक हिन्दू राजा के वजीर ने हमारे इतिहासकारों ने इसे कुतुबुद्दीन अली ऐवक से जोड़ से जोड़कर नाम दे दिया “कुतुब ऑफ हिमाचल” ! क्या इसे चैहणी कोठी का नाम से जानना पर्याप्त नहीं था। आइये जानते हैं आखिर कब और कैसे बनाया गया यह महल..!
इसे महल या किला नाम देना वर्तमान में भले ही तर्क संगत नहीं लगता क्योंकि यह आज ” चैहणी कोठी” मन्दिर के नाम से जाना जाता है व यहां श्रृंग या नागदेवता का वास माना जाता है लेकिन पूर्व में इस पर शोध करने वाली हिमाचल विश्वविद्यालय की टीम ने इसके जो साक्ष्य जुटाए हैं उनके अनुसार “विक्रम संवत 1731 और 1674 ईसवी के एक प्राचीन मंदिर चैहणी कोठी की खोज प्रदेश विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने की है। इस मंदिर को हिमाचल का सबसे ऊंचा मंदिर माना जा रहा है।”
इस कोठी को जो लकडिय़ों और पत्थर से बने इस मंदिर को कुल्लू के बंजार में कुतुब ऑफ हिमाचल के नाम से जाना जाता है। लोगों का कहना है कि 1905 में प्रदेश में आए भीषण भूकंप में इसका एक भी पत्थर नहीं गिरा था। इसे उस दौरान भूकंपरोधी बनाया गया था। लेकिन वर्तमान में यह मंदिर खस्ता हालात में है, इसके रख रखाव में प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
प्रदेश विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग को चैहणी कोठी पर शोध के दौरान तीन टाकरी अभिलेख मिले हैं। पहला अभिलेख चंबा के राजा विधि के समय का है। कोठी के दरवाजे, लकडिय़ों, पत्थर की मूर्तियों में लिखित दस्तावेज मिले हैं। विक्रम संवत 1731 और 1674 ईसवी के ये अभिलेख हैं।
दूसरा अभिलेख विक्रम संवत 1734 और 1693 ईसवी के हैं। इसमें लिखे दस्तावेज के अनुसार चैहणू चंद्र नाम का वजीर भलाणी गांव से आकर यहां बस था। उसके नाम पर ही इस मंदिर का नाम चैहणू कोठी पड़ा, उसने ही इसका निर्माण किया था। इस अभिलेख में सिर्फ चैहणू का ही जिक्र है।
वहीं तीसरा अभिलेख विक्रम संवत 1837 व 1780 ईसवीं का है। इसमें कर्मदास कायथ का नाम सामने आता है। इस समय चैहणी का वजीर अंगद था। यह बात भी सामने आई है कि इस कोठी की छत ढलवा शैली से बनी हुई है। मंदिर की खासियत यह है की इसमें देवी मोहरे विराजमान है।
प्रदेश विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने इस मंदिर की खोज वर्ष 2011 में शुरू की थी, जब इस मंदिर के भीतर नक्काशी और टाकरी अभिलेख को पढ़ा गया तो पाया कि यह सबसे ऊंचा और काफी पुराना मंदिर है। टाकरी अभिलेख से साफ हुआ है कि इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था।
इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. लक्ष्मण सिंह ठाकुर का कहना है कि चैहणी कोठी मंदिर पर शोध में पाया गया कि यह मंदिर काफी ऐतिहासिक और ऊंचा है। इस मंदिर को अभी तक न पहचान मिली है और न ही इस ओर किसी ने ध्यान दिया है। उनका कहना है कि शोध के दौरान मंदिर के बारे में उन्हें कई प्राचीन धरोहर की जानकारी मिली है।
डॉ. ठाकुर का कहना है कि भारतीय पुरातत्व संरक्षण और प्रदेश कला संस्कृति विभाग को इसके रखरखाव के लिए प्रयास करने चाहिए। इसका वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण हो।
मंदिर चैहणी कोठी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी में घर हम कुल्लू का उस काल का इतिहास खंगालते हैं तब पाते हैं कि इतिहासविदों ने या तो जानबूझकर उस स्वर्णिम काल के पन्ने नहीं पलटे या फिर मुगलों ने उस इतिहास को अंधेरे में धकेल दिया। ऐसा भी हो सकता है कि जिस काल में यह इतिहास लिखा गया उस काल में सेक्युलर इतिहासकारों को धन प्रलोभन देकर बड़ी सरकार ने जानबूझकर उस काल को उपेक्षित रखा हो। मेरा मानना है कि अगर यह सब नहीं था तो इसे चैहणी कोठी की जगह कुतुब ऑफ हिमाचल का नाम क्यों दिया गया? आइये लगे हाथ कुल्लू क्षेत्र के इतिहास कर बारे में भी जानकारी ले लें-
संस्कृत साहित्य में कल्लुत के नाम से प्रसिद्ध इस रियासत की स्थापना 360 ई में विहंगमणी पाल ने की थी। इस रियासत की राजधानी जगतसुख थी। कुल्लू के मुख्य राजाओं का विवरण इस प्रकार है —-बहादुर सिंह —1532 -1559 ई इसकी राजधानी मकरासा थी। जगतसिंह 1660 ई इसकी राजधानी सुल्तानपुर थी। जगतसिंह ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए अयोध्या से रघुनाथ की प्रतिमा को चुरा कर लाया। उसने भगवान रघुनाथ को कुल्लू का शासक घोषित कर दिया और स्वयं वजीर की तरह राज्य का कार्य भार देखने लगा। विधि सिंह 1672 -1688 ई ने कुल्लू रियासत का लाहौल तक विस्तार किया।
मानसिंह 1688 -1719 ई ने अपने विजय अभियान के अंतर्गत मंडी की नमक की खानों पर विजय प्राप्त की।
रणजीत सिंह 1810 ई ने कुल्लू से कर वसूल किया। 1963 ई में कुल्लू को जिले का दर्जा मिला। और 1966 में इसे हिमाचल में मिला लिया गया। 1966 तक यह पंजाब के काँगड़ा का भाग था।
उपरोक्त इतिहास की जानकारियों में सिर्फ राजा विधि सिंह के बाद मुगलों के चाटुकार राजा मान सिंह द्वारा यहां अधिकार जमाकर जितने भी दुर्ग व कोठियां थी सब पर ज्यादात्तर इतिहास बदलकर मुगलों के नाम का वास्तु शिल्प होना चस्पा कर दिया। उसके बाद 1719 से 1780 तक के इतिहास खुर्द-बुर्द किया गया। वह तो भला हो हिमाचल विश्वविद्यालय की शोध टीम का जिन्होंने अभिलेखों के आधार पर ” कुतुब ऑफ हिमाचल” को “चैहणी कोठी” मन्दिर नाम से पुकारा है।