कुमाऊँ मंडल (हिमालयन डिस्कवर टीम)
न्याय देवता के रूप में सम्पूर्ण उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश विदेश में सुप्रसिद्ध गोलज्यू देवता की “श्रीगोलज्यू सन्देश यात्रा” रथ आज अपने चौथे पड़ाव द्वाराहाट पहुंच चुकी है। जहां से वह अलसुबह गढ़वाल मंडल के श्रीनगर होकर रात्रि विश्राम के लिए पौड़ी पहुंचेगी।
यूँ तो गोलज्यू देवता के चमत्कारों व न्याय के सैकड़ों उदाहरण आज भी मौजूद हैं जिसके परिणाम स्वरूप उनके मंदिरों में लटकी हजारों चिट्ठियां व हजारों घण्टियाँ दिखाई देती हैं जो बताती हैं कि लोगों की मन्नतें, मुरादें पूरी करने में गोलज्यू जरा भी कोताही नहीं करते। मूलतः मातृशक्ति की पुकार पर हरदम मौजूद रहने वाले गोलज्यू देवता की “श्रीगोलज्यू सन्देश यात्रा” पूरे गढ़वाल कुमाऊं क्षेत्र में उत्सुकता का बिषय बनी हुई हो।
ज्ञात होकि गोलज्यू देवता आठवीं सदी पूर्व में उक्कू महल व हुश्कर महल के सूर्यवंशी राजा हल्लू राई के पुत्र झल्लू राई के पुत्र हुए जिनका जन्म गोरी नदी घाटी (मदकोट क्षेत्र) के धर्तीधार में होना बताया जाता है। गोरी नदी क्षेत्र में जन्में गोरिया, ग्वेल, गोलज्यू, गोरिल सहित विभिन्न नाम से पुकारे गए गोलज्यू देवता मूलतः कत्यूर वंश के थे जिनकी सात सौतेली माँयें थी व वह माँ कलिंगा के पुत्र हुए जो हरुसेम व कलु सेम की बहन थी व किरात वंश की थी।
गोलज्यू देवता की कर्मस्थली मूलतः चंपावती राज्य था जो पाटन नेपाल में है व बाद में चंपावती से चम्पावत बने चंद राजाओं के काल में वे उनके किले के सेनापति (पश्वा) हुए जिनकी धुनि राजमहल के बाहर हुआ करती थी।
यूँ तो उनके चमत्कारों की बड़ी पैविस्त है लेकिन ऐतिहासिक व किंवदन्तियों में उनके साक्ष्यों के कुछ प्रमाण जग जाहिर हैं।
गोलज्यू देवता की उत्पत्ति व न्याय।
सूर्यवंशी राजा झालू राई के पुत्र गोलू राई का जन्म उनकी आठवीं पत्नी कलन्धरा यानि कालिंका से हुई।
कलन्धरा अर्थात कलिंगा झालू राई की आठवीं पत्नी हुई। पूर्व की 7 पत्नियों से उनकी कोई संतान नहीं थी। बूढ़े झालू राई की पत्नी कलिंगा उच्च हिमालयी क्षेत्र की किरात वंशज थी। जिनका जिनके हरु सेम व कलू सेम किरात वंशी राजा थे व वे वर्तमान में जोहार दारमा घाटी के उच्च हिमालयी क्षेत्र के राजा हुए। हरु सेम ने अपना हुश्कर महल कलिंगा को दान में दिया। जो आज भी धर्तीधार के आस पास जंगल में मौजूद बताया जाता है।
रानी कलिंगा जब गर्भवती हुई तो उनकी सातों सौतन उनसे ईर्ष्या करने लगी। जैसे ही गोर वर्ण राजकुमार ने कलिंगा के गर्भ से जन्म लिया वैसे ही सातों रानियों ने गोरिया को उच्च हिमालयी क्षेत्र में गोपनीय तरीके से छोड़ सिल और बट्ट बताकर को कलिंगा के गर्भ से जन्मा बताया। कहानी बहुत लंबी है। इसलिए अब उनके न्याय सम्बन्धी कुछ जानकारी दे देते हैं।
1- चम्पावत के चंद वंशी राजाओ के यहां उनका पश्वा प्रकट हुआ। और वे वहां गुरु के रूप में अप्रत्यक्ष रहे।
2- अपने कत्यूरी काल में वे कत्यूरी सम्राट राजा झल्लू राई के पुत्र रहे जिन्होंने घुघुती के रुन्दन को सुनकर डोटी गढ़ इसलिए तबाह कर दिया था क्योंकि डोटी गढ़ के बालको ने घुघुती के नवजात बच्चों को मार दिया था।
3- गोलज्यू देवता न्याय प्रिय है व माँ बहनों की पुकार पर एकदम उनके साथ हो लेता है। व उन पर अत्याचार करने वाले लोगों को नहीं बख्शता।
4- गोलज्यू धामो में हर मन्नत पूर्ण होती है। और मन्नत पूर्ण होने पर लोग उनके मंदिरों में घण्टियाँ बांधते हैं।
5- यदि किसी का न्यायालय में केस चल रहा हो व जजमेंट नहीं हो रहा हो तो वह गोलज्यू के दरबार चितई चम्पावत घोड़ाखाल में अपनी फरियाद की चिट्ठी डाल आता है उसे फौरन न्याय मिल जाता है।
6- यही नहीं विश्व भर के न्यायलयों में लंबित प्रकरणों की भी फरियादें यहां टंगी मिल जाएंगी। स्वयं न्यायाधीश भी जब जजमेंट करने में असमंजस की स्थिति में होते हैं तो वे भी गोलज्यू दरबार में अपनी फरियाद डालते हैं।
7-ब्रिटिश काल में गोलज्यू मंदिर चितई के लिए एक अलग पोस्ट ऑफिस स्थापित था। जिसकी डाक मंदिर में सीलबंद लिफाफे के साथ टांगी जाती थी और सुबह वही लिफाफा खुला मिलता था।
8- राजा अस्कोट के राजवंश में जब पुत्र पैदा नहीं हुए तब राजा ने गोलज्यू के शत गढ़ पौड़ी खाला में फ़रियाद दर्ज की। राजकुंवर के जन्म के पश्चात जब भी राजा अस्कोट व महारानी अस्कोट शत गढ़ के पास से गुजरते घोड़े से पैदल ही पूरा गांव नापते।
9- पौड़ी खाला सोर घाटी से ही कंडी में गोलज्यू को पौड़ी लाने की किंवदंती है। जो कालांतर में काली कुमाऊँ क्षेत्र अर्थात महाकाली नदी का क्षेत्र कहलाता था।
10- पौड़ी के जिलाधिकारी रहे प्रभात कुमार सारंगी को बर्षों बाद पौड़ी कंडोलिया देवता की कृपा से पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। और विदाई की पहली रात्रि उन्होंने स्वयं कंडोलिया देवता प्रांगण में ढोल बजाकर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की।
ऐसे दर्जनों चमत्कार कालांतर से वर्तमान तक सुनाई व दिखाई देते हैं।
11- राजा उधोत चंद के काल में 1678 में डोटी नरेश ने जब चम्पावत पर कब्जा कर लिया था तब उनकी मूर्ति को पगड़ी में लपेटकर उनके सेनापति हर सिंह कैड़ा अपने गांव बिंता के आये और उनकी उतुंग शिखर पर गोलज्यू देवता का मंदिर स्थापित किया। यहां गोलज्यू देवता राजा उधोत चंद जिन्हें उदयचंद भी कहा गया है के नाम से उदयपुर के गोलज्यू कहलाये।
इस बर्ष “अपनी धरोहर सोसायटी” द्वारा वृहद रूप से विगत 25 अप्रैल 2022 को अपने पहले पड़ाव बोना गांव से यात्रा का शुभारंभ किया गया जो वहां से होती हुई लगभग 11 किमी पैदल उतुंग हिमालयन की ओर बढ़ी व लगभग 10500 फिट की ऊंचाई पर अवस्थित गोलज्यू जन्मस्थान धर्तीधार पहुँची जहां से पूजा अर्चना के बाद पुनः बोना गांव लौटी व तदोपरांत 26 अप्रैल 2022 को बोना गांव से मदकोट, बरम, जौलजीवी, अस्कोट, कनालीछीना, शतगढ़, पिथौरागढ़, रतवाली होकर रात्रि विश्राम हेतु अपने दूसरे पड़ाव पिथौरागढ़ रुकी।
27 अप्रैल को पिथौरागढ़ से रवानगी के बाद कोटगाड़ी होकर रात्रि विश्राम हेतु रीमा होती हुई बागेश्वर पहुंची। आज सुबह चनौदा (थैलढुंगा), बिंता उदयपुर होकर यात्रा बिन्सर-ताड़ीखेत होकर द्वाराहाट रात्रि विश्राम के लिए पहुंची है।
अपनी धरोहर सोसायटी के अध्यक्ष पूर्व आईजी पुलिस गणेश सिंह मर्तोलिया ने जानकारी देते हुए बताया कि इस यात्रा को आशा से कई अधिक जन समर्थन मिल रहा है व गोलज्यू दर्शन के लिए अपार भीड़ उमड़ रही है। उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान जिस तरह से “श्रीगोलज्यू सन्देश यात्रा” को क्षेत्रीय जनता धर्म कर्म के साथ आस्था व विश्वास के साथ हर छोटे बड़े स्थानों उमड़ रही है वह अतुलनीय है।
अपनी धरोहर के सचिव विजय भट्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि कल सुबह श्रीगोलज्यू सन्देश यात्रा द्वाराहाट से गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले के लिए प्रस्थान करेगी। पहले श्रीनगर कमलेश्वर में पूजा अर्चना करने के बाद गोलज्यू रथ पौड़ी कंडोलिया पहुंचेगा जहां पूजा अर्चना के बाद कल पौड़ी में विश्राम होगा।
इस दौरान श्रीगोलज्यू सन्देश यात्रा में श्याम सिंह रौतेला, वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल, बीएस मेहता, ललित पन्त, जीवन जोशी, मोहन बिष्ट, कैलाश, सुयाल, भूपेंद्र भट्ट, भगवान पन्त, दिनेश नेगी, हिमांशु खुल्वे, गौरव जोशी, भूपेंद्र बिष्ट, खड़क सिंह रावत, भगत सिंह धर्मशत्तु इत्यादि शामिल हुए।