(वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान की फेसबुक वाल से)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह अद्भुत गुण है कि वे सामान्य सी वस्तु में भी विशिष्टता ढूंढ लेते हैं और फिर उसका उपयोग किस तरह करना है, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। अभी हाल में अहमदाबाद के रोड-शो में वह एक खास तरह की भगवा टोपी में दिखे और यही टोपी भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर पार्टी के लाखों कार्यकर्ता के सिर चढ़कर भी बोलने लगी। आपको याद होगा कि इस बार गणतंत्र समारोह में प्रधानमंत्री मेहरून कलर की ऐसी ही डिजाइनिंग टोपी पहनकर पहुंचे थे। तब सोशल मीडिया से लेकर टीवी और अखबारों में इसकी खूब चर्चा हुई थी। उस टोपी पर पिन के रूप में उत्तराखंड का राजकीय पुष्प ब्रह्मकमल क्लिप किया हुआ था। अब ब्रह्मकमल की जगह ‘कमल’ और तिरछी रंगीन पट्टी पर ‘बीजपी’ अंकित कर दिया गया है।
मूल रूप से टोपी का यह आइडिया उत्तराखंड के पहाड़ों की पारंपरिक टोपी (टुपली) से लिया गया है। जानकार बताते हैं कि इस बार का गणतंत्र दिवस चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल विपिन रावत समेत भारतीय सेना के आठ योद्धाओं की असामयिक मृत्यु के साए में संपन्न होने जा रहा था और आहत देश अपने इन नायकों खासकर सीडीएस के सम्मान में शोकग्रस्त था। ऐसे में देश के शिखर नेता ने उस प्रतीक को चुना जो पारंपरिक रूप से जनरल रावत की पुश्तैनी पहचान को इंगित करने वाला था। संभव है प्रधानमंत्री की यादाश्त में जनरल विपिन रावत के अलावा अपने रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और वे तस्वीरें भी रही होंगी जिनमें ये शख्सियतें अपने पर्वतीय समाज के चुनिंदा आयोजनों में पारंपरिक गढ़वाली टुपली में नजर आती थीं।
पहाड़ में पुराने जमाने में हलवाहों से लेकर चरवाहों तक और शिक्षकों से लेकर पंडित-पुरोहितों और फौजी भाईयों तक, पहाड़ी टोपी के पहनावे ने सबकी शान को सिरमौर रखा। बदलते दौर के साथ जिस तरह गांधी टोपी रस्मी होकर रह गई, पहाड़ी टोपी भी पुरानी पीढ़ी के साथ सिरों से गायब होने लगी। लेकिन इधर राजधानी दिल्ली में पहाड़ी उत्पादों के नामचीन विक्रय केंद्र ‘स्यारा रिटेल्स’ ने परिवर्तित रूप में डिजाइनिंग पहाड़ी टोपी को बाजार में उतारा तो इसे जोरदार रिस्पांस मिला। और देखते ही देखते दिल्ली में आयोजित पहाड़ी कौथिगों व उत्सवों में यह डिजाइनिंग टोपी युवाओं के बीच फैशनपरस्ती का सबब बन गई।
पारंपरिक टोपी में परिवर्तन महज इतना किया गया कि इसके अगले सिरे पर एक रंगीन आड़ी पट्टी और पट्टी के बराबर ब्रह्मकमल का इनवेलम यानी प्रतीक जड़ दिया गया। मूल रूप से इसे मसूरी में सुरकंडा क्षेत्र के जगदम नामक दर्जी बनाते थे और स्यारा रिटेल के पास ये वहीं से आती थीं।
राजधानी दिल्ली में पर्वतीय प्रशासनिक अधिकारियों की सामाजिक संस्था ‘उत्तरायणी’ के कार्यक्रमों में भी इस डिजाइंग टोपी को खूब जगह मिली और यही संपर्क इसे राजपथ तक ले आया।
नरेन्द्र मोदी खासकर राष्ट्रीय पर्व जैसे अवसरों पर अपनी पोषाकों और खास प्रतीकों के लिए चर्चा में रहते आए हैं। इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसी पर्वतीय प्रतीक के बारे में पीएमओ की दिलचस्पी की भनक मिलते ही प्रधानमंत्री तक पर्वतीय टोपी की सिफारिश पहुंचा दी गई। पीएमओ को सुझाव भा गया और फौरन स्यारा रिटेल्स के निदेशक दीपक ध्यानी से संपर्क कर उनके स्टोर में उपलब्ध पहाड़ी टोपी के सभी डिजाइन व्हट्स्ऐप करने को कह दिया गया।
ध्यानी बताते हैं कि 24 जनवरी की सुबह पीएमओ से संदेश आया कि फाइनल की गई टोपी पर ब्रह्मकमल का प्रतीक चिह्न दो से ढाई गुना बड़ा चाहिए। आनन-फानन में इसे मसूरी से संपर्क कर उपलब्ध करा दिया गया। मेहरून कलर की टोपी फाइनल हुई थी जिसे शीश पर धारण कर 26 जनवरी की सुबह प्रधानमंत्री मोदी गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में पधारे थे और आते ही सोशल मीडिया प्लेटफार्मेां पर छा गए।
इस बार की 26 जनवरी चूंकि उत्तराखंड सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के सरगर्म माहौल में मनाई जा रही थी, लिहाजा मोदी के शीश पर सजी उत्तराखंडी टोपी को सीधे तौर पर चुनाव से जोड़ कर देखा गया और तमाम अखबारों समेत सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में यही चर्चा होती रही। उत्तराखंड के पहाड़ों में चप्पे-चप्पे पर बड़े-बड़े चुनावी होल्डिंग्ज में मुख्यमंत्री धामी सहित चुनावी मैदान में उतरे भाजपा नेताओं की तस्वीरें इसी टोपी के साथ देखी गईं।
स्वयं मोदी जी ने उत्तराखंड की अपनी चुनाव सभाओं को ‘टुपली’ में ही संबोधित किया। चुनाव में मिली अभूतपूर्व जीत के बाद मानो मोदी और ‘पहाड़ी टुपली’ का करिश्माई अंदाज एकाकार हो गए! खासकर उत्तराखंड में जीत के जश्न में इस टोपी की शान को सातवें आसमान में पहुंचा दिया। पर यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। आज मोदीजी ने इसे भाजपा कार्यकर्ताओं के नए गणवेश का अंग बना दिया है। बताया जाता है कि सूरत की एक फर्म को ऐसी दस करोड़ से अधिक टोपियां तैयार करने का ऑर्डर मिला है।
खास बात यह है कि एक ओर यदि पहाड़ी टोपी ने राजपथ से लेकर सूरत तक का सफर तय किया है, वहीं अपने पारंपरिक स्वरूप यानी गैरभगवा रंग और ब्रहमकमल वाले पिन के साथ इसका एक नया बाजार भी पनपा है। दिल्ली में भी कई दर्जी इसे बना रहे हैं। ध्यानी बताते हैं कि हम सबके लिए यह गौरव की बात है कि प्रधानमंत्री ने गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर उत्तराखंडी टोपी को इतना मान-सम्मान दिया। अगले ही दिन हमारे पास टोपी के खरीदारों की लाइन लग गई और ढाई सौ से अधिक टोपियां हाथों-हाथ बिक गईं। आज भी हमारे पास एक हजार से अधिक के टोपियों के ऑर्डर हैं।
उन्होंने बताया कि अब हमने इस टोपी पर ब्रह्मकमल के अलावा भगवान शिव, बदरीनाथ, केदारनाथ और गणेश समेत अपने ईष्ट देवों के प्रतीक चिह्न लगाने की पहल की है। इससे पहाड़ी टोपी की शान में वृद्धि होगी। वह कहते हैं, लेकिन यह सिलसिला टोपी तक सीमित नहीं रहना चाहिए। पहाड़ के अन्य पारंपरिक उत्पादों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए और इसके लिए यह बेहतरीन मौका है।