कोटद्वार विधान सभा (निर्वाचन क्षेत्र 41) त्रिकोणीय टक्कर में पिछड़ रही भाजपा एकाएक फ्रंटफुट पर। पार्टी से खपा भाजपाई फिर लौटने लगे वापस।
(मनोज इष्टवाल)
उफ्फ…!.विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ने जिस तरह उत्तराखंड के चुनाव में बिना किसी राजनेता की ब्लैकमेलिंग से प्रभावित होकर उम्मीदवारों का चयन किया वह भाजपा के आम कार्यकर्ताओं के लिए फूंक सरका देने जैसा था। प्रदेश की सबसे विवादित सीट के रूप में भारतीय जनता पार्टी के लिए साबित हुई कोटद्वार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र 41सीट ने इस बार कुछ ज्यादा ही पसोपेश में भाजपाइयों को डालकर रखा। यह वही विधान सभा सीट है जिसमें 2012के चुनाव में उतरी भाजपा ने मेजर जनरल खंडूरी के नाम पर प्रदेश भर में 35 सीटें कब्जाई लेकिन उन्हें यहां की जनता ने बैरंग कर चुनाव हरा दिया था। इस चुनाव को हारने के पीछे भीतरघात बताई जाती है।
2017 में भाजपा की टिकट पर बम्पर वापसी करने वाले डॉ हरक सिंह रावत ने कांग्रेस के सशक्त कहे जाने वाले तत्कालीन मंत्री सुरेंद्र सिंह रावत को हराकर अपने राजनैतिक कद का लोहा मनवाया लेकिन इस बार वह कहां न कहीं गच्चा खा गए। वे शायद इस सोच को लेकर बढ़ रहे थे कि इस बार यहां से अन्य जगह सरक ही जायेंगे। उन्हें अपनी राजनीतिक चातुर्यता की इस बार कीमत चुकानी पड़ी। क्योंकि शायद यह यह भूल गए कि केंद्र में बैठे अमित शाह अब तक पूरे देश के राजनीतिज्ञों की कुंडली भाँच चुके हैं।
डॉ हरक सिंह रावत जब ऐन चुनाव से पहले जब पार्टी को ब्लैकमेल कर अपने परिवार के लिए चार चार टिकट मांगने लगे तब भाजपा के केंद्रीय थिंक टैंक ने हर प्रदेश के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया एक परिवार एक टिकट..! इस फॉर्मूले से नाखुश वे सभी राजनेता पार्टी से इस्तीफा दे गए जिन्हें अब पद कद व राजनीति पर गुमान था। अब चाहे उसमें उत्तर प्रदेश के मौर्या हो या रीता बहुगुणा या फिर उत्तराखंड के यशपाल आर्य व उनके पुत्र। जब तक डॉ हरक सिंह रावत को यह उम्मीद रही कि वे बड़ी असानी से टिकट लपक लेंगे तब तक पार्टी उनके साथ गुल्ली डंडा खेलती रही लेकिन अचानक उनकी पार्टी से बर्खास्तगी ने उनकी बर्षों की राजनीति को चारों खाने चित्त कर दिया। और वे न घर के रहे न घाट के। काफी मिन्नतों के बाद का कांग्रेस में उनकी वापसी हुई वह भी उनकी एकमात्र बहु के टिकट के साथ। विपक्ष ने आरोप लगाया कि करोड़ों की ढील के बाद कांग्रेस ने उन्हें अपनाया।
भाजपा के लिए कोटद्वार विधान सभा सीट गर्म तवे के समान साबित हो रही थी। दावेदारी में जनरल खंडूरी के नजदीकी धीरेंद्र चौहान तो कभी सीडीएस विपिन रावत के भाई कर्नल रावत का नाम, कभी पूर्व विधायक व वर्तमान में कांग्रेसी नेता शैलेन्द्र रावत का नाम। इन तीनों के बाद एक नाम तेजी से टिकट के लिए सामने आए तो वह डॉ हरक सिंह रावत के ओएसडी विनोद रावत हुए जिन्हें चुनाव लड़ाने का चाणक्य समझा जाता रहा है। उसके अलावा शैलेन्द्र सिंह बिष्ट ‘गढ़वाली’, सुमन कोटनाला, जिलाध्यक्ष संपत सिंह व गौरव नौटियाल के नाम सामने आए। इनमें दो नामों को लेकर क्षेत्रीय लोग आसक्त नजर आए कि या तो धीरेन्द्र चौहान को टिकट मिलेगी या फिर विनोद रावत को…! लेकिन हुआ कुछ बिल्कुल हटकर। यमकेश्वर से टिकट काटकर प्रदेश महिला भाजपा अध्यक्ष व निवर्तमान विधायक ऋतु खंडूरी को टिकट दे दिया गया।
कोटद्वार की जनता में इस बात का रोष पैदा हुआ कि यह तो ज्यादती है। इसे भाजपा के एक धड़े की साजिश करार दिया गया। यहां खुलेआम भाजपाई यह कहते सुनाई दे रहे थे कि जो लोग जनरल खंडूरी को पसंद नही करते उन्होंने एक साजिश के तहत ऋतु खंडूरी को कोटद्वार विधान सभा से उम्मीदवार बनवाया है, ताकि मेजर जनरल खंडूरी की राजनीतिक विरासत का नाम लेवा न बचे। क्योंकि कांग्रेस ने उनके पुत्र मनीष खंडूरी को भी टिकट नहीं दी तो यह मैसेज और तेजी से वायरल होने लगा कि कुमाऊँ मंडल के भाजपा कांग्रेसी नेता न सिर्फ गोपनीय समझौते के तहत जनरल खंडूरी की राजनीतिक विरासत को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि डॉ हरक सिंह रावत की राजनीति पर भी बर्फ लगा रहे हैं।
कोटद्वार विधान सभा से सशक्त दावेदार धीरेंद्र चौहान जो कल तक इस सीट पर मेजर जनरल खंडूरी के चेहरे के रूप में जाने जाते थे, उन्हें ही तोड़कर निर्दलीय खड़ा किया गया व यह संदेश फैलाया गया कि कल अगर चौहान जीते तो वे निसन्देह भाजपा में शामिल होंगे। सच कहें तो यह ऋतु खंडूरी के लिए वह चक्रव्यूह संरचना से कम नहीं लग रहा था जो द्वापर में महाभारत के दौरान अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के लिए रचा गया था। क्योंकि ऋतु खंडूरी के इर्द-गिर्द वही चेहरे दिखाई देने लगे जो कभी उस गुट के हुआ करते थे जो जनरल खंडूरी के धुर्र विरोधी कहलाते थे। इसलिये कोटद्वार की जनता न पहले दूसरे नम्बर पर सुरेंद्र सिंह नेगी व धीरेंद्र चौहान के बीच सीधी टक्कर बताई व ऋतु को तीसरे स्थान पर रखा। यह सबब भाजपा से नाराजगी की क्षेत्रीय जनता की इम्तहाँ थी।
अचानक समीकरण जुटने लगे । एक साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत गुट, जनरल खंडूरी गुट और अनिल बलूनी गुट के चेहरों की झलक ऋतु खंडूरी के साथ दिखने लगी। और बहुत पीछे कतार में खड़ी ऋतु एकाएक आगे बढ़ती दिखाई देने लगी। जैसे ही सोशल साइट पर लोगों को ऋतु खंडूरी के आजु-बाजू वीरेंद्र सिंह बिष्ट, विनोद रावत , शैलेन्द्र सिंह बिष्ट, सुमन कोटनाला, पार्टी प्रवक्ता कैंथोला सहित दर्जनों कोटद्वार के चिर परिचित चेहरे दिखाई देने लगे। तो धीरे – धीरे नाराज भाजपाइयों ने घरों से निकलना शुरू कर दिया और कारवां बनता चला गया।
विगत दिनों भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रवक्ता व राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी के आने से कार्यकर्ता उत्साह में दिखे और अब स्थिति यह नजर आने लगी कि धीरेंद्र चौहान तीसरे स्थान पर पिछड़ते नजर आ रहे हैं व ऋतु खंडूरी व सुरेंद्र सिंह नेगी में सीधी टक्कर दिखाई देने लगी है ।
कैसे आया अचानक ट्विस्ट।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए विगत शनिवार को राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी कोटद्वार विधानसभा में जनसंपर्क करने पहुंचे। बीजेपी की कोटद्वार से प्रत्याशी ऋतु खंडूरी के समर्थन में सांसद अनिल बलूनी ने डोर टू डोर कैंपेन किया। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं और स्थानीय कार्यकर्ता अनिल बलूनी के साथ नजर आए। यह अजब-गजब था कि जो भाजपा नेत्रियां अभी तक ऋतु खंडूरी के प्रचार में दिखाई नहीं दे रही थी अचानक सड़कों पर उमड़ पड़ी।
अनिल बलूनी ने किया क्षेत्रीय जनता से अनुरोध।
बीजेपी सांसद अनिल बलूनी ने कोटद्वार विधानसभा सीट पर डोर टू डोर कैंपेन के दौरान कहाँ मातृशक्ति को अग्रणी मानते भाजपा का चुनावी प्रचार किया वहीं उन्होंने ऋतु खंडूरी को विजयी बनाने के लिए लोगों से अपील भी की। ऋतु खंडूरी के समर्थन में जनसभा में उन्होंने कहा कि कोटद्वार उनका घर है और यहां के लिए उन्होंने और बीजेपी सरकार ने बहुत काम किया है। ऐसे में ऋतु खंडूरी को मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि उनकी पृष्ठभूमि बेहद ईमानदार विधायक की रही है और कोटद्वार विधान सभा को यकीनन एक ईमानदार व सक्षम विधायक की जरूरत है इसलिए हमें बीजेपी प्रत्याशी को भारी मतों से जिताने चाहिए ताकि राज्य व केंद्र सरकार से विधान सभा कोटद्वार को विकास का लाभ मिल सके।
मोदी, शाह के करीबी है भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रवक्ता व उत्तराखंड से राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी।
अनिल बलूनी मूल रुप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से हैं। वह शुरुआत से ही राजनीति में सक्रिय रहे। बलूनी ने भाजयुमो के प्रदेश महामंत्री, निशंक सरकार में वन्यजीव बोर्ड उपाध्यक्ष भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राष्ट्रीय मीडिया के प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभाई है। 2002 में उत्तराखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव में उन्होंने कोटद्वार विधान सभा सीट से नामांकन कराया था, लेकिन किसी कारण से नामांकन पत्र निरस्त हो गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2004 में कोटद्वार से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। दिल्ली में छात्र राजनीति और पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान उनकी संघ के नेताओं से नजदीकियां बढ़ी। संघ के जाने-माने नेता सुंदर सिंह भंडारी जब बिहार के राज्यपाल बने तो उन्होंने बलूनी को अपना ओएसडी बना दिया। इसके बाद भंडारी गुजरात के राज्यपाल बने तब भी बलूनी उनके ओएसडी थे। इस दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और मोदी-शाह के करीबी हो गए। इसके बाद अमित शाह के 2014 में अध्यक्ष बनने के बाद वे पार्टी प्रवक्ता और मीडिया प्रकोष्ठ का प्रमुख बने। अनिल बलूनी अमित शाह के सबसे भरोसेमंद लोगों में शामिल हैं। 2018 में अनिल बलूनी उत्तराखंड कोटे से राज्य सभा मे सबसे युवा सांसद बने।
ऋतु खंडूरी ने कहा कोटद्वार से उनका भावनात्मक लगाव।
भाजपा उम्मीदवार निवर्तमान विधायक ऋतु खंडूरी के लिए आयोजित जनसभा के बाद सांसद बलूनी ने कोटद्वार की गलियों में पैदल मार्च किया। सांसद ने पैदल मार्च करते हुए लोगों से बीजेपी के पक्ष में वोट देने की अपील की। वहीं कोटद्वार से बीजेपी प्रत्याशी ऋतु खंडूरी का कहना है कि संगठन ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है। इस सीट से उनका भावनात्मक लगाव भी है क्योंकि 2012 में उनके पिता इसी सीट से चुनाव हार गए थे। उस वक्त अगर उनके पिता मेजर जनरल (से.नि.) बी सी खंडूड़ी चुनाव जीते होते तो प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनती और उनके पिता मुख्यमंत्री बनते। मात्र एक सीट के अंतर से भाजपा की सरकार बनते-बनते रह गयी वरना कोटद्वार का तब कायाकल्प हो गया होता। ऋतु खंडूरी का कहना है इस बार भी 2017 की तरह प्रदेश भर में बीजेपी को जनता का आशीर्वाद मिल रहा है और प्रदेश में फिर से पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी। ऐसे में स्वाभाविक है कि कोटद्वार की जनता भी यही चाहेगी कि उनका विधायक विपक्ष में बैठने की जगह सत्तापक्ष में भागीदारी निभाये ताकि तेजी से क्षेत्र का विकास हो। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कोटद्वार की जनता का आशीर्वाद अगर उनके साथ रहा तो उन्हें अपनी विधायक पर नाज होगा क्योंकि उन्हें एक ऐसी विधायक मिलेगी जिसके दामन में भ्रष्टाचार का दागदार छींटे नहीं हैं।
विगत शनिवार को कोटद्वार के निवर्तमान विधायक व मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के ओएसडी रहे विनोद रावत ने अपने वार्ड की रैली निकालकर कांग्रेस व हरक सिंह रावत को यह संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा संगठन पहले भी मजबूत था और अब भी उतना ही मजबूत है। छोड़कर जाने वाले इस गलतफहमी में न रहें कि उनके जाने से भाजपा को नुकसान हुआ है।
लोगों की जुबानी मुद्दे।
भावर क्षेत्र के लोगों की मांग में सबसे बड़ी मांग अगर कोई नजर आती है तो वह है सड़क व मालन घाटी का पर्यटन के क्षेत्र में उपेक्षित व अपेक्षित विकास। यहां के आम जन का मानना है कि जिस दुष्यंत व शकुंतला पुत्र भरत ने चक्रवर्ती बन इस देश का नाम भारत बर्ष किया है उसकी इस जन्मभूमि को आजतक कोई भी राजनीतिक अपने चुनावी मैन फेस्टो में शामिल नहीं कर पाया और तो और जुबानी चुनाव प्रचार में भी इस पर चर्चा नहीं होती। कण्वाश्रम का विकास किया जाना यहां की आम जनता बहुत जरूरी मानती है क्योंकि जिस दिन यहां पर्यटन व धर्मसंस्कृति से जोड़कर इस कण्व नगरी कोटद्वार को देखा जाएगा उस दिन से पूरे भावर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था सुधरनी शुरू हो जाएगी।
वहीं कोटद्वार शहरी क्षेत्र के लोगों का मानना है कि यहां अनियंत्रित विकास में सुधार की आवश्यकता है। सिर्फ रोजी रोटी ही सबकुछ नहीं । शिक्षा और स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है। मेडिकल कॉलेज व सेंटर स्कूल शहरी क्षेत्र की मुख्य मांगों में शामिल समझी जा सकती है।
बहरहाल यह तो तय है कि भाजपा को जरा भी अंदेशा हुआ कि वे इस सीट को कहीं खो न दें तो तय समझिए वे इस सीट पर प्रचार हेतु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बुलाने में देर नहीं करेंगे क्योंकि संघ व संगठन भले से समझ गए हैं कि कहीं अंदरूनी क्षत्रपों की लड़ाई में सरकार बनाते बनाते वे रह न जाएं।