कपोत्री व मकड़ी चाची के बाद कौन लगायेगा माँगल गीत। कपोतरी चाची को चिंता कि 80 बर्ष की लोक विरासत कहीं मिट न जाये।
(मनोज इष्टवाल)
जब कपोत्री चाची दुल्हन बनकर रिंगवाडस्यूँ रिगोंडी गाँव से मेरे गांव धारकोट गंगा सिंह पंवार चाचा जी की दुल्हन बनकर आई थी तब वह मात्र 11 साल की थी। आज चाची की उम्र 87 बर्ष है।
कपोतरी चाची बताती हैं कि तब वह खूब लम्बी चौड़ी थी, इसलिए गांव की महिलाएं मुझे कहती थी कि क्या दुल्हन को ततैय्या ने काट रखा होगा। चाची जब 18 बर्ष की हुई तब उन्होंने श्रीमती सादे देवी फूफू के साथ पहली बार माँगल गीत गाए। सादे फूफू की शादी नानसू गांव हुई थी लेकिन कालगति के कारण वह उन्होंने जोगन का रूप धारण किया और अपने ही गांव की मढ़ी बनाकर उसी में रहने लगी। कपोतरी चाची बताती हैं कि उन्हें अच्छे से पता है कि उन्होंने श्रीमती लक्षु फूफू (रघुबीर सिंह नेगी ताऊ जी बिटिया जिनकी शादी घीड़ी गांव हुई) की शादी में उन्होंने पहली बार सादे फूफू के साथ माँगल गाये तो रघुबीर ताऊ जी यानि भगवान सिंह, विक्रम सिंह व महिपत सिंह भाई के पिता जी ने उस जमाने में खुश होकर उन्हें 05 रुपये दिए थे। जिन्हें उन्होंने खैरालिंग के मेले में खर्च किया तब गांव की सभी सखी सहेलियों के साथ उन्होंने मेले से दो किलो चने, मूंगफली, लैची खरीदकर लाये व कौडू दादा के घेरुआ में बैठकर सबने मिल बांटकर खाये।
अतीत की यादों को ताजा करती कपोतरी चाची बोली- बेटा, तब पूरे गांव में प्यार प्रेम व बहुत आत्मीयता थी। लोग खुश थे कि सादे माई ने मुझे माँगल गीत सीखा दिए। कई बर्ष तक उन्होंने सादे माई के साथ गीत लगाए।
सादे जोगण फूफू की जब मृत्यु हुई तब हम छोटे हुआ करते थे। तब पहली बार हमारे गांव की मढ़ी में कई जगह से कई जोगी-जोगण आये व मढ़ी के नीचे जोगण फूफू की समाधि में उन्हें ध्यान अवस्था में ही रखा गया।
कपोतरी चाची बताती हैं कि जोगन फूफू के स्वर्ग सिधारने के बाद उनके साथ श्रीमती बसन्ती देवी यानि पदानि बोडी ने माँगल गीत गाने शुरू किए। वह हंसती हुई बोलती हैं बेटा तब जगदीश थपलियाल की शादी यानि जगदीश चाचा की शादी थी। मुझे भी भम पकोड़ा खिला दिया और तेरी बोडी गणेशी देवी को। शुक्र है मैंने आधा खाया तेरी बोडी गणेशी देवी ने दो पकोड़े खाये उसे बहुत नशा रहा दो दिन तक नशा नहीं उतरा। जगदीश चाचा की शादी तक मंगलेर के पैसे बढ़कर पांच गुना हो गए थे। यानि 25 रुपये उन्हें मिले। पदानि बोडी उनसे कभी अपना हिस्सा नहीं मांगती थी। जोर जबरदस्ती पूरे पैंसे कपोतरी चाची को ही थमा देती थी। चाची कहती है पदानि बोडी तब भले से समझती थी कि मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
पदानि बोडी के स्वर्ग सिधारने के बाद कपोतरी चाची के साथ मेरी बोडी यानि गणेशी देवी ने पहली बार माँगल झंगवर्या ख़्वाल की सीता व लक्ष्मी दीदी की शादी में गाये तब उन्हें चार गुना यानि 100-100 रुपये मिले।
मेरी ताई व कपोतरी चाची ने कई साल माँगल गीत गाये।
कपोतरी चाची बताती हैं कि गांव दुफंटी हुआ तो धर्म संकट पैदा हो गया। शिबदेई दीदी की लडक़ी रीना की शादी में शिबदेई दीदी ने उन्हें खास तौर पर उन्हें माँगल गाने की जिद की। आखिर इस धर्म संकट का तोड़ सूरत सिंह चाचाजी ने निकला जो उनके मकान पर काम कर रहे थे। उन्होंने कहा माँगल गाना बुरी बात नहीं है बस वहां खाना पीना मत करना। मेरी ताई तब बीमार थी इसलिए उन्हें अकेले ही माँगल गाने पड़े।
मेरी ताई के देहरादून चले जाने के बाद कपोतरी चाची के साथ आनन्दी चाची ने माँगल गाने प्रारम्भ किये। अब तक मंगलेर की माँगल गाने का 10 गुना मिलने लगा था। आनन्दी चाची के कोटद्वार चले जाने के बाद कपोतरी चाची के साथ मकड़ी चाची ने इस विरासत को संभाला।
अब हालात यह है कि कपोतरी चाची पिछले तीन साल से पैरों में दर्द होने के कारण चल फिर सकने में असमर्थ हो गयी हैं। मकड़ी चाची की उम्र भी अब लगभग 80 साल हो गयी है। मंगलेर वाली विरासत अब अंतिम चरण पर है। कपोतरी चाची कहती हैं बेटा- मुझे इस बात का दुःख है कि क्या अब हमारे बाद माँगल गीतों के बिना ही मांगलिक कार्य पूर्ण किये जा सकेंगे? हमारी पीढियां आखिर क्यों अपने सांस्कृतिक मूल्यों को समझना नहीं चाहती। इस तरह तो हमारा लोकसमाज व लोक संस्कृति ही समाप्त हो जाएगी।
फिर याद करती बोली- अरे ब्यटा..! मैं तो भूल ही गयी थी कि आखिरी बार तो तूने मुझे झुमैलो गाने को बोला था व उसके तूने हमें 200 रुपये भी दिए थे।
बहरहाल पिछले 80 बर्षों से लोक संस्कृति की लोक विरासत संजोने वाली कपोतरी चाची की चिंता यही है कि क्या अग्रिम पीढ़ी के कोई होनहार माँगल गीतों को जिंदा रख सकेगी।