Friday, November 22, 2024
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आखिर क्यों बनता जा रहा है उत्तराखंड आपदा प्रदेश। आपदाओं के सबसे बड़े जिम्मेदार हम, जो मुखर विरोध नहीं करते।

● 242 जल विद्युत परियोजनाओं पर काम बेतरतीबा कार्य।

● 197 बांध प्रस्तावित, 32 बना दिये गए हैं या  निर्माणाधीन हैं।

● लगभग 60 हजार हेक्टेअर वन क्षेत्र ने ली समाधि।

●कई प्रजाति के औषधि पादप व जीव जंतु हुए विलुप्त।

● सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 5000 से अधिक दरारें।

(मनोज इष्टवाल)

“दूध पिये पड़ोसी घर के रहे कड़ाही चाट, कोयल सेवक बनी बैठी और कौवे हुए सम्राट।” इस कहावत को चरितार्थ करती उत्तराखंड निर्माण से लेकर वर्तमान तक की स्थिति का पूरा लेखा जोखा यही तो है। ऊर्जा प्रदेश के नाम पर कई बांध व सैकड़ों जल विद्युत परियोजनाएं । और बिजली मीटर की रफ्तार में गिरावट की जगज मिलावट के साथ प्रति यूनिट विद्युत भार घरेलू कनेक्शन पर बढ़ता हुआ 5.30 रुपये प्रति यूनिट।  एक ओर बांधों के लिए रोज नई एनओसी जारी दूसरी ओर रोजगार परख उद्योगों पर एनजीटी की महामारी…! आखिर यह प्रदेश बना किस लिए? इसलिए कि बेलगाम अफसरशाही व घूसखोर राजनेता व सिस्टम हमारे माथे ऐसा विकास थोपता रहे जो आपदाओं का विनाशकारी पहाड़, पहाड़वासियों के सिर का बोझ बना हर बरसात उन्हें बर्ष दर बर्ष निगलता रहे।

क्या हम जानते हैं कि पूरे हिमालय क्षेत्र में वर्तमान में 242 जल विद्युत परियोजनायें 25 निर्माणधीन बांध और 197 प्रस्तावित बांध व  प्रदेश के पहाड़ों के गर्भ गृह में 700 किमी. से अधिक लंबी सुरंग बनाई गई हैं । और तो और  बांधों के गर्भ में लगभग 55 से 60  हजार हेक्टेयर वन समा गए हैं व 1 लाख 18 हजार हेक्टयर वन , आर्थिक गतिविधियों से नष्ट हुए हैं ।

यह विनाशलीला लिखने वाला आखिर है कौन? प्रकृति ने तो हमें बेहतरीन जलवायु, वनस्पतियां, जल-जंगल-जमीन, वन्य जीव और जलचर, नभचर प्राणी दिए। बेशुमार वन औषधियों का भंडार और तरह तरह कर पशु-पक्षी भी । बदले में हम विकास के नाम पर इस अमूल धरा को खोद खोदकर लहूलुहान करते चले गए। जहां पानी है वहां बांध, जहां रेत है वहां खनन, जहां जंगल है वहां आग और जहां वनस्पति हैं वहां नाश करते रहे। विकास के नाम पर हम विनाश की ऐसी इबादत लिखते हुए आगे बढ़ रहे हैं जिसका क्षणिक लाभ कुछ बर्षों के लिये तो दिख जाएगा लेकिन उसका विनाश कहाँ तक कितनों को लपेटकर आगे बढ़ेगा यह विकास नाम का यह अंधा युग अभी समझ नहीं पा रहा है। प्रकृति तो अभी आपदा के नाम पर सिर्फ ट्रेलर दिखा रही हैं। जिस दिन नदियों पर बने ये बांध फूटने प्रारम्भ हुए उस दिन न घाटियां बचेंगी न नदी घाटियों में बचे गांव शहर व मैदान…!

टिहरी बाँध एक उदाहरण ।

उदाहरण के लिये टिहरी बांध को ही ले लीजिये कि जिस दिन उसमें भरे पानी ने अपना रास्ता ढूंढना प्रारम्भ किया तो कहां तक प्रलय आएगी।पर्यावरणविदों का मानना है कि बाँध के टूटने के कारण टिहरी गढ़वाल के देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, बिजनौर, मेरठ और बुलंदशहर इसमें जलमग्न हो जाएँगे। अब लगा लीजिये इनके बीच में कितनी आबादी व कितने छोटे बड़े शहर गांव हैं व कितनी लोकसंस्कृतियाँ निवास करती हैं।

टिहरी बांध दो महत्वपूर्ण हिमालय की नदियों भागीरथी तथा भीलांगना के संगम पर बना है टिहरी बांध करीब 260.5 मीटर ऊंचा, जो की भारत का अब तक का सबसे ऊंचा बाँध है।

प्रो. टी. शिवाजी राव भारत के प्रख्यात भू-वैज्ञानिक हैं। भारत सरकार ने टिहरी बांध परियोजना की वैज्ञानिक-विशेषज्ञ समिति में इन्हें भी शामिल किया था। प्रो. शिवाजी राव का मानना है कि उनकी आपत्तियों के बावजूद यह परियोजना चालू रखी गयी और बांध निर्माण किया गया ।

ज्ञात हो कि सन 1977-78 में टिहरी परियोजना के विरुद्ध आन्दोलन हुआ था। तब श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सन् 1980 में इस परियोजना की समीक्षा के आदेश दिए थे। तब केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित भूम्बला समिति ने सम्यक विचारोपरांत इस परियोजना को रद्द कर दिया था। अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जहां भी चट्टान आधारित बांध बनते हैं वे अति सुरक्षित क्षेत्र में बनने चाहिए। प्रसिद्ध अमरीकी भूकम्प वेत्ता प्रो. ब्राने के अनुसार, “यदि उनके देश में यह बांध होता तो इसे कदापि अनुमति न मिलती।” क्योंकि यह बांध उच्च भूकम्प वाले क्षेत्र में बना है। ध्यान रहे कि 1991 में उत्तरकाशी में जो भूकम्प आया था, वह रिक्टर पैमाने पर 8.5 की तीव्रता का था। टिहरी बांध का डिजाइन, जिसे रूसी एवं भारतीय विशेषज्ञों ने तैयार किया है, केवल 9 एम.एम. तीव्रता के भूकम्प को सहन कर सकता है। परन्तु इससे अधिक पैमाने का भूकम्प आने पर यह धराशायी हो जाएगा। मैं मानता हूं कि यह परियोजना भयानक है, खतरनाक है, पूरी तरह असुरक्षित है। भूकम्प की स्थिति में यदि यह बांध टूटा तो जो तबाही मचेगी, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। इस बांध के टूटने पर समूचा आर्यावर्त, उसकी सभ्यता नष्ट हो जाएगी। प. बंगाल तक इसका व्यापक दुष्प्रभाव होगा। देश के अनेक वैज्ञानिकों व अभियंताओं ने भी इस परियोजना का विरोध किया है। मुझे तो लगता है कि टिहरी बांध सिर्फ एक बांध न होकर विभीषिका उत्पन्न करने वाला एक “टाइम बम” है।

ज्ञात हो कि हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र काफी कच्चा है। इसलिए गंगा में बहने वाले जल में मिट्टी की मात्रा अधिक होती हैं देश की सभी नदियों से अधिक मिट्टी गंगा जल में रहती हैं। गाद भरने की दर के अनुमान के मुताबिक टिहरी बांध की अधिकतम उम्र 40 वर्ष ही आँकी गई हैं। अत: 40 वर्षो के अल्प लाभ के लिए करोड़ों लोगों के सिर पर हमेशा मौत की तलवार लटकाए रखना लाखों लोगों को घर-बार छुड़ाकर विस्थापित कर देना एवं भागीरथी और भिलंगना की सुरम्य घाटियो को नष्ट कर देना पूरी तरह आत्मघाती होगा।

1914-16 में स्व. पंडित मदन मोहन मालवीय ने अंग्रेज़ो द्वारा भीमगौड़ा में बनाए जाने वाले बांध के खिलाफ आंदोलन किया था। इस आंदोलन से पैदा हुए जन आक्रोश के कारण बाँध बनाने का फैसला रद्द कर दिया था। मालवीय जी ने अपनी मृत्यु से पूर्व श्री शिवनाथ काटजू को लिखे पत्र में कहा था कि “गंगा को बचाए रखना।”

ज्ञात हो कि टिहरी बांध उत्तराखंड के टिहरी जिले में बना है। साल 1972 में टिहरी बांध के निर्माण को मंजूरी मिली थी और 1977-78 में बांध का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। 29 अक्टूबर 2005 को टिहरी बांध की आखिरी सुरंग बंद हुई और झील बननी शुरू हुई। जुलाई 2006 में टिहरी बांध से विद्युत उत्पादन शुरू हुआ। यह बांध एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करता है और वहीं 400 मेगावाट बिजली का उत्पादन कोटेश्वर बांध से होता है। इस बांध की ऊंचाई 260.5 है। वहीं इसका जलाशय 42 वर्ग किमी लंबा है। टिहरी बांध से हर दिन 2,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई और 102.20 करोड़ पेयजल दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड को उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।

इस जल विद्युत परियोजना के लिए पुराने टिहरी शहर को जलमग्न होना पड़ा था। इसमें 125 गांवों पर असर पड़ा था। इस दौरान 37 गांव पूर्ण रूप से डूब गए थे जबकि 88 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। इन इलाकों में रहने वाले लोगों को नई टिहरी और देहरादून के आस-पास के क्षेत्रों में विस्थापित किया गया था।

टिहरी बांध का झील क्षेत्र 42 वर्ग किमी लंबा है। जबकि बांध दीवार की शीर्ष पर लंबाई 575 मीटर है। बांध दीवार की शीर्ष पर चौड़ाई 25.5 मीटर से 30.5 मीटर तक फैलाव है। बांध दीवार की तल पर चौड़ाई 1125 मीटर है।आप यह जानकर हैरान होंगे कि 13 में से 11 जिलों से होकर बहने वाली 12 प्रमुख नदियों पर छोटे और बड़े लगभग 32 से ज्यादा बांध और विद्युत परियोजनाएं बना दी गई हैं।

और कितने बांध?

ये नदियां क्रमशः इस प्रकार हैं-भागीरथी नदी पर 6, अलकनंदा नदी पर 5, गंगा नदी पर 3, राम गंगा नदी पर 3, काली नदी पर 1, कोसी नदी पर 1, पिंडर नदी पर 2, धौली गंगा नदी पर 3, यमुना नदी पर 3, टोंस नदी पर 3, शारदा नदी पर 2 इत्यादि। और कुल मिलाकर 197 बांध प्रस्तावित हैं।

ऐसे में आप ही अनुमान लगा लीजिए कि जिस दिन वाटर बम की तरह ये बांध फूटने प्रारम्भ हो जाएंगे उस दिन क्या होगा। जलवायु परिवर्तन तो हम देख ही चुके हैं।

अब अन्य कुछ परियोजनाओं पर आते हैं, 889 किलोमीटर लंबी चार धाम परियोजना में 35 करोड़ घन मीटर मिट्टी पत्थर ने जगह बदली है ,गंगा का जलस्तर ऊंचा हुआ है..। 22 प्रकार की वनस्पतियां और 7 प्रकार के जंतु प्रजातियां नष्ट होने के कगार हैं ।इन बेतरतीब परियोजनाओं से हिमालय चटक रहा है। भू-गर्भवेत्ताओं की माने तो हिमालय क्षेत्र में नई 5000 दरारें देखी गई हैं।

इतना सब कुछ जानने समझने के बाद भी सिर्फ धन कमाने में जुटे सफेदपोश व ऊंची कुर्सियों पर बैठे नीति-नियंता अगर आये दिन हिमालय को खोखला कर रहे हैं तो उसके दोषी वे लोग कम और हम ज्यादा हैं। क्योंकि हम सोये हुए प्रदेश के खोये हुए वासी हैं। हर साल तबाही में अपनों को खोना। घर, गांव मनुष्य व मानवता खोते रहना ही हमारी नियति में लिखा है। जाने कब जागेगी हमारी कुम्भकरणी नींद…जाने कब?

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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