Monday, December 23, 2024
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कुछ फर्क नही पड़ेगा कि उत्तराखंड से केंद्र में मंत्री बनेगा या राज्य मंत्री।

(केदारनाथ विधायक व वरिष्ठ पत्रकार मनोज रावत जी की कलम से)

आजकल बहस छिड़ गई है कि उत्तराखंड से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल”निशंक” को कैबिनेट और भारी भरकम महकमे – शिक्षा मंत्रालय से इस्तीफा दिलवा कर उत्तराखंड के श्री अजय भट्ट को राज्य मंत्री पद देकर उत्तराखंड की राजनीतिक ताकत को कम किया है।

पर मेरा मानना है कि कुछ सालों से केंद्र में कोई भी हुनरमंद मंत्री भी कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। केंद्र में मंत्री अब किसी काम के नही हैं सब ऊपर से कोई तय करता है। रिमोट कन्ट्रोल से मंत्रालय चल रहे हैं ।
ये मैं केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के एक बहुत ही छोटे भाग केंद्रीय विद्यालय संगठन में निशंक साहब के बिभाग के मंत्री रहते हुए उत्तराखंड के लिए उपलब्धियों का आंकलन करके कह रहा हूँ। निशंक साहब काम लेने, करवाने में और राज-काज को चलाने में माहिर हैं। उनकी प्रतिभा पर किसी को शक नही होना चाहिए। डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक” 2 साल और 40 दिन केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के कैबिनेट स्तर के मंत्री रहे ।
इस दौरान राज्य में केवल दो स्थानों – खटीमा और चंपावत में अस्थायी कैम्पस याने पहले से मौजूद किसी भवन पर केंद्रीय विद्यालय खुले। याने केंद्रीय विद्यालय संगठन ने खोलने की अनुमति और स्टाफ दिया। बाकी उत्तराखंड के कुछ जिलों में केंद्रीय विद्यालयों में चमोली के जिला मुख्यालय- गोपेश्वर, गौचर और ग्वालदम, रुद्रप्रयाग का अगस्त्यमुनि (चंद्रा पूरी), पौड़ी का श्रीनगर अस्थायी कैम्पस पर चल रहे हैं। हमारे जिले के लिए चंद्रापुरी और मेरी जानकारी में गोपेश्वर, श्रीनगर सहित और जगह में भी सभी औपचारकताएँ पूरी हैं लेकिन पिछले 2 सालों से इन विद्यालयों सहित उत्तराखंड में किसी भी केंद्रीय विद्यालय को मेरी जानकारी में भवन और स्थायी कैंपस के निर्माण के लिए बजट नही मिल पाया । (यदि किसी की जानकारी में हो तो वे लिखने की कृपा करें)। टिहरी, अगस्तमुनि(चंद्रापुरी) और लोहाघाट के केंद्रीय विद्यालयों की पत्रावलियों में तो लेशमात्र की भी कमी नहीं है।
कुमाऊं के केंद्रीय विद्यालय भी इस मामले में काफी सौभाग्यशाली हैं कि उनके पास भी अधिकांश विद्यालयों के अपने सुसज्जित भवन और कैंपस है। यदि गढ़वाल की बात करें तो एक ही कमिश्नरी होने के कारण केंद्रीय विद्यालयों के भवनों और कैंपस के मामले में देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार तीनों बाजी मार जाते हैं। इसलिए देहरादून का दूरस्थ इलाका चकराता हो या चमोली के गोपेश्वर , ग्वालदम और गोचर हो या रुद्रप्रयाग का चंद्रापुरीपुरी या पौड़ी का महत्वपूर्ण शहर श्रीनगर केंद्रीय विद्यालय के भवन और स्थाई कैंपस के मामले में देहरादून ऋषिकेश और हरिद्वार के सामने बिछड़ जाता है। यंहा सुदूर उत्तरकाशी की स्थिति बहुत अच्छी है जिले के तीनों केंद्रीय विद्यालयों के पास अपने भवन और स्थायी कैंपस हैं।
अब फिर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि, डॉ मुरली मनोहर जोशी जी (उस समय मंत्रालय का नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय था और उनकी काफी उपलब्धियां भी हैं ) के बाद उत्तराखंड से केंद्र में निशंक साहब इस बिभाग के मंत्री बने और बिभाग के छोटे से हिस्से याने केंद्रीय विद्यालयों में से किसी को भी भवन और कैंपस के लिए फूटी कौड़ी भी नही मिली क्या सिद्ध करता है ?
निसंदेह ही हमें निशंक साहब की योग्यता और क्षमता पर कोई शक नही करना चाहिए। मुझे पूरा भरोसा है कि उन्हें अपने बिभाग में काम नहीं करने दिया गया होगा या उनके हाथ बांध रखे होंगे या सूची ऊपर से आती होगी । यदि बिभाग का कैबिनेट मंत्री मंत्री अपने राज्य के और अपने मुल्क के सैनिक बहुल रुद्रप्रयाग, चमोली और पौड़ी के केंद्रीय विद्यालयों को भवन और कैंपस नही दिला पा रहा हो तो केंद्र सरकार के काम करने के तौर तरीकों पर प्रश्न चिन्ह उठाने लाजिमी हैं । (क्योंकि केंद्रीय विद्यालय सैनिकों और केंद्रीय सेवा में काम कर रहे लोगों के बच्चों के लिए ही प्रथमिकता के अधार पर खोले जाते हैं। )

इसलिए जब स्वतंत्र और पूरे मंत्री कुछ नही कर पाए तो अब भारी-भरकम मंत्रियों के नीचे आधे और “गंगलोडे वाले” आधे मंत्री जी से आशा करना बेकार ही है।
मेरी विधानसभा में केवल केंद्रीय विद्यालय था इसलिए मैंने इसी से बिभाग को समझा आप चाहें तो विश्विद्यालयों, NIT, NLU और अन्य प्रतिष्ठानों की समीक्षा कर सकते हैं कि आपको और राज्य को क्या मिला ?

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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