Sunday, July 13, 2025
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जहाँ कार्तिकेय ने ताडकासुर का वध किया….! असवाल जात कन्नार का पात और तेल का हाथ है बर्जित…?

जहाँ कार्तिकेय ने ताडकासुर का वध किया….! असवाल जात कन्नार का पात और तेल का हाथ है बर्जित…?

(मनोज इष्टवाल)

तहसील लैंसीडाउन से लगभग ४० किमी दूर घने देवदार अच्छादित जंगल के बीच में सुरम्य जल कुंडों के बीच शोभनीय स्थल ताडकेश्वर में जब आप पहुँचते हैं तो सचमुच आप लोभ सोच कुंठा भय जैसे कई शैतानों से मुक्ति पा शिब के आराध्य बन जाते हैं। पुराणों में वर्णित इस स्थान का वर्णन मिलता है कि जब दुष्ट ताड़कासुर का अत्याचार चरम पर बढ़ गया था एवं सभी देवताओं को उसे रोकने में असर्मथता के अलावा कुछ न मिला तब सब ने स्वामी कार्तिकेय से सहायता मांगी। शिब के जेष्ठ पुत्र कार्तिकेय ने घोर संग्राम के बाद ताड़कासुर को यहीं मार गिराया और इस स्थान में वास कर शिब लिंग की स्थापना की जिसे ताडकेश्वर नाम से पुकारा गया …।

इससे भी रोचक यहाँ की स्थानीय जानकारियाँ हैं। कहा जाता है कि कालान्तर में जब “अधो असवाल-अधो गढ़वाल” की परंपरा थी यानी आधा राजकाज गढ़ नरेश चलाते थे तो आधे पर असवाल जाती के थोकदारों का अधिपत्य था ..और कुछ असवाल थोकदारों का अत्याचार भी चरम पर था। एक बार पीड़ा गॉव जोकि इगर गॉव के नीचे है का थोकदार तेज गर्मी में १२ बजे खेत में हल जोत रहा था और बैलों को बुरी तरह पीट रहा था। जिससे एक बैल खेत में गिर गया दूर खड़े ताडकासुर नामक ऋषि के भेष में साक्षात भगवान् ने थोकदार को आवाज लगाई और कहा कि इस तरह निरीह पशुओं पर अत्याचार मत कर …आग बबूला थोकदार असवाल ताडकेश्वर के पीछे भागा.. कहते हैं थोकदार को देखते हुए ताडकेश्वर ने सांप का रूप धारण कर लिया  और कन्नार (साल वृक्ष) के सूखे पत्तों के नीचे रेंगने लगा।  थोकदार असवाल ने उन्हें देख लिया और भेमल की सोटी से उन्हें पीट-पीट कर अधमरा कर डाला। तभी से असवाल थोकदार ने घोषणा कर डाली कि आज के बाद मेरा कोई भी वंशज हल में लगे सांप को देखकर हल बैल नहीं छोड़ेगा।

वही ताडकेश्वर भगवान् ने भी श्राप दिया कि मेरे क्षेत्र में असवाल जात, कन्नार का पात और तेल का हाथ वर्जित है। आज भी लोग इस अवधारणा को मानते हैं और जब भी इस धाम की यात्रा करते हैं न तेल की बनी रोटी पराठे लेकर जाते हैं और न सुगन्धित इत्र लगाकर..! और न ही कोई साल वृक्ष के पत्ते को ही यहाँ ले जाता है।
कहते हैं कि कालांतर में नगर गॉव से मिर्चोड़ा गॉव बसे एक थोकदार असवाल डंगडू सेठ ने घोड़े में चढ़कर यहाँ की यात्रा की और ताडकेश्वर को चुनौती दे डाली कि उसके वश में है तो वह उखाड़ ले मेरा जो उखाड़ सकता है, लेकिन जैसे ही उसने यहाँ प्रवेश किया देवदार की एक मोटी टहनी उनमें गिर गई और उन्हें घायल अवस्था में वहां से लाया गया कुछ समय पश्चात उनके प्राण पखेरू उड़ गए….अब यह कहावत कितनी चरित्तार्थ है कहा नहीं जा सकता लेकिन यह सत्य है जो भी यहाँ इस देवता की परीक्षा लेने पहुंचा उसका अनिष्ट ही हुआ।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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