पिछले संस्मरण में मैं आपको बता ही चुका हूं कि अपने इलाज के लिए उत्तराखण्ड आये नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री जोकि उस समय बीजापुर हाउस के में ठहरे थे उन्हें 25 अप्रैल 2015 को आये नेपाल के भूकम्प के बारे में मैने ही सबसे पहले उनका नेपाल 1 के लिए साक्षात्कार किया था। उन्होंने नेपाल में कहां क्या हुआ मेरे बताने के बाद ही जानकारी ली थी। नेपाल 1 में मेरी खबर ब्रेक होने के बाद बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा-“भूकंप का केंद्र नेपाल की राजधानी काठमांडू से 80 किलोमीटर दूर लमजुंग में है. नेपाल में पहला झटका 11 बजे करीब एक मिनट तक महसूस किया गया।”
ज्ञात हो कि 25 अप्रैल 2015 का आये 2015 नेपाल भूकम्प क्षणिक परिणाम परिमाप(रिएक्टर पैमाना) पर 7.8 या 8.1 तीव्रता का भूकम्प था जो 25 अप्रैल 2015 सुबह 11:56 स्थानीय समय में घटित हुआ था। भूकम्प का मुख्य केेंद्र लामजुंग, नेपाल से 38 कि॰मी॰ दूर था। भूकम्प के अधि केन्द्र की गहराई लगभग 15 कि॰मी॰ नीचे थी। बचाव और राहत कार्य जारी हैं। भूकंप में कई महत्वपूर्ण प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर व अन्य इमारतें भी नष्ट हुईं हैं। 1934 के बाद पहली बार नेपाल में इतना प्रचंड तीव्रता वाला भूकम्प आया है जिससे 8019 से अधिक मौते हुई हैं और लगभग 18019 से अधिक घायल हुए हैं।
हमारी टीम द्वारा 29 अप्रैल 2015 को उत्तराखंड के गढ़ी कैंट देहरादून में अपनी सहेली फाउंडेशन के बैनर तले एक बैठक की व टीम ने मुझे अपने साथ नेपाल ले जाने का निर्णय लिया। इसके पीछे टीम की शायद यह सोच थी कि मैं उत्तराखण्ड से नेपाल 1 का स्टेट हेड हूँ व मेरा लगातार नेपाल आना जाना है। अपनी सहेली फाउंडेशन व हरिद्वार के पंडित बसन्त राज जी द्वारा राहत सामग्री जोड़ी गयी जो एक ट्रक व एक गाड़ी भरकर थी। हमने 5 मई 2015 को देहरादून से नेपाल के लिए राहत सामग्री के साथ सभी कागजी फॉर्मलटी पूरी करके कूच किया। हरिद्वार से बसन्त जी द्वारा जोड़ी गयी राहत सामग्री भी ट्रक में लोड करवाई गई और हमारा काफिला को हरिद्वार से रवाना होकर उधम सिंह नगर पहुंचा। यहीं रात्रि विश्राम कर हम अगले दिन नेपाल महेंद्र नगर में दाखिल हुए। जहां हमने अपने नेपाल के सिम खरीदे और नेपाल आरटीओ से आगे की यात्रा के कागज तैयार करवाये।
महेंद्र नगर नेपाल चाय के खोके की दुकान…से लेकर 128 किमी. दूर तराई क्षेत्र का अंतिम पड़ाव चिसापानी तक का अपडेट..!
(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 7 मई 2015)
नेपाल के तराई में काली नदी से लेकर कर्णाली नदी तक लगभग छोटी बड़ी 25 नदियां हैं। यानि 128 किमी. की दूरी पर पानी का अपूर्व भण्डार लेकिन उसका इस्तेमाल न के बराबर है। तराई के इस लम्बे चौड़े फैले मैदानों में हर जगह केले की फसल लहलहाती नजर आएगी..लेकिन इतनी उपजाऊ जमीन में बिना योजनाओं के अभाव में राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों छोरों पर पसरे इन गॉवों के लगभग 90 प्रतिशत घर कच्चे हैं जो अपनी आर्थिकी की पूरी कहानी बयान करते नजर आ रहे हैं।
वहीं यहाँ कर्णाली नदी जिसका प्रभाव गंगा नदी जैसा है को अगर छोड़ दिया जाय तो बाकी सभी नदियों में एक भी पत्थर नहीं दिखाई देगा..। जो साबित करता है कि यह जमीन कितनी उपजाऊ है..सचमुच अगर इसमें सही प्लानिंग की जाय तो यह धरा सोना उगलना शुरू कर दे..।
नेपाल का यह तराई क्षेत्र बेहद गरम जरूर है लेकिन चिसापानी में अब आप पहुँचते हैं और कर्णाली नदी के हिलोरों की ठंडक आपको शीतलता देती है तो बेहद शुकुन मिलता है।
घोडाघोड़ी ताल कहें या झील जोकि सुखड नामक छोटे से बाजार में वहा आपको कमल खिले मिलेंगे। स्वास्थ्य खराब हो तो घोडाघोड़ी अस्पताल में आपको फर्स्ट ऐड मिल जायेगी।
अगर आप शुद्ध शाकाहारी हैं तो चिस्सापानी में सिर्फ मैगी खाकर गुजारा करें और यदि नॉन वेज वाले तो समझिये आपकी जीब ने ऐसा स्वाद कभी नही लिया होगा क्योंकि चिसापानी का मछली भात खाने के बाद आप अब तक खाई सभी किस्म की स्वादिष्ट मछली का स्वाद भूल जाएंगे यहां की मछली बेहद स्वादिष्ट और लजीज हैं।
कर्णाली नदी पर बना पुल 500 मीटर लम्बा और बेहद वैज्ञानिक तकनीक से बना हुआ है। जापान की कम्पनी द्वारा निर्मित इस पुल के पार पहुचने के बाद आप मैदानी भाग छोड़कर धीरे धीरे पहाड़ी क्षेत्र की तलहटी में प्रवेश करते हैं. यहाँ के जंगल साबित करते हैं कि यहाँ ग्राम स्तर की वन पंचायतें किस तरह जंगलों को सुरक्षित रखे हुए हैं। जगह जगह नेपाल भारत मैत्री सम्बन्धों के बड़े बड़े बोल्ड साबित कर रहे हैं कि इन कुछ बर्षों में दोनों देशों के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता बड़ी है.
सफ़र जारी है टुकड़ों में जानकारी देता रहूँगा..आप अपनी उत्सुकता बनाये रखें..आपको निराश नहीं होने दूंगा।
नेपाल टूर क्रमश:…..कर्णाली-चिसापानी से चन्दरौटा कपिलवस्तु तक मधेश का फैला विराट साम्राज्य…!
सचमुच यह मन को मोह देने वाला बोर्ड था। आखिर नेपाल-भारत मैत्री सम्बन्धों का एक बहुत बड़ा उदाहरण हमें दिखने को मिल ही गया। कर्णाली नदी के छोर में लगे इस बोर्ड पर नेपाल-इंडो कोऑपरेशन पढ़कर सीना खुशी से फूला न समाया।
चिसापानी का 500 मीटर लम्बा पुल पार करते ही हम तराई की लोअर बेल्ट छोड़कर धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। मधेश का यह क्षेत्र जितना अपनी हरियाली और जंगलों के लिए मशहूर है उतना ही गर्म भी है। बर्दिया में प्रवेश करते ही आपके आस-पास विखरा राष्ट्रीय चन्दन निकुंज का लुत्फ़ उठाया जा सकता है जहाँ नेपाल सरकार व ग्रामीण बन पंचायतों द्वारा चन्दन वृक्षों के लकदक हरित क्षेत्र में हम प्रवेश करते हैं. शुक्र है कि नेपाल में हिन्दुस्तान जैसा चन्दन तस्कर वीरप्पन नहीं पैदा हुआ।
मुझे नेपाल के लगभग हर पांचवे माइल स्टोन पर नेपाल सरकार की पुलिस और फ़ौज की चेकपोस्ट दिखने को मिली.. परेशानी तो होती रही कि बार-बार वही कागजात वही इंट्री वही सवाल जवाब हर एक पुलिस और फौजी नाका में सुनने और बोलने को मिले लेकिन किसी भी पोस्ट पर किसी भी पुलिसकर्मी या फौजी अधिकारी या कर्मचारी द्वारा अभद्र व्यव्हार नहीं दिखा। यह बेहद सुखद अनुभव रहा कि अगर आपके कागजात कम्प्लीट हैं तो आपको हर जगह यहाँ की फौज और पुलिस का सुंदर व्यवहार दिखने को मिलेगा। काश…कि उत्तराखण्ड या भारत में भी ऐसी स्वच्छ व्यवस्था होती। केदारनाथ आपदा से पूर्व हर यात्रा मार्ग पर अगर यही एंट्री रहती तो हमें भी पता होता कि किस गाडी में कितने लोग आये कितने वापस गए।व्यवहारिक दृष्टिकोण को अगर देखा तो आम जन के।
दिलोदिमाग में हम भारतीयों के प्रति मधेश में काफी सम्मान है और मोदी सरकार द्वारा किये गए प्रयासों की सराहना..! एक आध प्रकरण जरूर ऐसे हैं। जिनसे यह लगता है कि फेसबुक और ट्वीटर के माध्यम से यह भरम पैदा किया गया क़ि भारत की फ़ौज ने त्रिभुवन एअरपोर्ट पर कब्जा जमाकर वहां के सिक्योरिटी को हटाकर अपना सेक्योरिटी सिस्टम लागू कर दिया व किसी भी विदेशी जहाज को नहीं उतरने दिया। यही नहीं यह भी आरोप रहा कि भूकम्प में सहायता देने की जगह भारत ने सबसे पहले अपने नागरिकों को निकाला। खैर यह आरोप अगर है तो वह हर देश पर लगता क्योंकि हर देश पहले अपने नागरिकों की चिंता करता। इसलिए त्रिभुवन एअरपोर्ट वाला आरोप गले नहीं उतरता।
यहां के नागरिकों से बात करने पर इस बात का आभास तो हुआ कि यहाँ आ रही विश्व भर से खरबों रुपये की सहायता यहां के नव निर्माण व जनमानस पर ईमानदारी से खर्च होगी इसमें सभी को संदेह है क्योंकि बीस बर्ष पूर्व यहाँ का गरीब आज भी वैसा ही गरीब है जबकि अमीर दिनोदिन और अमीर..।
फिलहाल लगभग दो बजे दोपहर हमारा ट्रक औंरि बर्दिया में खड़ा हो गया। मजबूरी यह थी क़ि उसका एक टायर फूल गया था। यहाँ हमने लगभग तीन घण्टे बर्बाद किये। ईमानदारी से कहूँ तो पूरे सफर में कुछ न कुछ ऐसा तो होता रहा जो नहीं होना चाहिए था. यात्रा के पहले दिन हमारी रसद से भरे ट्रक को काशीपुर कुमाऊँ में एक ट्रक ट्रॉली टक्कर मार गया और उसका आगे का। शीशा तोड़कर चम्पत हो गयी. तीन घण्टे हमें ट्रक का इन्तजार रुद्रपुर में करना पड़ा जहाँ कई राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित रा.प्रा. विद्यालय में प्रधानाध्यपक के रूप में कार्यरत मन्जू देवी ने हमारी आवभगत की. हम उनके कृतज्ञ हैं। मेरा सोचना है कि कोई भी सम्मान यूँही नहीं मिल जाता..मंजू देवी की कार्यप्रणाली है ही ऐसी कि कोई भी प्रभावित हुए बगैर नही रह सकता।
कर्णाली-चिसापानी के जिस होटल में हम खाना खा रहे थे उसका गैस पाइप फट गया था, जिससे लगा कहीं न कहीं कुछ ऐसा तो है जो ठीक नहीं है..। औंरी से निकलकर जैसे हम लक्ष्मणा पहुंचे टीम लीड कर रही पूजा सुब्बा उमा उपाध्याय ने ट्रक व गाडी रुकवाई ..। नारियल खरीदा और पण्डित वसन्त राज ने पूजा कर उसे ट्रक के आगे तोड़ा…तब से अब तक यात्रा निर्विवाद है।
चप्पर गौड़ी कोहलपुर पहुंचकर ट्रक ने अपनी टूटी लाइट जोड़ी मैंने वह के छोटे से टेम्पो का आनन्द लिया और यहाँ काफल भी खाये.? काफी रसीले और मिठास भरे। काफिला बढ़ता रहा ..राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों ओर फैला डेन्स फोरेट का साम्राज्य अब ज्यों-ज्यों अन्धेरा बढ़ता डरावना नजर आने लगा। लगभग 8:30 बजे हम अगैय्या पहुंचे। अगैय्या बांके जिले में है जो राष्ट्रीय राजमार्ग के दांये हाथ में होटल व्यव्साय के रूप में प्रसिद्ध है। यहां भी हर होटल में राप्ती नदी की मछलियों का भोज निर्मित था. पण्डित बसंत राज जी के लिए एडजस्ट करना टफ़ था उन्होंने सिर्फ दूध पीकर रात्रिकाल का गुजारा किया. मुझ जैसा उत्तराखण्डी संस्कारों के पंडत हर वातावरण में पारंगत है अत: मेरे लिए कोई नयी बात नही थी।
यहाँ सारंगी पर शिब गन्दर्भ निवासी तुलसीपुर दोहरी लोकगीत और नेपाली लोकगीतों की ऐसी शमां बांधे था कि क्या कहने..कहा जाता है कि संगीत की कोई ज़ात नहीं होती उसकी रिदम में इतनी मिठास थी कि उसने यह भुला ही दिया कि मैं पराये देश में हूँ। मेरे पैरों ने थकान क़ी जमकर खुन्नस निकाली और मैंने वहां मजमा लगा दिया। मेरी देखा-देखी में टीम के और सदस्य भी खूब थिरके। बसन्त जी तो शिब गन्दर्भ के साथ राग अलापने लगे। उन्होंने भजन सन्ध्या लगा दी।
अगैय्या से हम ठीक 10:08 बजे हमने विदाई ली लेकिन विदाई के समय ऐसा लगा जैसे हम इस माहौल में पहले से रहे हों। सबने हाथ मिलाकर हाथ जोड़कर विदा किया रात्रि 12 बजे हम चंद्रौरोटि कपिलवस्तु के पुंगणि होटल में रुके..!