राजा सूर्यसेन की नगरी चकरात़ा का का इतिहास।
(मनोज इष्टवाल)
पूर्व में मुझे सिर्फ यही जानकारी थी कि चकराता रूडीया सयाणा (रुडिया जोशी ठाणा गॉव) द्वारा अंग्रेजों को अप्रोच किया गया था और तब चकराता शहर की बसागत ब्रिटिश आर्मी के सीक्रेट कैम्प के रूप में हुई ।
अब जब इतिहास के पन्ने पलटे तो कुछ आश्चर्यचकित
कर देने वाली बातें सामने आई हैं। एकचक्रा नगरी के नाम से विख्यात चकराता कभी मत्स्य देश कहलाया तो कभी त्रिगत। इसे कीचक और पंचाल जनपदों से लगा हुआ क्षेत्र भी कहा गया। आज भी कट्टा पत्थर क्षेत्र जोकि विकास नगर यमुनोत्री मोटर मार्ग पर विकास नगर से लगभग १० किलोमीटर दूरी पर स्थित है, वही कीचक का क्षेत्र माना जाता था । गुप्तवास के दौरान पांडव जब राजा विराट के यहाँ रहते थे तब भीम ने यहीं कीचक का वध किया था। आज भी पांडवों द्वारा कट्टा पत्थर में निर्मित मंदिर सड़क के किनारे ही विद्धमान है।
महाभारत के आदिपर्व के अध्याय ६१ और १५५ में लिखा गया है कि पांडव माता सहित वारणावत्त के लाक्षागृह से गंगा पारकर मत्स्य, त्रिगत, पंचाल,कीचक जनपदों से होकर एकचक्रा नगरी आये तथा अल्पकाल यहाँ रहे। यही नहीं आदिपर्व के अध्याय १५९ गीता में लिखा है कि एकचक्रा नगर के समीप यमुनातटवर्ती गहन वन क्षेत्र है।
अल्लाड़नाथ (अल्लाटनाथ) सूरी के निर्णयामृत में भी एकचक्रा नगरी का उल्लेख है। यह ग्रन्थ उन्होंने यमुना तट पर एकचक्रपुरी के भाहूवाण (बाहूवाण) राजा सूर्यसेन की आज्ञा से लिखा था। (डॉ. यशवंत कटोच भारतवर्षीय ऐतिहासिक स्थल कोष पृष्ठ ३८)
इसका वर्णन है कि “भानुसुता यमुना एकचक्रा के उपखंड में बहती है। (श्लोक १८ निर्णयामृत)
डॉ. भण्डारकर तथा काने “बाहुवाण” शब्द को चाहूवाण के लिए कहा प्रयुक्त मानते हैं। (कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ डॉ. भण्डारकर, खंड २ पृष्ठ १४३ धर्मशास्त्र का इतिहास, त्रि. भा. पृष्ठ १५६८) ग्रन्थ में बाहुवाण वंश के राजा उद्धरण के प्रसंग में ढिल्ली नगरी का उल्लेख है (श्लोक ९-१०) भी समकालीन वंश के काल निर्धारण में महत्वपूर्ण आधार है। इससे अनुमान होता है कि १३वीं-१४वीं शती ई. के मध्य चकराता क्षेत्र में बाहूवाणों का अधिपत्य था। तथा महाभारत कालीन नामक एकचक्रा इसकाल में भी प्रचलित था।
मित्रों मुझे भी अब यह लगता है कि भाहुवाण शब्द जब कलम से लिखा गया होगा तब यह ‘भा’ नहीं बल्कि ‘चा’ रहा होगा जिसे प्रिंट करते समय भूलवश भाहुवाण और बाद में बाहूवाण लिखा गया होगा, क्योंकि इस क्षेत्र में चौहान जाति का ही अधिपत्य दिखाई देता है।
बाहुबाण या चाहूवाण?
बाहूबाण जाति के हैं जौनसार-बावर के चौहान..!
विभिन्न हिन्दू ग्रंथों व पुराणों से मिली जानकारी से पता चला है कि अपने को आर्यों व मंगोलियन व्रीड से जोड़ने वाले जौनसारी-बाउरी समाज के चौहान मुख्यत: बाहुबाण हैं। जिसका शाब्दिक बाहुबली या फिर धनुष विद्या में निपुण है। अब प्रश्न यह उठता है कि पांडवकाल में चकराता एकचक्रानगरी के रूप में जानी जाती थी। जिसके राजा सूर्यसेन हुआ करते थे। तो क्या यहाँ के आदिपुरुष पांडव वंशज थे या फिर राजा सूर्यसेन के संतति..?
धरम-पुराणों के आधार पर जो जानकारी प्राप्त होती है, उसके अनुसार “पांडव माता सहित बर्नावत के लाक्षागृह से यमुना पार कर मत्स्य, त्रिगर्त, पांचाल एवं कीचक जनपदों से होकर यहाँ आये व अल्पकाल रहे। (आदि.अ. पृष्ठ 61,155)
धरम-पुराणों के आधार पर जो जानकारी प्राप्त होती है, उसके अनुसार “पांडव माता सहित बर्नावत के लाक्षागृह से यमुना पार कर मत्स्य, त्रिगर्त, पांचाल एवं कीचक जनपदों से होकर यहाँ आये व अल्पकाल रहे। (आदि.अ. पृष्ठ 61,155)
एकाचक्रा नगर के समीप ही यमुनातटवर्ती गहन वन क्षेत्र का उल्लेख (आदि.अ. 159 गीता) वहीँ अल्लाटनाथ (अल्लाडनाथ) के निर्णयामृत में भी “एकचक्रा” का उल्लेख है यह ग्रन्थ उसने एकचक्रपुरी के बाहुबाण राजा सूर्यसेन की आज्ञा से लिखा था।
इसका वर्णन यह है कि भानुसुता यमुना एकचक्रा के उत्कंठ में बहती है । (श्लोक 18) इस नगर की स्थिति निर्धारणार्थ महत्वपूर्ण आधार है डॉ. भंडारकर व काणे की लिखी पुस्तक। जिसमें उन्होंने बाहुबाण शब्द को चाहुवांण से जोड़ते हुए बाहूबाण को चाहूवाण माना है.व इसे चाहुवाण के लिए ही प्रयुक्त किया है। (दे.क्रमश: कलेक्टेड वर्क्स ऑन डॉ. भंडारकर,1932, पृष्ठ 983) वहीँ धर्मशास्त्र का इतिहास द.भाग पृष्ठ 1568 ग्रन्थ में बाहूबाण वंश के राजा उद्धरण के प्रसंग में ढिल्ली नगरी का उल्लेख (श्लोक 910) भी समकालीन वंश के काल निर्धारण का महत्वपूर्ण आधार है। (डॉ. यशवंत कटोच की पुस्तक भारतबर्षीय ऐतिहासिक स्थलकोष पृष्ठ संख्या – 38) इन सभी तथ्यों से अनुमान होता है कि 13वीं व 14 वीं शती इश्वी के मध्य चकराता क्षेत्र में बाहुबाणो था, तथा महाभारत कालीन नाम एकचक्रा इस काल में भी प्रचलित था (मनोज इष्टवाल की पुस्तक (पांडुलिपि) “जौनसार बावर संस्कृति एवं समाजिक परिवेश का एक अंश) तथापि इस काल की पुष्टि किसी पुरातत्व सामग्री से नहीं हुई ।
(दर्शन परिचक्र)
हो सकता है निम्नवत शिलालेख इसका पुष्ट प्रमाण हो लेकिन इसकी भाषाशैली इतनी गूढ़ है कि इसे कोई पुरातत्वविद अभी तक पढ़ नहीं पाया है।
हो सकता है निम्नवत शिलालेख इसका पुष्ट प्रमाण हो लेकिन इसकी भाषाशैली इतनी गूढ़ है कि इसे कोई पुरातत्वविद अभी तक पढ़ नहीं पाया है।
(मित्रों यह पोस्ट बहुत मेहनत से जुटाइ है इसलिए अनुरोध है कि अगर कहीं शेयर भी करें तो मेरा नाम जरूर लिखियेगा क्योंकि यह लेख मेरी आगामी पुस्तक जौनसार बावर जनजाति (संस्कृति एवं सामाजिक परिवेश) से जुडा हुआ है..)