गतांक से आगे……
मथाणा गाँव व मालिनी के आर-पार के गांव व प्रसिद्ध स्थल!
(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 07 फरवरी 2021)
लगभग 5 किमी. के दायरे में फैले मथाणा गाँव में 7 तोक (तल्ला मथाणा, बिचला मथाणा, मल्ला मथाणा, लणगाँव, क्यार्क, रबड़ा और ग्वाडी) हैं! मथाणा गाँव के बांयें छोर पर एक ओर देवीधार (देवी डांडा) है तो दूसरी ओर शून्य शिखर! फिर आते हैं बल्ली-कांडई, इडा मल्ला-इडा तल्ला, ग्वीराला, भरखिल, छोया धार इत्यादि गाँव! दाहिनी ओर सौंटियाल धार, गहड़, धरगाँव, रणेसा, असवालगढ़, चौंडली व मैती काटल! वहीँ मालिनी नदी पार दिखने वाले स्थलों व गाँवों में महाबगढ़, भरपूर (भरतपुर), कंडियालगांव, चुन्ना महेडा, स्योपाणी, मरणखेत,पोखरीधार, सिमलना तल्ला, सिमलना बिचला, सिमलना मल्ला और शीर्ष पर पोखरी (पोखरीखेत), खरगढ़ी रोला, कोढ़ीधार, ग्वीलरी पड़ाव, खरगढ़ी, पत्थरैकी बसी (विश्वमित्र गुफा, बिस्तर-काटल, उल्याल, तिमल्याल, धूर- केष्ट, भगद्यो गढ़, जुनियागढ़, झंडी गढ़, चौंडली रौल, राधापोखरी इत्यादि! मालिनी के दोनों तटों पर बसे गाँव व बिशेष स्थान मथाणा गाँव से यही दिखाई देते हैं!
जब डॉ. शिब प्रसाद डबराल “चारण” के पोते अभिषेक से हुई मुलाक़ात!
वो छरहरे बदल का सौम्य सा दिखने वाला युवा हाथ में सोनी 7एस कैमरा लिए मेरे करीब तब आया जब हम मरणखेत से लगभग एक किमी. आगे मरणखेत पुल के पास थे! आपसी परिचय हुआ तो पता चला वह अभिषेक डबराल हैं व उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध इतिहासकार, तंत्र ज्योतिषी, भूगोलविद व आध्यात्मिक गुणों की खान डॉ शिब प्रसाद डबराल “चारण” जी के पोते हैं! स्वाभाविक था कि इस युवा के प्रति मेरा भरपूर स्नेह बढ़ता! मैंने अभिषेक को अपनी व उनके दादाजी की कई मुलाकातों की बातें बताई और यह भी बताया कि मैंने उनके हाथ से परोसी गयी खिचड़ी भी उनके गाँव की तिबारी में बैठकर खाई! अभिषेक के लिए यह काफी प्रसन्न कर देने वाले इत्तेफाक थे!
टुकड़ों में बंटते छंटते गए ट्रैकर्स!
चूंकि जिला परिषद द्वारा 1960 से लगातार बनाया जाने वाला चौकीघाटा (कण्वाश्रम) – मथाणा पैदल मार्ग विगत कई बर्षों से अब नहीं बनाया जा रहा था क्योंकि उसमें आवाजाही नामात्र रह गयी थी, उसका वर्तमान में बजट आता भी है या फिर कागजों के बंडलों में दफन हो जाता है यह कह पाना अँधेरे में तीर मारने जैसा है! लेकिन यह जिला परिषद् का रास्ता अब मात्र अपनी गवाही देने अपने वजूद की परछाई छोड़ने के लिए कहीं कहीं पर जरुर अपनी मौजूदगी दिखा रहा है! पूरा रास्ता भयंकर जंगल में तब्दील था इसलिए हमने मालन नदी के साथ साथ नीचे उतरने की सोची! ग्रामीणों के हिसाब से माने तो उनके लिए यह रास्ता मात्र 8 किमी. था जिसे वे डेढ़ से दो घंटे में पूरा कर दिया करते थे लेकिन हमारे लिए यह रास्ता नापना एक नया अनुभव था, बिशेषकर तब जब उसमें अनट्रेंड ट्रैकर्स शामिल हों! मुझे यह कहते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है कि सभी इस ट्रैकिंग के रहस्य व रोमांच का भरपूर आनंद ले रहे थे! इस बात से बेखबर की यह क्षेत्र हाथियों का कोरिडोर है! अभी हमें मालन नदी के साथ साथ कितने किमी. नीचे उतरना था यह कतई जानकारी नहीं थी! हम पसीना बहा रहे थे लेकिन बहुत आनन्दित होकर पूरी टीम एक जूनून के साथ अपने अपने धड़ों में आगे बढ़ रही थी!
पूरण भाई….ओs पूरण भाई…..!
यह सचमुच बेहतरीन था! सच कहूँ तो मेरे लिए बहुत संतोषप्रद भी क्योंकि ऐसी बुलंद आवाज की यहाँ जरुरत थी! वह जरुरत इसलिए भी थी कि पूरे नदी के छोरों पर हाथियों के मल व पैरों के निशाँ मौजूद थे! यह आवाज हाक़ा लगाने जैसी ही बुलंद थी! मैं अपने बीच के उस ट्रैकर्स का नाम तो नहीं जान सका लेकिन उस पूरण भाई को जरुर देखना चाहता था जिसके लिए यह आवाज बार-बार बुलंद हो रही थी! मैंने पूछा भी कि ये पूरण भाई हैं कौन…! तो एक व्यक्ति मुस्कराते बोले- वह पीछे आ रहे हैं! मुझे आश्चर्य हुआ कि अभी भी कोई पीछे हैं क्या..? लेकिन बाद में पता चला कि वही व्यक्ति पूरण भाई हैं जिन्हें मैंने पूछा था! सचमुच यात्रा के ऐसे दौर होने अति आवश्यक हैं!
मरणखेत से जीएमवीएन बंगला कण्वाश्रम!
यकीन मानिए हमने मालन नदी को लगभग 62 बार आर-पार किया! कभी 10 मीटर दूरी के बाद तो कभी 50 से 100 मीटर दूरी के बाद! कई नदी के बीच काई से सन्ने पत्थरों पर फिसले तो कई जूते गीले न हों उन्हें बचाने के चक्कर में कमर-कमर तक गीले हो गए! हमने मरणखेत से दोबाटा (लालपुल), खरगढ़ी रौला, ग्वीराला रौला, इडा छंछाडी, मक्वा-ठाट, आमडाली, ठंडू पाणी नामक विभिन्न स्थलों से आगे बढकर लालपुल पहुंचना था जहाँ से 3 किमी. दूरी पर जीएमवीएन का बंगला है! लेकिन ये सभी नाम सिर्फ याद के लिए रह गए क्योंकि ये वो स्थान हैं जो जिला परिषद द्वारा बनाये गए पैदल रास्ते के पड़ाव कहे जाते हैं! हम तो बस नदी के बहाव के साथ आगे बढ़ते रहे और आगे की सीटी बीच व बीच की सीटी पीछे वालों का मार्गदर्शन करती हुई एक अनजानी सी राह बनकर हमारे दल का नेतृत्व कर रही थी! हमारी अडवांस टीम इतनी अडवांस चल दी थी कि उनके हमें दर्शन होने भी दुर्लभ हो गए थे! उनके साथ उनका दिशा निर्देश करने वाले मथाणा गाँव के व्यक्ति जो थे जिन्हें हम गाइड कह सकते हैं!