गतांक से आगे…
मरणखेत से लाइव व अशुभ समाचार का मिलना।
(मनोज इष्टवाल 07 फरवरी 2021)
लगभग 11:28 मिनट पर हम मरणखेत पहुंचे! जहाँ हमसे आगे वाला दल हमारा इन्तजार कर रहा था व कुछ पीछे छूटे हुए लोगों का हम इन्तजार कर रहे थे! मैं मालिनी नदी का आचमन लिए और नदी से सबकी सफल यात्रा हेतु प्रार्थना की! अब तक ज्यादात्तर अपने फोटोज व सेल्फी में व्यस्त थे! उधर अधिवक्ता अमित सजवाण से मैंने पूछा- असवाल जी व सुमित जी कहाँ हैं? तो पास ही खड़े एक असवाल जी बोले- यहीं हैं सर..! अमित बोले- अरे आप नहीं यहाँ रतन असवाल जी की बात हो रही है! पता चला कि उन्होंने गाँव से दूसरा रास्ता पकड़ लिया और वे रास्ता भटक गए हैं! अमित सज्वान के चेहरे पर चिंता की लकीर थी! मैं बोला- निश्चिन्त रहिये सजवाण जी वे दोनों ही जाने-माने ट्रैकर्स हैं उनकी चिंता करने जैसी बात नहीं है! फिर भी अमित सजवाण जी के चेहरे पर जो भाव थे वह उन्हें परेशान जरुर किये हुए थे!
कुछ ट्रैकर्स की शिकायत थी कि उनके नाम सही से नहीं लिखे हुए हैं इसलिए मैंने डायरी पेन निकालकर उन्हें दूरस्थ किया और फिर फेसबुक लाइव कर अपनी यात्रा का शुभारम्भ शुरू किया! इस दौरान मित्र उदित घिल्डियाल के लगातार कॉल आते रहे तो लगा जरुर कोई बात है इसलिए लाइव छोड़कर उनका फोन पिक किया! यह घटना लगभग 11:44 मिनट की है! उन्होंने कहा ऋषिगंगा में फ्लड आ गया है व बहुत से स्थान तबाह हो गए हैं कई लोग लापता हैं और पानी बहुत तेजी के साथ तपोवन की तरफ बढ़ रहा है! सुनने में आ रहा है कि ऋषिगंगा के शीर्ष में स्थित कोई ग्लेशियर टूट गया है इसलिए आप लोग जल्दी-जल्दी अपनी यात्रा समाप्त करो! यह केदार आपदा जैसी भंयकर तबाही है! यह घटना वास्तव में मन व्यथित करने वाली थी! अब तक हम काफी नीचे उतर गए थे इसलिए यात्रा समाप्त करना मूर्खता लगी।
आखिर यह अशुभ घटना किसे सुनाऊँ इस उहापोह में लगा रहा! अमित आगे निकल चुके थे क्योंकि उन्हें रतन सिंह असवाल व सुमित की तलाश थी! वह दल का नेतृत्व किस किस को सौंप गये यह समझ पाना मेरे लिए बेहद बिषम था! पीछे मुड़कर देखता हूँ तो नवयुवक नवयुवतियां व ट्रैकर्स पक्षियों की तरह चहचहाते पानी व पत्थरों से अटखेलियाँ खेलते अपने सफर के लिए आगे बढ़ रहे थे! वे सभी इस बात से बिल्कुल अंजान थे कि चमोली गढ़वाल में आपदा ने अपना तांडव दिखा दिया है! यहाँ मुझे ही धैर्य से काम लेना था क्योंकि अब चाहकर भी यह यात्रा नहीं रोकी जा सकती थी! उदित को मुझे बोलना पड़ा कि अब हम कण्वाश्रम कोटद्वार के करीब हैं इसलिए अब वापस जाना ठीक नहीं! उदित ने एक समझदारी का काम किया कि उन्होंने मुझे निर्देश दिए कि अब आगे कोशिश करना लाइव मत करना व लाइव में ना मुख्यमंत्री की प्रशंसा करना और न जिलाधिकारी की, क्योंकि यहाँ माहौल गमगीन है और ऐसे में लोग बहाना ढूंढते रहते हैं!
तीन हिस्सों में बंटी टीम….! उहापोह की स्थिति!
यह मुझ जैसे ट्रैकर्स के लिए सबसे उहापोह की स्थिति थी क्योंकि मैं जानता था कि यह ट्रैक बेहद रोमांचक होने के साथ साथ खतरों भरा भी है! यह कभी भी कोई भी अकस्मात घटना हो सकती है! अब कौन किसकी डायरेक्शन में आगे बढेगा यह कहना बड़ा मुश्किल था क्योंकि अमित सजवाण की एडवांस टीम के सदस्य मिडिल टीम से कम से आधा किमी की दूरी व पीछे वाली टीम से लगभग एक से सवा किमी. की दूरी बनाकर आगे बढ़ रही थी! चिंता यह नहीं थी कि वह ज्यादा आगे थी बल्कि चिंता यह थी कि जो सबसे पीछे थे उनमें बुजुर्ग व बच्चे ज्यादा शामिल थे जिन्हें ऐसे स्थलों पर चलने की आदत नहीं थी व वे नदी के बहाव के साथ कभी नदी के इस पार कभी उस पार होते हुए आगे बढ़ रहे थे! पीछे की टीम के नवयुवक अभी भी पिकनिक वाले हिसाब से आगे बढ़ रहे थे जबकि उम्रदराजों को मेरी तरह वर्मा जी की चिंता थी जो इस साहसिक यात्रा में हमारे साथ जुड़े थे! एक लम्बी सीटी सुनाई दी तो उस दिशा में पलटकर देखा! अमित सजवाण सबको जल्दी जल्दी चलने को कह रहे थे! मैंने उन्हें व उनकी टीम को हाथ उठाकर रुकने का इशारा किया! वे रुके तो मैंने उनके कान में भी ऋषिगंगा में आये फ्लड की जानकारी डाल दी! उन्होंने उसे लगभग अनसुना सा कर दिया क्योंकि उनके लिए महत्वपूर्ण शायद रतन सिंह असवाल व सुमित कार्की थे जो अभी तक टीम में नहीं मिले थे! यह चिंता भी लाजिम थी! उनकी अडवांस टीम कुछ देर हमारे साथ आगे बढ़ी और नदी किनारे गुफा तक साथ साथ चलते फिर आखों से ओझल हो गयी थी! मुझे बार बार पीछे मुड़ता देख श्रीमती सजवाण शायद वस्तुस्थिति भांप गयी थी इसलिए उन्होंने अपने सहेलियों का साथ छोड़ मिडिल टीम के साथ चलना शुरू कर दिया था!
मेरे लिए यह कठिन घड़ी से कम नहीं थी क्योंकि जिन रास्तों पर मैं 1992 में इस ट्रैक रूट पर आया था बेतरतीबा तरीके से फैले वन्य वृक्षों और लताओं ने वह जिला परिषद् का मार्ग अपने गर्भ में छुपा लिया था! पूरी नदी में हाथियों की उपस्थिति के साक्ष्य के रूप में उनके मल त्याग की अधिकता बता रही थी ऐसे में वन्य प्राणियों का कैसे सामना हो जब वे अचानक मुंह आगे प्रकट हो जाएँ यही सोच मुझे खाए जा रही थी! दूसरा मैं इस ट्रेकिंग ग्रुप से इतना परिचित भी नहीं था कि मैं उनको आदेश या निर्देश दे सकूं! मात्र दो एक चेहरे ऐसे थे जिनसे मेरा पूर्व में परिचय था व वे मेरे साथ राजदरबार की यात्रा कर चुके थे! वे ऐसी यात्राओं में पारंगत भी थे!
क्रमशः……