(मनोज इष्टवाल)
यह कितने दुर्भाग्य की बात हम सबके लिए है कि जो सुरक्षाकर्मी हमारी आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे होते हैं, उन्हीं की साफ सुथरी खाकी पर हम सबको कई दाग नजर आते हैं। आम जन की सुरक्षा के लिए बनी खाकी अगर चौराहे पर खड़ी है तो हम में खुद ही अनजाना भय। घर पर चोरी, झगड़ा हो गया या अन्य कई आपराधिक मामले दर्ज करवाने की नौबत्त आती है तो हम थाने की सीढ़ियां चढ़ने से पहले कई बार सोचते हैं। आखिर क्यों…! रात दिन सेवा करने वाले पुलिस कर्मी क्यों अपने अंतिम समय में यह कहना शुरू कर देते हैं कि थैंकलेस जॉब है ये?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पुलिस की कार्यप्रणाली के लिए सन 1861 में बने पुलिस एक्ट पर आधारित है जो बदस्तूर अभी भी जारी है लेकिन जनता की नजर हमेशा ही पुलिस की खाकी दागदार रही। जिस कारण जब -जब भी इस विभाग में बेहद सक्षम व ईमानदार अधिकारी सर्वोच्च पद पर पहुंचा उसकी कसमसाहट यही रही कि किस तरह वह आम जनता की नजर में पुलिस की छवि में सुधार लाये। सफेदपोशों की मनमानी के कारण पुलिस एक्ट में बिशेष संसोधन तो नहीं हो पाया लेकिन अधिकारियों ने जनता से संवाद कायम रखने के लिए पुलिस के साथ मित्र पुलिस की पालिसी पर काम करना शुरू कर दिया। उसका फायदा तो उन्हें इतना ही हुआ कि पुलिस महकमे के खुर्रान्टों की चौराहों पर गूंजती गालियां व बेवजह की लाठियां बन्द हो गयी लेकिन हम जैसे आम नागरिक नागरिक अधिकारों की पट्टी पढ़ाते हुए उनके सिर पर बैठने शुरु हो गए। पुलिस से बेवजह का भय हमारे दिमाग से तो उतर गया लेकिन हम खुद में इतने दागदार हो गए कि वर्दी के दाग खुद ही धुलने लगे। सच कहूं तो थाने या चौराहे में हम पुलिस के चेहरे को नहीं उसकी खाकी को देखते हैं।
एक ओर हम फौजी की वर्दी का बहुत आदर करते हैं वहीं आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा उठाने वाली वर्दी में हमें संशय दिखता है। इसमें बड़ा रोल वर्दी की आड़ में अनर्गल कार्य करने वाले कर्मियों का भी है लेकिन मेरा मानना है कि अब पुलिस महकमें जब से पढ़े लिखे जवान आने लगे हैं वह जनता को अपने करीब लाने में कामयाब हुए हैं।
सतपुली पुलिस का ये वीडियो हुआ वायरल।
https://youtu.be/K8vkEuWM2T8
पौड़ी गढ़वाल के थाना सतपुली की पुलिस अपने वायरल वीडियो के कारण सुर्खियों में है। वह हाथ ठेके से, गाड़ी से वे कंधों में राशन लादकर उन बुजुर्गों, गरीबों के घर राशन पहुंचाती नजर आई जो ईश्वर के भरोसे गांव व शहर में इस कोरोना काल में गुजर बसर कर रहे हैं। सचमुच आज इस वर्दी पर दाग नहीं बल्कि वो चमक दिख रही है जो उनके माध्यम से हमारी आंखों में वे आंखों से दिलोदिमाग तक पहुंच रही है। तभी तो हर कोई कहता सुनाई दे रहा है-शुक्रिया सतपुली पुलिस।
सतपुली पुलिस के अलावा अन्य स्थानों पर भी पुलिस ऐसा ही रोल अदा कर रही होगी लेकिन वे इस तरह अपनी कार्यशैली को सोशल साइट पर क्यों उजागर नहीं कर रहे होंगे? अगर वह अपने ऐसे कार्यों को समाज तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं तो यह उन पुलिसकर्मियों की बड़ी कमी कही जा सकती है। मेरा मानना है विशेषकर पुलिस कर्मियों के ऐसे कृत्य सार्वजनिक होने चाहिये ताकि आम जन का उनसे व खाकी से सीधा जुड़ाव हो सके। और एक साकारात्मक सन्देश समाज के मध्य पहुंचे।
देहरादून की रेलवे पुलिस भी दिखी पानी व खाना बांटती हुई।
आपस में धनराशि इकट्ठा करके उत्तराखण्ड रेलवे पुलिस के जवान विगत तीन दिनों से देहरादून से अपने गंतव्यों (देश के विभिन्न क्षेत्रों को लौटते) को जा रहे मजदूरों रेलवे स्टेशन के आस पास फुटपाथियों व अन्य बेसहारा लोगों को भोजन पैकेट व पानी बांट रहे हैं। इस बारे में रेलवे कांस्टेबल पुष्पा बोहरा ने जानकारी देते हुए बताया कि हम सभी अपने थाना इंचार्ज एसआई अनिल कुमार के दिशा निर्देशों के साथ आपसी धनराशि कलेक्ट कर रोजमर्रा की जिंदगी में ध्याडी कमाने वाले उन मजदूरों, असहायों के प्रति यह सेवाभाव दिखा रहे हैं ताकि वे इस कोरोना काल में उत्तराखंड से अपने गंतब्य की तरफ लौटे तो यहां से भूखे न जाएं। उन्होंने कहा हमारी टीम के सदस्य जिनमें शैलेन्द्र रावत, मनोज चौहान, निर्मला नहर, संगीता पुंडीर, अनिता कंडारी, दुर्गा रावत सहित पूरी थाना टीम के सदस्य शामिल हैं, कोशिश कर रहे हैं कि जब तक कोरोना काल चल रहा है तब तक हम यह सेवाभाव बनाये रखें।