Friday, November 22, 2024
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रहस्य, रोमांच से भरपूर मालिनी नदी घाटी ट्रेक। जहाँ जन्मा गायत्री मंत्र, चक्रवर्ती राजा भरत व प्रेम-परिणय की हैं अभूतपूर्व गाथाएँ।

रहस्य, रोमांच से भरपूर मालिनी नदी घाटी ट्रेक। जहाँ जन्मा गायत्री मंत्र, चक्रवर्ती राजा भरत व प्रेम-परिणय की हैं अभूतपूर्व गाथाएँ।

(मनोज इष्टवाल)

विधि का विधान, विधाता द्वारा प्रदत्त मस्तक लकीर, बेमाता की किलकारियों में उडनखटोले पर उड़ता, गिरता बचपन हो या फिर स्वर्ण पर्वत की कल्पना! या फिर “ॐ भुर्रभुव स्वाहा! तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।”  गायत्री मंत्र की उत्पत्ति का स्थान, राजा विश्वामित्र मेनका की प्रेम-गाथा हो या फिर शकुन्तला-दुष्यंत का प्रेमफ़ाश..! या फिर दुर्भाषा ऋषि का श्राप हो या भरत का कश्यप आश्रम में जन्म व फिर चक्रवर्ती सम्राट बनने की गाथा! वैदिक काल से हम कलयुग काल की सोलहवीं सदी के श्रृंगारमति के डोले की बात…! भंधौ असवाल का महाबगढ़ के उस लिंग की बात जो मक्का-मदीना भेजा गया हो या फिर असवालगढ़, जुनियागढ़, झंडीगढ़, भगदयो गढ़ की बात! इतनी सारी ऐतिहासिक घटनाएँ व सन्दर्भ मालिनी नदी के उद्गम स्थल मलनियाँ-बडोलगाँव, चंड़ा पर्वत शिखर से लेकर 30 किमी. मालिनी बहाव पर स्थित चौकीघाटा तक मालिनी नदी घाटी के दोनों छोरों पर अवस्थित हैं! यही नहीं यहीं ऋषि विश्वामित्र की तपस्थली, कण्वा ऋषि का ऋषिकुल विद्यालय (कण्वाश्रम), मरीचि ऋषि आश्रम, कश्यपऋषि आश्रम या फिर मेनका आश्रम व शकुन्तला-दुष्यंत के गंदर्भ विवाह स्थल….! सब यहीं इसी परिधि में उपलब्ध है! चरक ऋषि की चरेख संहिता में हजारों हजार औषधीय पादपों का केंद्र भी यही मालिनी नदी घाटी क्षेत्र है! आइये पढ़ते हैं विस्तार से मेरे इस ट्रेवलाग के माध्यम से!

(मथाणा गाँव 6 फरवरी 2021)

यों तो इस यात्रा की पटकथा विगत 30 जनवरी 2021 को मुख्यमंत्री आवास में ही लिख दी गयी थी, जब हमारा पांच सदस्यीय दल (समाजसेवी रतन सिंह असवाल, अधिवक्ता अमित सजवाण, समाजसेवी संदीप सिंह बिष्ट, कण्वसेरा मेला समिति के अध्यक्ष सुमन कुकरेती व मैं स्वयं मनोज इष्टवाल) गढवाल मंडल विकास निगम की रीजनल मैनेजर सरोज कुकरेती व वीरेन्द्र सिंह रावत “बिल्लू भाई” के सानिध्य में मालिनी नदी घाटी को “ट्रैक ऑफ़ द इयर-2021” की घोषणा के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी से मिले थे! तब आपसी राय-मशवरे से यह तय किया गया कि हम मालिनी नदी घाटी में उस सबसे दुर्गम व रोमांच से भरे ट्रैक पर एक बार पुनः जायेंगे जहाँ जंगली जानवरों व विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के साथ सैकड़ों वनौषधियों का खजाना बिखरा पड़ा है!

आखिर वह बेला भी आई जब हम (ठाकुर रतन सिंह असवाल, अधिवक्ता अमित सजवाण व सुमित कार्की) आज दोपहर कोटद्वार से चलकर लगभग सवा तीन बजे मथाणा गाँव के संदीप बिष्ट के कैंप में जा पहुंचे! यहाँ ग्रामीणों द्वारा ग्राम प्रधान की अगुवाई में हमारा फूल मालाओं से स्वागत हुआ! वहीँ सडक के पास ही शक्तिपीठ में ढोलक की थाप के बीच सम्मान स्वरूप माँ के मंदिर में ग्रामीण महिलायें कीर्तन भजन कर माँ से हमारी सफल यात्रा की कामना करती दिखी व प्रदेश सरकार से यह उम्मीद बांधे कि इस घाड़ क्षेत्र के कल्याण हेतु मुख्यमंत्री शीघ्र ही कोई घोषणा करेंगे! रात्रि विश्राम के लिए हमें कोई परेशानी न हो इसलिए श्री सुरेन्द्र सिंह बिष्ट जी के घर में हमारी ठहरने की व्यवस्था की गयी थी! ग्रामीण परिवेश में हमें जो सम्मान सुरेन्द्र सिंह बिष्ट जी के परिवार की ओर से मिला उसके हम ऋणी हैं!

(07 फरवरी 2021)

सुबह शौचादि निवृत के बाद गर्म पानी व गर्म-गर्म चाय के बाद हम वापस संदीप बिष्ट के कैंप पहुंचे, जहाँ गर्मागरम पूड़ी-सब्जी, हलवा-रायता नाश्ते में बन रहा था! हमें ज्यादा इन्तजार नहीं करना पडा क्योंकि हमारे अन्य सहपाठी ट्रैकर्स पांच गाड़ियों में लदकर लगभग 9:30 बजे जयघोष करते पहुँच गए थे! सबने शिद्धपीठ में माँ को नमन किया व आगे की यात्रा के लिए अपना आशीर्वाद माँगा! इधर अधिवक्ता अमित सजवाण ने सभी को पहुँचने की बधाई दी व मुझे एक गाइड की भांति 62 सदस्यीय दल को मालिनी नदी घाटी में अवस्थित स्थानों की जानकारियाँ साझा करने की जिम्मेदारी…!

यहाँ 62 ट्रैकर्स में सच पूछिए तो मुझे संदीप बिष्ट के कैंप से निकलते ही पता चल चुका था कि इनमें से बमुश्किल 10 से 15 लोग ही पूर्व में कभी ट्रैक किये होंगे बाकी सिर्फ रोमांच के साथ इस साहसिक यात्रा में जुड़ने आये थे! इनमें दो लोग मेरे लिए चिंता के बिषय थे! पहले ठाकुर रतन असवाल व सुमित कार्की जो दल से पहले ही निकल चुके थे व दूसरे वर्मा जी …जो अपने घुटने बदलकर (घुटने का ऑपरेशन करवाकर) इस साहसिक अभियान में सबसे ज्यादा उम्र के (लगभग 65 बर्ष) व्यक्ति थे! 62 ट्रैकर्स के बीच अचानक मालिनी नदी में तैरता मुझे मथाणा गाँव का टप्पी भी दिख गया जिसे पिछली शाम मैंने हग करने को बोला था तो उसने बदले में मेरे गालों पर अपनी लम्बी जीब से पप्पी दे दी थी! मैंने उसका नाम लेकर कहा अच्छा तो तू भी शामिल हो गया! उसकी चोर नजरों से मैं भांप गया था कि वह समझ गया था कि मैं नहीं चाहता था कि वह इस यात्रा में सरीक हो लेकिन दुनिया का सबसे वफादार जानवर कहलाने का अधिकार जो पाया है उसने..! मैंने संदीप बिष्ट से कहा- यह टप्पी कैसे वापस जाएगा कहीं रास्ते में इसे तेंदुआ, बाघ इत्यादि न मार दे! संदीप बिष्ट मुस्कराते हुए बोले- सर, चिंता न करें! यह मथाणा गाँव का कुत्ता है! यह हमारे साथ चौकीघाटा (वर्तमान कण्वाश्रम) तक जाएगा व फिर हमारे साथ ही वापस गाँव लौट जाएगा! संदीप के शब्दों ने ढांढस बंधाया तो बोझ हल्का हुआ!

मथाणा गाँव के शीर्ष से लगभग 2 किमी. नीचे उतरकर हम मालिनी नदी तट पर आ पहुंचे! इस दौरान मथाणा गाँव से ढोल-दमाऊ व ग्रामीण हमें ग्राम प्रधान सुरेन्द्र के साथ गाँव की सरहद तक विदा करने आये! कुछ ग्रामीण अपने खेतों में खड़े गेहूं के हरे पौधों को दिखाते हुए अपने परिश्रम के ह्रास की पीड़ा व्यक्त करते नजर आये, क्योंकि हाथियों ने घर के पास पहुंचकर ही कई खेत चट लकर दिए थे! यह हर हफ्ते होता ही रहता है! ऐसे में ग्रामीण परेशान होकर कहते हैं कि मेहनत का बोया भी वसूल नहीं होता! राज्य सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही इसलिए आधा से ज्यादा गाँव अपना बोरिया बिस्तर समेटकर शहरों की ओर रोजी-रोटी कमाने के लिए पलायन कर रहा है! सचमुच इस पीड़ा को समझने के लिए हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के चौपट होते उदाहरण साक्षात दिखाई दे रहे थे! यही कारण भी है कि पांच किमी. दायरे में फैली मथाणा गाँव की खेती अब सिमटकर एक से डेढ़ किमी. क्षेत्र में भी नहीं रह गयी थी! आधा गाँव पलायन की जद में आ चुका है फिर भी यहाँ लगभग 100 परिवारों की बसासत है! घाड़ क्षेत्र की इस दुर्दशा में उनके आंसू पोंछने वाला कोई कर्मवीर कब पैदा होगा इसका हम सभी को इन्तजार है! लेकिन प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि आखिर कर्मवीर पैदा हो तो हो कैसे? पूर्व वाइल्ड लाइफ वार्डन श्रीकांत चंदोला व पूर्व जिलाधिकारी पौड़ी ने एक मुहीम के तहत इस गाँव के विकास की एक रूपरेखा तैयार भी की थी! जिसमें सम्पूर्ण जनपद से विभिन्न विभागों के अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों के साथ एक बैठक की व हाथियों से बचाव के तरीके सुझाए व बंजर होते खेतों में हरियाली लहलहाए इसके लिए एक योजना तैयार भी की लेकिन हश्र वही हुआ जो अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में होता है! खेत बंजर रहें तो रहें सही लेकिन उनके लिए साझा कृषि योजना या बागवानी पर सब एकजुट हो जाएँ ऐसा सम्भव नहीं! शायद यह भी एक कारण हो सकता है कि मथाणा जैसे साधन सम्पन्न गाँव में बंजर अपने दोनों हाथ फैलाकर उसे काल-कलवित कर रहा है!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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