(मनोज इष्टवाल)।
●मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सहित प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने दी सुप्रसिद्ध लोकप्रिय राजनेता एच एन बहुगुणा को 102वीं जयंती की श्रद्धांजलि।
तब विश्व भर की राजनीति में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को “आयरन लेडी” के नाम से जाना जाता था। कांग्रेस की राजनीति में न उनसे पहले न उनके बाद कोई ऐसा राजनेता पैदा हुआ और न कोई इतना दृढ़ संकल्पी। विरासत में इंदिरा गांधी को राजनीति मिली थी लेकिन उनके विद्रोही तेवरों को देखकर पंडित जवाहर लाल नेहरु भी नहीं चाहते थे कि इंदिरा गांधी राजनीति में आएं। सच भी है जब उन्होंने राजनीति शुरू की तो उस दौर का दबंग से दबंग कांग्रेसी राजनेता भी घुटनों में आ गया । यह श्रीमती इंदिरा गांधी का ही साम्राज्यवाद है कि आज भी कांग्रेस की हर राजनीति या सत्तासुख गांधी परिवार की देहरी से ही निकलती है। लेकिन इंदिरा गांधी जैसी “आयरन लेडी” का खुलकर विरोध करने में जयप्रकाश नारायण का ही नाम आया जबकिं हकीकत यह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी को सबसे ज्यादा अस्थिर अगर किसी ने किया तो वह व्यक्ति थे ‘पर्वत पुत्र व हिमालय पुत्र’ के नाम से जाने गए सुप्रसिद्ध राजनेता स्व. हिमवती नंदन बहुगुणा।
गढ़वाल राजा की थाती-माटी में जन्में पर्वत पुत्र हिमवती नंदन बहुगुणा का जन्म आज ही के दिन आज से 102 बर्ष पूर्व अर्थात 25 अप्रैल 1919 में पौड़ी गढ़वाल के चलनस्यूँ पट्टी के बुघाणी गांव में पंडित रेवतीनंदन बहुगुणा के घर हुआ जो ब्रिटिश काल में पटवारी थे। उनकी दो माँयें थी। अपनी सगी माँ का नाम श्रीमती पूर्णा देवी था।
(श्रीमती दुर्गादेवी खंडूरी (बड़ी बहन) जिनके घर से बहुगुणा जी पौड़ी में पढ़ाई करते थे। व श्रीमती कमला तिवारी बहुगुणा । बहुगुणा जी की धर्मपत्नी)
बचपन से ही हिमवती नंदन बहुगुणा बहुत मेधावी छात्र थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा…..ग्रहण की व उसके बाद डीएवी कॉलेज पौड़ी से हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त कर उच्च शिक्षा हेतु इलाहाबाद जा पहुंचे। जहां से उन्होंने बीए तक की शिक्षा ग्रहण की। वहां छात्र नेता बने व अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। ब्रिटिश पुलिस की नजर में आये तो इलाहाबाद से दिल्ली आ पहुँचे लेकिन जामा मस्जिद दिल्ली के पास पहचानने में आये व गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई लेकिन जेल में स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण ढाई साल बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
स्वंतत्र भारत में वे सक्रिय राजनीति में आये व वर्ष 1952 में सर्वप्रथम विधान सभा सदस्य निर्वाचित। पुनः वर्ष 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य के सदस्य निर्वाचित हुए। वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति तथा वर्ष 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति सदस्य बने। इसी दौरान उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव नियुक्त किया गया। सन 1957 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री डा0 सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमण्डल में सभासचिव रहे, इसके अलावा डा0 सम्पूर्णानन्द मंत्रिमण्डल में श्रम तथा समाज कल्याण विभाग के पार्लियामेन्टरी सेक्रेटरी में भी उन्होंने राजनीतिक पारी खेली।
हिमवती नंदन बहुगुणा वर्ष 1958 में उद्योग विभाग के उपमंत्री, वर्ष 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री वर्ष 1967 में वित्त तथा परिवहन मंत्री रहे। वे तीन बार अर्थात वर्ष 1971, 1977 तथा 1981 में लोक सभा सदस्य निर्वाचित रहे। उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में पहली बार 2 मई, 1971 को बतौर संचार राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया।
इंदिरा गांधी का गढ़वाल को बिशेष पैकेज देने से इंकार।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की लोकप्रियता उस काल में चरम पर थी। लोग उनकी झलक पाने को तरसते थे। गढ़वाल क्षेत्र अपने विकास के लिए चटपटा रहा था। ऐसे में इंदिरा गांधी का पौड़ी दौरा अहम था। उनका कंडोलिया पौड़ी आगमन का मकसद हिमवती नंदन बहुगुणा के बताए अनुसार गढ़वाल मंडल के लिए बिशेष पैकेज की घोषणा करना था। कंडोलिया मैदान खच्चाखच भरा हुआ था। तब उन्होंने देखा कि भीड़ में बैठी सभी महिलाएं स्वर्ण आभूषणों से सजी धजी हैं, ऐसे में उन्हें आश्चर्य हुआ व उन्होंने कहा जिस क्षेत्र में मातृशक्ति स्वर्ण आभूषणों से लकदक हो वहां बिशेष पैकेज की क्या आवश्यकता।
वे उत्तर प्रदेश में आठवें मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च 1974 तथा दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने पीएसी को स्पेशल भत्ते के रूप में उनकी वेतन वृद्धि की। वे बर्ष वर्ष 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्वरक मंत्री बने व इसी दौरान उन्होंने पहली बार गढ़वाल मंडल में लगभग 2000 गैस कनेक्शन आबंटित करने की मंजूरी दी।
बहुगुणा का पार्टी से इस्तीफा व नई पार्टी का गठन।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से हिमवती नन्दन बहुगुणा के मतभेद जग जाहिर थे। इन्ही मतभेदों के कारण उन्होंने काँग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर नई पार्टी का गठन किया।उन्होंने सीएफडी (कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी/लोकतांत्रिक कॉंग्रेस) पार्टी का गठन किया और इमरजेंसी के समय पर जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा। वे पुनः 1979 में केन्द्रीय वित्त मंत्री रहे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह सरकार अल्पमत में आने के कारण पद से ही इस्तीफा दे दिया। उन्हें फिर कांग्रेस में इंदिरा गांधी द्वारा बुलावा भेजा गया और वे कांग्रेस में महासचिव बनाये गए लेकिन इंदिरा गांधी से आंतरिक मतभेदों के चलते उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से चन्द्रमोहन सिंह नेगी के खिलाफ चुनाव का बिगुल फूंका। उन्होंने पार्लियामेंट्री बोर्ड से भी इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। वे पहले ऐसे चुने हुए सांसद कहलाये जिन्होने ऐसा दुस्साहस किया।
19 मई 1981 का ऐतिहासिक चुनाव।
उस समय हिमवती नंदन बहुगुणा का दिया यह नारा “हिमालय टूट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता।” हर एक व्यक्ति की जुबान पर था। यह सम्पूर्ण गढ़वाल के लिए ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के लिए चौंकाने वाला चुनाव था क्योंकि इंदिरा गांधी ने तब उन्हें गढवाल लोकसभा सीट से हराने के लिए देेेेश के आठ राज्यों के मुख्यमंत्री व हरियाणा पुलिस की टुकड़ियां भेजी थी। जिस में जमकर धांधली की गई। हरियाणा के जाटों का पहली बार कंडाली (बिच्छू घास) से सामना हुआ। लोगों ने इन पर पत्थर भी बरसाए। पीएसी की टुकड़ियां तटस्थ रही और उन्होंने हिमवती नंदन बहुगुणा को अंदरूनी मदद पहुँचाकर कई स्थानों पर बूथ कैप्चरिंग रुकवाई।
नतीजा यह निकला कि हिमवती नंदन बहुगुणा अपने विरोधी प्रत्याशी कांग्रेस के चंद्रमोहन सिंह नेगी से भारी मतों में विजयी घोषित हुए। तब बीबीसी की रेडियो खबर में प्रसारित हुआ कि एक तरफ अकेले बहुगुणा व दूसरी तरफ पूरी इंदिरा गांधी की सरकार खड़ी रही फिर भी हिमवती नंदन बहुगुणा को नहीं हरा पाई। फिर इंदिरा गांधी व बहुगणा में गठबंधन हुआ और उन्हें कांग्रेस का महामंत्री नियुक्त किया गया, लेकिन राजनीति में चाटुकारिताओं से घिरी इंदिरा गांधी बहुगुणा जी से नाखुश रहने लगी। जिस व्यक्तित्व ने देश के वित्त मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया हो वह भला असहज रहकर कैसे गांधी परिवार की चाकरी कर सकता है। उन्होंने कांग्रेस महामंत्री पद से इस्तीफा देकर “लोकदल” की स्थापना की व मरते दम तक लोकदल में रहे।
(उस दिन होली का दिन था। मैं भी भीड़ का हिस्सा। पीछे खड़ा हूँ। सभी आंखें रो रही थी)
स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें स्पेशल विमान से इंदिरा गांधी द्वारा बायपास सर्जरी के लिए यूनाइटेड स्टेट भेजा गया जहां बायपास सर्जरी के दौरान 17 मार्च, 1989 क्लेवलैंड ओहिओ को उनकी मृत्यु हो गयी। वे अपने पीछे एक पुत्री रीता बहुगुणा व दो पुत्र विजय बहुगुणा व शेखर बहुगुणा को छोड़ गये। जिनमें रीता बहुगुणा जोशी व विजय बहुगुणा राजनीति की क्षितिज पर चमके हैं। सुप्रसिद्ध राजनेता नारायण दत्त तिवारी एच एन बहुगुणा को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सहित प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने दी सुप्रसिद्ध लोकप्रिय राजनेता एच एन बहुगुणा को 102वीं जयंती की श्रद्धांजलि।
क्या अभी भी हिमवती नंदन बहुगुणा की जीवनी के मुख्य अंश सामने आने बाकी रह गए? यदि नहीं तो फिर वृत्तचित्र निर्माता ये सभी बातें क्यों सामने नहीं लाते।
शिक्षा:-
* हिमवती नंदन बहुगुणा का शुरुआती अध्ययन देवलगढ़ बताया गया है जबकि उन्होंने अक्षर ज्ञान ह्यूण गांव गुप्तकाशी के अध्यापक परमानंद सेमवाल से अपने गुप्तकाशी स्थित आवास में लिया था।
*पहला दाखिला प्राथमिक विद्यालय सिलौंजा (शिक्षक रुद्रीदत्त गांव सिरई-कांडा)
*पुनः बामसू मैखण्डा (हेडमास्टर श्रीधर प्रसाद।
*कक्षा 3 तक पढ़ाई गुप्तकाशी करने के बाद कक्षा 4 में देवलगढ़ में दाखिला।
*कक्षा 5 व 6 खिर्सू से उत्तीर्ण किया अध्यापक (बुद्धि सिंह हेडमास्टर)
*7वीं यानि मिडिल पास उखीमठ से (हेडमास्टर सुरेशानंद)
*8वीं पास डीएवी पौड़ी से व हाई स्कूल देहरादून।
पारिवारिक:-
*बहुगुणा जी की दो माँ थी। पहली माँ से श्रीमती दुर्गादेवी खंडूरी सहित दो अन्य बहनें व बहुगुणा जी स्वयं। माँ का देहांत होने पर पिताजी द्वारा दूसरी शादी की गई जिनसे नवल, माधुरी व एक अन्य बहन।
*श्रीमती कमला तिवारी बहुगुणा हिमवती नंदन बहुगुणा जी की दूसरी पत्नी हुई जबकि उनकी पहली पत्नी का नाम श्रीमती धन्ना देवी था जो चंदोला राई पौड़ी गढ़वाल के सम्भ्रांत परिवार से थी।
*पहली शादी उनकी तब हुई जब वे इलाहाबाद से स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिगत होने गांव लौटे थे, क्योंकि ब्रिटिश पुलिस ने उन पर जिंदा या मुर्दा 5000 इनाम रखा था।
*अपनी पत्नी श्रीमती के साथ एक माह बिताने के बाद ही बहुगुणा जी उनके जेवर लेकर वापस इलाहाबाद चले गए क्योंकि उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम में पैसों की जरूरत थी।
*बहुगुणा जी फिर मंत्री बनने के बाद ही श्रीनगर लौटे जब उन्होंने वहां पॉलिटेक्निक का उद्घाटन करना था। बर्षों बाद उनकी यहीं अपनी पहली पत्नी से मुलाकात हुई।
*जीवन पर्यंत फिर सिर्फ दो बार ही बहुगुणा जी गांव आ जब वे चुनाव लड़ रहे थे।
*गांव की बुजुर्ग महिलाओं में उनकी पहचान कल्या नाम से ज्यादा थी।
*उन्हें ढाई साल इलाहाबाद नैनी जेल में आजीवन कारावास की सजा में गुजारने पड़े लेकिन फेफड़ों में इंफेक्शन के बाद उन्हें जेल से छुट्टी मिली।
मेरी चाची श्रीमती चन्द्रकला इष्टवाल बताती हैं- कसूर कैकु।
*हिमवती नन्दन बहुगुणा की गांव की करीबी भतीजी मेरी चाची श्रीमती चन्द्रकला उनियाल इष्टवाल बताती हैं कि चाची श्रीमती धन्ना देवी बहुगुणा (हिमवती नन्दन बहुगुणा की पहली पत्नी) अपने अंतिम समय में अपना मानसिक संतुलन काफी हद तक खो चुकी थी। आखिर खोती भी क्यों नहीं, जिन्होंने जीवन पर्यंत अपने पति का लौटने का इंतजार किया हो और बेहद मुफलिसी में दिन काटे हों तो वह महिला करती भी क्या। हिमवती नंदन बहुगुणा के आभामंडल के आगे जहां पूरे देश की राजनीति घूमती थी वहीं उनके पिता व परिवार द्वारा ढूंढी गयी उनकी पत्नी बुरे दिनों में गुजर कर रही थी।
चाची बताती हैं कि अक्सर उनकी चाची श्रीमती धन्ना देवी के पास जब भी वे लोग बैठते थे तो चाची कहा करती थी-“कसूर कैकु”?
तब हम सब एक सुर में बोलते थे बहुगुणा जी कु। तो वो खुश हो जाया करती थी। फिर बोलती थी चिंता न करो वो आने वाले हैं। जल्दी ही मुझे अपने साथ फ्रांस , जर्मनी, इंग्लैंड की यात्रा पर ले जाने वाले हैं।
धन्ना नानी के हाथ की चाय।
वह बरसात का मौसम था जब मैं अपने भाई दीपक इष्टवाल के साथ बुघाणी गया हुआ था। हमारे मामा उनियाल जी थे, अब उन्होंने गांव के पार मकान बना लिया है। लेकिन उस दौर में बुघाणी में शौच निवृत्ति की बड़ी दिक्कत थी। मामा बोले- तुम दोनों बगीचे में चले जाओ। हमने बोतल पकड़ी और शौच निवृत्ति के लिए चल पड़े। रास्ता बहुगुणा जी के पैतृक मकान के आंगन से होकर जाता था। धन्ना नानी तब गौशाला में थी हमने नमस्ते की लेकिन उनका कोई जबाब नहीं मिला। आते समय दीपक को बोली तू चन्दू का लड़का है। दीपक ने हां में सिर्फ हिलाया। नानी लोटा भरकर पानी लाई और बोली- चौक के किनारे राख पड़ी है । कुल्ला पिछकारी करो, मैंने चाय बना रखी है। दीपक बिल्कुल नहीं चाहता था कि हम चाय पीएं लेकिन मेरा मन था कि मैं कुछ जानूँ । शानदार चाय लेकर आई नानी । मैंने पूछा- नानी, क्या अकेले ही रहते हो इतने बड़े मकान पर ? नानी बोली- कौन खायेगा मुझे। कसूर कैकु…! दीपक ने कोहनी मारी। हम चाय खत्म कर चल दिये। जब दुबारा मैं बुघाणी गया तब नानी स्वर्ग सिधार गयी थी व मकान बेहद जर्जर हालात में था।
सन 1980-81 के चुनाव का ख ब बाँट गया हमारे समाज को….!
ख= खस ब= बामण …!
सन 1980-81…… यह परिपाटी चन्द्रमोहनसिंह नेगी ने शुरू की या हिमवती नंदन बहुगुणा ने….! कुछ पता नहीं फिर भी मैं किसी एक का नाम लेकर विवाद पैदा नहीं करना चाहता, लेकिन यह सच है कि तब मैं स्कूली छात्र था और इस ख ब के चक्कर में हमारे गॉव में पंचायत का आयोजन किया गया था जिसमें इस कृत्य की भर्त्सना कर हमें यह विश्वास दिलाया गया था कि चाहे कुछ भी हो जाय हम अपने गॉव और समाज में इस ख ब की जड़ को जमने नहीं देंगे! मेरा पूरा गॉव राजपूतों का है और हम चंद परिवार ही वहां ब्राह्मण हैं लेकिन मुझे अच्छे से याद है कि चुनाव के ऐन पहले यह बात जोर-शोर से प्रसारित की गयी थी कि खस-बामणी ह्वेग्ये भारे…!
तब न मुझे ही कुछ समझ आया और न मेरे से बड़े गॉव के भाई बंधुओं को…! सच मानिए तो पिछले दस साल से पहले तक हमें अपने गॉव में यह कभी महसूस नहीं तक हुआ कि क्या बामण क्या जजमान और क्या शिल्पकार…! सब के वही नाते रिश्ते काकी-बोडी ताऊ- चाचा इत्यादि रहे हैं!
कल चारु चंद चंदोला जी (संस्मरण 2014) से इसी सम्बन्ध में बात हो रही थी चुनाव परिचर्चा थी तब उन्होंने बताया कि वे इस चुनाव को कवर कर रहे थे तो रूद्रप्रयाग में एक पेड़ पर बोर्ड टंगा था जैसे ईस्ट और वेस्ट कभी एक नहीं हो सकते वैसे ही ख और ब….?
खैर चुनाव का रिजल्ट तब भी हेमवती नन्दन बहुगुणा के पक्ष में रहा और इस ख ब का उस चुनाव पर कितना असर हुआ यह नहीं कह सकता, लेकिन आज इसी राजनीति ने ख और ब शब्द में इतनी गंद फैला दी है कि पहले यह ख और ब तक थी अब कुनवों में बंट गयी. चाहे पंचायत चुनाव हों या फिर बड़े चुनाव …! सब में धड्ड़ेबंधी हो गयी है! अब जबकि सब शिक्षित हैं क्यों न नयी पहल के साथ ऐसे गंदे शब्दों को तित्लांजलि दें! लेकिन देगा कौन …अब तो यह गंद शहरों के गंदे नालों से बहकर ग्रामीण समाज में भी घुल-मिल गया है जिसका असर अब मेरे उस गाँव में भी दिखाई देने लगा है जहाँ कभी कसमें खाई जाती थी कि चाहे कुछ भी हो हम अपने गाँव के अंदर ऐसी दूषित राजनीति नहीं घुसने देंगे!
इस ख और ब शब्द का ठीकरा तब चन्द्रमोहन सिंह नेगी के सिर फूटा जब कोटद्वार से हिमवती नंदन बहुगुणा ने धूलिया की जगह भारत सिंह रावत को टिकट देकर यह बताने की कोशिश की कि यह जहर उन्होंने नहीं घोला है बल्कि इस पुड़िया को बाहर से लाकर गढ़वाल के गंगाजल में डाला जा रहा है..जिससे यह हमारे खून में शामिल हो!
ऐसा ही किस्सा सरोला बामण और गंगाडी बामण का भी रहा …! दोनों रिश्तेदारों का आपसी कलह आज भी इन ब्राह्मणों को दो धाराओं में बांटे हुए है, इसका असर पौड़ी गढ़वाल या टिहरी गढ़वाल में तो नहीं दीखता लेकिन चमोली के सरोला बामण आज भी यह बात नहीं भूलते.
गढ़वाली अखबार के जनक तारा दत्त गैरोला और गिरजा प्रसाद नैथाणी में अखबार को लेकर कुछ मन मिटाव् हुआ और यह सरोला बनाम गंगाडी बामण में विभक्त हो गया तब गढ़वाली अखबार में गिरजा प्रसाद नैथाणी जी ने चुस्की लेकर सरोला ब्राह्मण तारा दत्त (दादर) के बारे में लिखा- सरोला बामण की दादर टर्रटर्र…! झगड़ा हुआ दो रिश्तेदारों गैरोला और नैथाणी के बीच और बाँट दिए गए गंगाडी और सरोला …! वाह रे नियति तेरा भी जवाब नहीं, राजनीति ने जहाँ ब्राह्मण क्षत्रीय वर्ग विभाजन किया वहीँ ब्राह्मणों ने ब्राह्मणों का ही वर्गीकरण कर दो रिश्तेदारों के झगड़े में ब्राह्मण ही दो गुटों में बाँट दिए!