(संजय तिवारी शांडिल्य की कलम से)
बात 1757 की है। अहमद शाह अब्दाली एक बार दिल्ली को तहस नहस करने आया था। उसने अपनी एक टुकड़ी मथुरा वृन्दावन की तरफ भी भेज दिया जिसका नेतृत्व सरदार खान कर रहा था।
मथुरा में करीब दस हजार जाट सैनिकों ने अपने राजकुमार जवाहर सिंह के नेृतृत्व में अब्दाली की फौज से लोहा लिया लेकिन वो हार गये। इसके बाद मथुरा में जो मारकाट मची, इतिहास आज भी उसका गवाह है। ऐसी लूट हुई कि ऊंटों के काफिले पर सोना चांदी अफगानिस्तान गया था। हजारों महिलाओं ने मुसलमानों से अपनी इज्जत बचाने के लिए यमुना में जल समाधि ले लिया था।
इधर एक टुकड़ी वृन्दावन गोकुल की ओर आगे बढी। मुसलमानों के मार काट की डर से यहां हजारों लोग छिपे हुए थे। ऐसे समय में नागा साधुओं ने हथियार उठाया। राजेन्द्र गिरी गोसाईं की अगुवाई में नागा साधुओं ने सरदार खान की सेना से लोहा लिया और भारी मारकाट के बाद अंतत: सरदार खान की सेना को वहां से भगा दिया।
जिस दिन सरदार खान ने गोकुल पर हमला बोला था वह होली का ही दिन था। गोकुल के इतिहास में वह दिन रंगों की होली नहीं बल्कि खून से खेली गयी होली के रूप में दर्ज है।
खून की होली खेलनेवाले लोगों को छोड़कर बाकी सबको होली की शुभकामनाएं।