Friday, March 14, 2025
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रूपकुंड का छोरा ‘परू’……! पार्ट- 3

3.रूपकुंड का छोरा ‘परू’……!

(केेेेशव भट्ट की कलम से)

नंदकेसरी मार्ग की हालत उम्मीदों के मुताबिक़ पतली दिखी. सांझ हो चली थी तो कई जगहों पर जंगली मुर्गियों का परिवार अपने आशियाने की ओर लौट रहा था. परिवार का मुखिया पूरी सतर्कता से अपनी रानियों-बच्चों की निगरानी करता हुआ उन्हें जल्द से जल्द झुरमुटों के बीच छुपा देना चाहता था. अंधेरे ने अपनी चादर पसारनी शुरू की तो गाड़ी की लाइटें जला दी गईं. देवाल बाजार तक पहुंचते-पहुंचते दुकानें बंद होनी शुरू हो गईं. गाड़ी रुकी तो दिनभर का भूखा जैक भोजन की तलाश में भाग खड़ा हुआ. उसका इंतजार कर ही रहे थे बागेश्वर में पुलिस में तैनात पंतजी मिल गए. मालूम पड़ा कि वह देवाल के रहने वाले हैं. अब तक मैं उन्हें गंगोलीहाट का समझता आया था. इस बीच बमुश्किल उन्हें छुट्टियां मिली तो वह घर के पुर्ननिमार्ण में खुद ही मजदूर बने हुए थे. पंतजी उनके घर पर ठहरने की मीठी जिद करने लगे. इस बीच जैक भी पेटपूजा कर के आ गया. जैक के गाल हनुमानजी की तरह फूले थे. हांलाकि वो बंदर प्रजाति का नहीं हुवा, हां.. गालों को उसने दिन भर की भूख से ठूंस दिया था तो वो पूरा हनुमान—जामवंत जैसा उत्पाती बानर जरूर लग रहा था. खैर किसी तरह पंतजी से विदा लेकर हमने लोहाजंग की राह पकड़ी.
हाट कल्याणी गांव के नीचे से गुजरती सड़क मलबा आने से कई जगहों पर दलदली हो गई थी. पता चला कि कई सालों की मांग के बाद अब हाटकल्याणी को सड़क बन रही है. ठेकेदार स्थानीय है तो मनमर्जी वाले अंदाज़ में काम करवा रहा है. गढ्ढों से बचते-बचाते लोहाजंग की चढ़ाई में थे कि हरदा ने फिर से फोन पर पूछा कि हम कहां पहुंचे हैं. आठ बज चुके थे. लोहाजंग कोई चार किलोमीटर रह गया था. हरदा को बताया गया कि बस पहुंचने ही वाले हैं.
लोहाजंग में हरदा का बड़ा बेटा ‘देवू’ अगवानी में खड़ा मिला. आज की रात यहां जिला पंचायत के गेस्ट हाउस में गुजारनी थी. हरदा के साथ ही पुराने मित्र भंडारीजी भी मिले. एक कमरा हमें बताया गया तो उसी ओर लपक लिए. आंचल को तीन नई महिला मित्रों की कोठरी में भेजा गया. थोड़ी ही देर में आवाज आई कि खाने के लिए जल्दी करो, वरना होटल वाला अपनी दुकान बढ़ा लेगा. तुरत-फुरत ढाबेनुमा होटल में पहुंचे. रोटी-सब्जी-अचार-दाल सजी हुई थी. सभी थके-भूखे थे और थाली मिलते ही टूट पड़े. वापस कमरे में पहुंचे ही थे कि फिर से बाहर आने की आवाज़ लग गई. गोल घेरे में खड़े होने का निर्देश देकर एक शख्स ने अभिवादन सहित अपना परिचय दिया- ‘मैं दिनेश कुनियाल हूं, लगभग बीस साल से ट्रैकिंग का काम कर रहा हूं. 108 बार रूपकुंड का ट्रैक कर चुका हूं… अब मुझे लोग रूपकुंड के नाम से भी जानते हैं. अब आप लोग भी अपना-अपना परिचय दें.’
एक-एक कर सभी अपने बारे में बताने लगे. हर कोई अपने क्षेत्र के उस्ताद थे. ट्रैकिंग के बारे में सबके अपने अनुभव थे. कुनियालजी ने ट्रैकिंग के नियम-कानूनों के बारे में बताया और पूछा कि कोई मय का शौक़ीन तो नहीं है, ताकि वह व्यवस्था भी की जाए. इस पर कुछेक हाथ उठे तो उन्होंने हंसते हुए आगाह किया कि इस शौक के साथ यात्रा करना चाहते हों तो उन्हें वापस लौटना होगा और उनके पास अपना ‘इंतज़ाम’ हो तो उसे यहीं छोड़ना होगा. ट्रैक पर पीना-पिलाना बिलकुल नहीं चलेगा. बात हंसी-मजाक में टल गई. उन्होंने बताया कि मेरा बेटा प्रदीप अब आगे आपको लीड करेगा. तब पता चला कि लोहाजंग में ट्रैकिंग का काम करने वाले दिनेश कुनियाल का बेटा है प्रदीप उर्फ परू. उन्होंने ट्रैकिंग के बारे में अपने ढेर सारे अनुभव सुनाए और शुभकामनाएं दीं. सुबह नौ बजे दिदीना गांव के लिए ट्रैकिंग शुरू करने का समय मुकर्रर हुआ.
बाद में बातचीत में पता चला कि प्रदीप ने फिजिक्स में एम.एससी. की है और कुछ महीनों के लिए सीएम हेल्पलाइन में भी काम किया. लेकिन पहाड़ का प्रेम उसे वापस घर खींच लाया और फिर वह पिता के ट्रैकिंग क़ारोबार से जुड़ गया. पिता दिनेश कुनियाल पहले सूरत की एक डायमंड कंपनी में काम करते थे. घर का खर्चा बमुश्किल चल पाता था तो पिता ने नौकरी छोड़ ट्रैकिंग व्यवसाय को अपना लिया. इस बीच परू ने मनाली से माउंटेनियरिंग का बेसिक कोर्स और साथ में स्कीइंग का कोर्स किया. इसके बाद उन्होंने गो-एडमिन नाम से अपनी संस्था के जरिए खुद का काम शुरू किया. आज उनके साथ दस लोग हैं जो कुक, गाइड, ट्रेक लीडर, हेल्पर, पोर्टर के अलावा घोड़े-खच्चर का काम करते हैं. अब तक प्रदीप भी रूपकुंड, रांटी सेडल पास, ब्रहम ताल, कुंवारी पास, केदार कांठा, सतोपंथ समेत दर्जनों ट्रेक कर चुका है.
जारी…

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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