2.रूपकुंड का छोरा ‘परू’…….!
(केेेेशव भट्ट की कलम से)
दरअसल, बुजुर्ग युवा परिहार मास्टरजी की बिटिया आंचल ने कई सालों से ट्रैकिंग का सपना पाला था. बड़ी जद्दोजेहद के बाद बापू-बेटी का ट्रैकिंग पर जाना तय हुआ ही था कि विभाग ने बेटी की कोविड ड्यूटी लगा दी. अब वह हैरान-परेशान थी. खैर विभाग में मान-मनुहार की गई. ड्यूटी से कोई दिक्कत नहीं है, बस इसे थोड़ा आगे खिसका दीजिए. साथी जैक और आंचल, सुबह से ही अधिकारियों की परिक्रमा में विभाग-गांव-स्कूल नापने में लगे थे. एक बार तो आंचल ने तंग आकर हमें जाने को बोल दिया मगर आखिरकार दो बजे मामला सुलझा और छुट्टी मिल गई.
बागेश्वर से निकलते-निकलते चार बज गए. हरदा और अन्य लोग ग्वालदम पहुंच चुके थे. डॉ. मनीष पंत, दिगम्बर सिंह परिहार, आंचल, जगदीश उपाध्याय के साथ मैं भी गाड़ी में सवार हो गया. दिनभर की भागदौड़ और रूपकुंड के कठिन ट्रैक के किस्से सुनते-सुनाते हम ग्वालदम पहुंचे तो हरदा ने फोन पर बताया कि वे देवाल से आगे लोहाजंग के रास्ते पर हैं, बाकी लोग भी वहां पहुंच चुके हैं. वे लोग नंदकेसरी वाली सड़क से गए हैं. कुछेक जगह सड़क खराब है लेकिन ढलान में गाड़ी निकल ही जा रही है. हमने भी थराली रोड छोड़कर ग्वालदम से नंदकेसरी वाली सड़क का रुख किया.
वर्ष 2014 की राजजात के दौरान नंदकेसरी की सड़क के गढ्ढों को पाटकर डामर का छिड़काव किया गया था. अब वह पूरी तरह गायब हो चुका है. तब आस्था के सैलाब की आड़ में नौटी से वाण गांव तक सड़कों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों-अरबों की बंदरबांट हुई. इस बिहड़ इलाके के रहवासियों ने इस बात पर संतोष कर लिया कि चलो कुछ तो छींटे पड़े इस रोड में… बाकी किससे क्या कहें! कोई सुनने वाला तो है नहीं… आस्था का लबादा ओढ़ सरकारी डाकू शरीफ़ों का वेश धरे माथे पर टीका और कंठ में मय डालकर देवी का जयकारा करते हुए विकास की मलाई खाते रहे… खैर! राज जात भी तो बारह साल में एक बार ही होती है… काश! नंदा माई, साल में दो-एक बार अपने मायके-ससुराल का चक्कर काटतीं तो ये भी अपना रिसोर्ट बनाकर उसमें आराम फरमाते… अब बारह साल बाद ही सड़क का फिर से उद्धार करने का सुअवसर मिल पाएगा.
जारी…