Thursday, August 21, 2025
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मालन नदी घाटी के सैकड़ों ग्रामीणों की एक सूत्रीय मांग “ट्रैक ऑफ द ईयर” घोषित हो घाटी।

#चौकिघाट से चंडा पर्वत शिखर तक मालन नदी घाटी की शोध यात्रा। सैकड़ों ग्रामीणों की एक सूत्रीय मांग ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित हो घाटी।
यमकेश्वर/पौड़ी गढ़वाल।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के दिशा निर्देशों पर एक दल द्वारा चौकी घाट (वर्तमान कण्वाश्रम) से लेकर मालिनी नदी उद्गम स्थल चंडा/मलनिया-बडोलगांव (लगभग 22 किमी ) तक नदी घाटी क्षेत्र का विस्तृत भ्रमण कर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इस दौरान इस घाटी क्षेत्र के सैकड़ों लोगों द्वारा इस वैदिक कालीन  घाटी को साहसिक, धार्मिक, योगिक, इनबाउंडआउट बाउंड टूरिज्म की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को एक संयुक्त प्रस्ताव भेजकर इसे ट्रैक ऑफ द ईयर 2021 घोषित करने की एक सूत्रीय मांग रखी है।
इस दल का नेतृत्व जीएमवीएन की रीजनल मैनेजर सरोज कुकरेती व वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल द्वारा किया गया जिसमें “कंवासेरा विकास समिति व मेला समिति” के अध्यक्ष सुमन कुकरेती व “मेरा गांव मेरी विरासत” के अध्यक्ष भगवती प्रसाद काला व ग्रामीण महिलाओं व पुरुषों ने अपनी सहभागिता निभाई।
दल द्वारा चौकिघाट (वर्तमान कण्वाश्रम) से 5 किमी. दूरी पर अवस्थित विश्वामित्र गुफा बिस्तर काटल, मरणखेत व यहां से लगभग 5 किमी. दूरी पर अवस्थित मेनका गांव  चुन्ना-महेड़ा तक ट्रैक किया गया। स्वर्ग अप्सरा मेनका गांव से लगभग 2 किमी दूरी पर कण्वाश्रम (कंवासेरा/किमसेरा) यहां से 7 किमी. दूरी पर अवस्थित मलनिया/बडौलगांव तक मालिनी नदी के उद्गम तक वाहनों द्वारा यात्रा व तदोपरान्त लगभग 3 किमी. चंडा पर्वत शिखर तक अर्थात मालिनी उद्गम स्थल तक ट्रैक कर पूरी मालिनी घाटी में व्याप्त विभिन्न तथ्यों, किंवदन्तियों व लोक में प्रचलित ऋषि कण्व-गौतमी, ऋषि विश्वामित्र मेनका, ऋषि दुर्भाषा-शकुन्तला, ऋषि मरीचि-शकुन्तला, राजा दुष्यंत-शकुन्तला, ऋषि च्वयन व ऋषि चरक, ऋषि कश्यपऋषि भृगु से सम्बंधित विभिन्न जानकारियां प्राप्त की। 
जीएमवीएन की रीजनल मैनेजर सरोज कुकरेती ने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मालिनी घाटी के विकास व इसे पर्यटन गतिविधियों से जोड़ने के लिए विशेष निर्देश देते हुए कहा है कि जो भी सम्भावनाएं आपको उस क्षेत्र के विकास से सम्बंधित दिखाई दें उनका संज्ञान लेकर अतिशीघ्र उन्हें अवगत करवाएं व एक विस्तृत रूपरेखा तैयार कर प्रस्तुत करें। उन्हें खुशी है कि वे वैदिक कालीन मालिनी नदी घाटी के लोगों के साथ एक ऐसे शोध यात्रा पर निकली हैं जो इस क्षेत्र के विकास की एक रूपरेखा खींचेगा। ईश्वर ने चाहा तो विभिन्न महान तपस्वियों की इस तपस्थली पर शीघ्र ही मुख्यमंत्री जी कोई बड़ा निर्णय लेंगे। 
इस दौरान दल द्वारा कई सामाजिक व आर्थिक आधार पर क्षेत्रवासियों से वार्ता भी की गई।  वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने सर्व प्रथम 1992 में उत्तर प्रदेश के जमाने में इस घाटी पर शोध यात्रा प्रारम्भ की थी व 1995-96 में “शकुन्तला नृत्य नाटिका” का विजुअल फिल्मांकन उसे दूरदर्शन लखनऊ से प्रसारित भी करवाया है। इसके बाद भी वे इस वैदिक कालीन सभ्यता पर कार्य करते रहे लेकिन जानकारियों के अभाव में उन्होंने अपना शोध कार्य बीच ही छोड़ दिया। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि विगत मार्च 2020 में उनका एक 18 सदस्यीय दल पुनः इस क्षेत्र की शोध यात्रा पर निकला जिसका नेतृत्व रतन सिंह असवाल द्वारा किया गया। इस शोध यात्रा का मकसद क्षेत्र में जन जागरूकता फैलाना था इसलिए इसका नाम दिया गया “हिमालयन दिग्दर्शन ढाकर शोध यात्रा”। इस दल द्वारा महाबगढ़ से चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली भरपूर, कंडियाल गांव-चुन्ना-मएडा-किमसेरा-पौखाल-कांडीखाल-लँगूर गढ़ी-भैरोंगढ़ी से गोल्डन महासीर कैम्प बांघाट तक लगभग 120 किमी. ट्रैक किया गया। उस तीन दिवसीय यात्रा का मकसद ही इस क्षेत्र में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने व इस क्षेत्र को धार्मिक व साहसिक पर्यटन से जोड़ने का था।
इसके अलावा अधिवक्ता अमित सजवाण द्वारा अपने ट्रैकिंग ग्रुप के साथ  विगत दो बर्ष पूर्व 09 फरवरी 2019 को महाबगढ़ से बिस्तर-काटल होते हुए चौकिघाटा (वर्तमान कण्वाश्रम) तक ट्रैकिंग की गयी। अमित सजवाण जानकारी देते हुए बताते हैं कि यह आश्चर्यजनक है कि विदेशी यात्री आकर पूछते हैं कि मालिनी नदी घाटी क्षेत्र कहाँ है लेकिन तब भी हम लोग इसे पर्यटन से नहीं जोड़ पा रहे हैं।  उन्होंने बताया कि कोटद्वार शहर के उत्साही युवाओं के साथ जब उन्होंने इस क्षेत्र में ट्रैकिंग की शुरुआत की तब गाँव के गाँव उनसे जुड़ते गए और ग्रामीणों को लगा कि इस घाटी की आवाज उत्तराखंड सरकार तक जरुर पहुंचेंगी। 
“कंवासेरा विकास समिति व मेला समिति” के अध्यक्ष सुमन कुकरेती ग्राम प्रधान किमसेरा  कहते हैं कि लगातार इस क्षेत्र  ने उपेक्षा का दंश ही झेला है लेकिन अब क्षेत्रवासियों में उत्साह जगा है क्योंकि जिस तरह वर्तमान सरकार उत्तराखंड में टूरिज्म व्यवसाय बढ़ाने हेतु हर सम्भव यत्न कर रही है उससे उन्हें भी लगता है कि रामायण व महाभारत सर्किट की भांति मालिनी घाटी भी वैदिक कालीन सर्किट से जुड़कर चक्रवर्ती सम्राट भरत के यशोगान को पूरी दुनिया तक फैलाएगी व इस नदी घाटी क्षेत्र के युवाओं के कदम पलायन के स्थान पर रिवर्स माइग्रेशन के लिए आतुर होंगे। 
“मेरा गांव मेरी विरासत” के अध्यक्ष भगवती प्रसाद काला ने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा कि राज्य निर्माण के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब मुख्यमंत्री जी के दिशा निर्देश पर कोई दल हमारे गाँव मालिनी नदी के उद्गम स्थल की ढूंढ करता हुआ यहाँ पहुंचा है। उन्होंने कहा कि इससे पूर्व 1995 में उत्तर प्रदेश राज्य के समय दिल्ली विश्वविद्यालय की टीम ने जरुर इस क्षेत्र का भ्रमण किया था लेकिन इस बाद का कुछ भी पता नहीं लगा पाया कि उनकी टीम द्वारा अपने शोध के बाद क्या प्रतिक्रया ब्यक्त की गयी क्योंकि वह शोध कहीं अखबारों की सुर्ख़ियों में नहीं आया।
ज्ञात हो कि भगवती प्रसाद काला  द्वारा रिवर्स माइग्रेशन को ध्यान में रखते हुए अपनी ग्राम सभा (मलनिया-बडौलगाँव) में “मेरा गाँव मेरी विरासत” के नाम से एक समूह बनाया हुआ है जिसका कार्य यही है कि जितने भी परिवार गाँव छोड़कर बाहर जा बसे हैं उन्हें वापसी करवाना है व वापसी के साथ-साथ यहाँ रोजगार के संसाधन तलाशना भी उनका मुख्य ध्येय है।
बहरहाल इस शोध दल द्वारा मालिनी घाटी के दोनों छोरों पर बसे दर्जनों गाँव जिनमें नदी घाटी किनारे पर बसे गाँव चम्या, चंड़ा, मलनिया, बडोलगाँव, बिजनुर, मांडई, कलवासैड, सौड, लुरासी, जुड्डा, चरा तल्ला, चरा मल्ला, जुड्डा रोडियाल, गोपीगाँव, गुलासुगाड़, किमसेरा, सौंटियालधार, गहडगाँव, जामुनखेत, ककड़ाडांग, रणेसा, चुन्ना-महेडा, मरणखेत चौकीघाटा प्रमुख हैं। इसके अलावा नदी के उद्गम से बायीं दिशा में कुछ दूरी पर अवस्थित गाँव में डलखील, पाली, कफल्डी,मज्याडी, समलखेत, लदोखी, क्वीरखाल, चरा मल्ला, धरगाँव, मथणा व दाहिनी ओर कठुर बड़ा, खलपाड़ी, अमोली, अमोला, पुरवाना, पौखाल, जवाडगढ़, बिंदलगाँव, विजयपुर, स्यालगाड़, बोरगाँव, कंडयालगाँव, नवास, भरपूर, महाब गढ़, सिमलखेत तल्ला, सिमलखेत बिचला, सिमलखेत मल्ला, पोखरीखेत व राजदरबार इत्यादि गाँव अवस्थित हैं।
शोध दल का किमसेरा गाँव वासियों द्वारा रात्रि बिश्राम में भरपूर स्वागत सत्कार किया गया जबकि अगले दिन मलनिया गाँववासियों द्वारा पुष्प मालाओं से दल का स्वागत किया गया व स्थानीय उत्पादों में नीम्बू की खटाई, कंडाली का साग, रोटी व चावल तथा किमसेरा गाँव वासियों द्वारा मालिनी नदी में उत्पन्न हुआ गडरि अर्थात सुसुवा के साग से आदर सत्कार किया गया! इस दौरान मेरा गांव मेरी विरासत के  कैलाश कुकरेती संरक्षक, सुभाष कुकरेती संयोजक, कुलदीप काला युवा जन जागृति प्रमुख, श्रीमती कमला देवी, श्रीमती विधाता देवी, राजेश काला  उपाध्यक्ष, जगदम्बा प्रसाद, सुनील काला (पूर्व प्रधान), श्रीमती शशि देवी, श्रीमती शकुन्तला देवी, श्रीमती सुमा देवी, श्रीमती बीना डबराल, श्रीमती आशा काला,  सूर्य प्रकाश काला, दिनेश रतूड़ी, रमेश काला, नंदन मोहन काला व किमसेरा के ओमप्रकाश, बसंत, सुरेश,  धीरज,  सतेंद्र , मनोज,  धर्मसिंह,  गबरसिंह, सूर्यप्रकाश,  हेमचन्द्र,  हरीश
चन्द्र, घमंडशिंह, गिरीशचंद्र, श्रीमती किरनदेवी (सरपंच) इत्यादि मौजूद थे।
Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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