उत्तराखंड का धन्नासेठ……!पंडित प्रयाग दत्त धस्माना व ठा. पदमेंद्र सिंह रिंगवाडा की दास्ताँ…!
(मनोज इष्टवाल)
कहते हैं पलटकर हर कोई अपने अतीत के पल याद कर उसकी खुद में खो जाता है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही ही उजड़ते बसते गढवाल के गाँव और पलायन की मार से व्याकुल यहाँ का इतिहास है कि वह मिटने का नाम नहीं लेता। कुछ बात तो है हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जहाँ हमारा…! यह पंक्ति जनपद पौड़ी के इन दो सूरमाओं को समर्पित जिन्होंने अपने धनबल व बुद्धिमत्ता से लगभग 200 साल बाद भी अपने आप को ज़िंदा रखा हुआ है। वर्तमान में जाने उत्तराखंड में कितने अरबपति हैं लेकिन जो समाज के काम नहीं आया वह सिर्फ अपने धन के साथ कुछ दिन जीवित रहा और अपने परलोक सिधारते ही अपने कर्मों की पोटली अपने साथ बांधकर रुखसत हो गया। कई अरब-खरबपति ऐसे भी हुए जिनका नाम लेने वाला तक कोई ज़िंदा नहीं है।
धस्माना व रिंगोडा दो ऐसे वंश वृक्ष हुए जिनके नाम के आगे इन दो नामों की ज्यादा अहमियत है। अब आप ही बताइये लगभग 1411 ई. में कत्यूर कुमाऊ से रिंगवाळ कत्यूरी के वंशजों के चौन्दकोट में बसने के बाद से आजतक हम कितने रिंगवाडा जाति वंशजों के नाम से परिचित हैं या फिर कितने ऐसे धस्माना पंडितों के नामों से हम परिचित हैं, जिन्होंने जिन्होंने उज्जैन से 1723 ई. में धस्मण गाँव आ बसे हरदेव, वीरदेव माधौ दास के बाद बहुत सारे धस्माना पंडितों के सर्वकालिक नाम सुने हों। आइये आज अपने वंश वृक्ष का नाम गढवाल के इतिहास में दर्ज करने वाले कर्मयोगी पंडित प्रयाग दत्त धस्माना व ठा. पदमेंद्र सिंह रिंगवाडा की दास्ताँ के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
सरकारी आंकड़ों में भले ही पिछली सदी में गढ़वाल से पौड़ी के चौफीन व कुमाऊँ के सोमेन्द्र शाह धन्नासेठ माने गए हों, लेकिन सन 1823 में राजा के बाद अगर किसी गढ़वाली की तुलना लखपति के रूप में होती थी तो वह सतपुली बदलपुर पट्टी के तोली गॉव के पं. प्रयाग दत्त धस्माना हुए जिनकी उस जमाने में 1लाख की लाटरी लगी थी, उपरसेर (जे.ई.) प्रयाग दत्त धस्माना जी ने रिंग्वाडीगॉव पट्टी रिंगवाडस्यूं के थोकदार इंजीनियर पद्मेंद्र सिंह रावत के पिताजी ठा. हरेन्द्र सिंह रिंगवाडा की सेवाएं ली और चार बसें खरीदी, जो कोटद्वार सतपुली तक चला करती थी। कहते हैं 10 लाख की लाटरी लगने के बाद इन्होने नौकरी छोड़ दी और समाजसेवा में लग गए।
वहीँ इंजीनियर पद्मेंद्र रावत द्वारा रेखांकित जनशक्ति मार्ग जो मलेठी बैंड (सतपुली से लगभग 5 किमी.पहले सतपुली पौड़ी मार्ग पर) लेकर जणदा देवी मोटर मार्ग व ज्वाल्पादेवी कनपोलटिया पुल से जणदा नौगॉवखाल मोटर मार्ग श्रमशक्ति से बनाया गया! उत्तराखंड का वह पहला ऐतिहासिक मार्ग है, जिसे चौन्दकोट क्षेत्र की जनता ने बिना सरकारी इमदाद के स्वतंत्र भारत की ऐसी पहली जनशक्ति मार्ग को बना डाला। इसमें भी इन दो हस्ती (ठा. हरेन्द्र सिंह रिंगवाडा/ठा. दर्शन सिंह सिपाही नेगी) का नाम बड़ी प्रमुखता से लिया जाता है। कहा जाता है कि ढोल दमाऊ बजते रहते थे और पुरुष महिलाएं जोश से इन मोटर मार्गों का निर्माण किया करते थे, इनके निर्माण में गोरली गॉव के गोर्ला रावत और ईडा-बंठोली गॉव के सिपाही नेगी थोकदारों ने भी धनबल से काफी मदद की थी. इन्हीं गोर्ला व सिपाही नेगियों की बेटी/बहु तीलू रौतेली की गाथा आज भी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित है।
ये जनशक्ति मार्ग ऐसे डिजाईन किये गए हैं कि अभी तक इनके भरी से भारी बरसात में टूटने की कभी खबर नहीं मिली, यह दोनों मार्ग बिना बारूदी धमाकों के तैयार किये गये थे। जिसे चौन्दकोट जनशक्ति मार्ग के नाम से वर्तमान में भी जाना जाता है। वरिष्ठ पत्रकार गणेश काला जानकारी देते हुए बताते हैं कि “पौड़ी जनपद के चौंदकोट में ‘जनशक्ति मार्ग’ की नींव 12 फरवरी 1951 को रखी गई थी। यह मार्ग प्रतीक है चौंदकोट क्षेत्र की उस जनसहभागिता का, जिसके जरिए गढ़वाल क्षेत्र में एक क्रांति का जन्म हुआ। इस अनूठे श्रमदान आंदोलन से प्रभावित होकर यूगोस्लाविया से एक युवा संगठन ने भारत आकर चौंदकोटवासियों के उस जज्बे का अध्ययन किया। ग्राम ईड़ा निवासी दर्शन ¨सह नेगी की पहल पर 12 फरवरी 1951 में जन निर्माण मेले में सतपुली से तीन किमी दूर जमरिया बैंड से जणदा देवी तक सड़क बनाने का संकल्प लिया गया। इसके लिए जनसमिति का गठन किया गया, जिसमें जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन हरेंद्र सिंह रिंगवाडा (रावत) को अध्यक्ष, दर्शन सिंह सिपाही नेगी उपाध्यक्ष समेत अन्य लोगों को अहम जिम्मेदारी दी गई। इसके अलावा प्रत्येक गांव से दो-दो लोगों को बतौर सदस्य नामित किया गया।”
श्रमदान आंदोलन में नया मोड़ तब आया, जब रिंगवाड़ी निवासी अधिवक्ता ठा. मनवर सिंह रिंगवाड़ा रावत की पहल पर उतरे ग्रामीणों ने ज्वाल्पा के निकट कनमोठलिया पुल से संतूधार- रिंगवाड़ी-जणदादेवी-नौगांवखाल के लिए भी जनसाध्य सड़क का निर्माण किया।
बताया जाता है कि प्रयाग दत्त धस्माना की लाटरी की इस धनराशि से ही कई बसें इन मार्गों पर पहाड़ की सुविधा के लिए चलाई गई और तदोपरांत इंजीनियर पद्मेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में कोटद्वार में जीएमओ (गढ़वाल मोटर आर्गेनाईजेशन) की स्थापना हुई। कुछ मत यह भी हैं कि जी.एम्.ओ की स्थापना में पूर्व विधायक स्व. संतन बडथ्वाल के पिता स्व. उमानंद बडथ्वाल का हाथ है। मैंने इस सम्बन्ध में जानकारियाँ मंगवाई हैं उम्मीद है स्पष्ट जानकारी के बाद मैं इसे आप तक पहुंचाऊंगा। कुछ जानकारियाँ मुझे विजय थपलियाल जी व सतीश ध्यानी “सच” जी ने मेरे इस लेख के बाद उपलब्ध करवाई जिसे मैं अब संपादित कर आपके समक्ष रख रहा हूँ ताकि स्थिति साफ़ हो सके।
इन्हीं पंडित प्रयाग दत्त धस्माना के पारिवारिक पीढ़ी में स्वामीराम हुए जिन्होंने देहरादून जिले के जॉलीग्रांट में हिमालयन हॉस्पिटल ट्रस्ट की स्थापना की और वर्तमान में उसकी अहम् जिम्मेदारी डॉ. विजय धस्माना के कन्धों पर है। यह अस्पताल आज भी हजारों रोगियों की सेवा में जुटा है। बताया जाता है कि पौड़ी अस्पताल के निर्माण में एक इंजीनियर से आपसी मतभेदों ने प्रयाग दत्त धस्माना को अर्श से फर्श पर ला दिया। हिमालयन हॉस्पिटल ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी व स्वामीराम हिमालयन विश्वबिद्यालय के कुलपति डॉ. विजय धस्माना जानकारी देते हुए बताते हैं कि हाल ही में जब वे गाँव गए थे तब पाया कि पंडित प्रयाग दत्त धस्माना जी का वह ऐतिहासिक मकान का एक हिस्सा टूटा है, बाक़ी मकान बंद पड़ा है। डॉ. विजय धस्माना आगे बताते हैं कि बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय में 1 लाख की लॉटरी से प्राप्त धन को 11 घोडों में ढोकर तोली पहुंचाया गया क्योंकि यह सम्पूर्ण राशि सिक्कों में थी। डॉ धस्माना बताते हैं कि पंडित प्रयाग दत्त, मुसद्दी लाल एवं किशोरी (स्वामी राम जी) तीन भाई हुए जिनमें पंडित प्रयाग दत्त सबसे बड़े और पंडित स्वामी राम सबसे छोटे उनके दादा जी हुए।
देखिये कभी इस मकान की नक्काशी व मंदरों (बिशेष तरह की दर्री) में सूखते कलदारों (रूपये/सिक्कों) की झलक पाने के लिए लोग तरस जाया करते थे। इसे कहते हैं इतिहास के सुनहरे पन्ने…! इतिहास जो रच गया वह कभी खंडहर नहीं होता भले भी बड़े-बड़े राजमहल मिट्टी में मिल जाते हैं।
ऐसे महारथियों को नमन … जिन्होंने अपनी सारी जमापूंजी जनता पर खर्च कर अपना नाम अमर किया। धन्य हैं वो माँ जिन्होंने ऐसी विभूतियों को जन्म दिया।